Saturday, February 4, 2012

पुरुषार्थ की प्रतीक माँ नर्मदा


माँ नर्मदा पुरुषार्थ की प्रतीक है
वह आस्था का दीप है
माँ नर्मदा प्रवाह के प्रतिकूल बहने का प्रमाण है
विषमताओ में समता स्थापित करने का प्रयास है 
माँ नर्मदा अन्धानुकरण नहीं है
अपितु अंधी आस्थाओं को आराधना का पथ दिखाने का प्रकाश पुंज है
माँ नर्मदा भावो का अन्त्योदय तथा असुविधाओ में सुविधाओं का उदय है
शिवत्व इसमें समाहित है यह शून्य में सृष्टि को उत्पन्न करने का चमत्कार है
जो अमर कंटक से छोटे से जल स्त्रोत से  सागर बनने का उपक्रम है
इसीलिए माँ नर्मदा अमरकंटक से अपनी यात्रा को प्रारंभ करती  हुई
मध्यप्रदेश के बड़े क्षेत्र में अपने जल का वरदान बिखेरती हुई
महाराष्ट्र ,एवम गुजरात होते हुए  अरब सागर में गिरती है
माँ नर्मदे  के गंगा जी के सामान शिव जी के मस्तक से नहीं निकलती है
यह तो शिव जी के तप के फलस्वरूप उनके पसीने का प्रताप है
अर्थात माँ नर्मदा शिव जी के पुरुषार्थ का प्रतीक है
माँ नर्मदा ग्लेसियर से नहीं बनती है
वह सहज स्वत पर्वत की ऊँची चोटी से निकल कर उस क्षेत्र को सींचती जो अनछुआ रह गया है
अर्थात माँ नर्मदा पूर्णता प्राप्ति का प्रयास है
स्कन्द पुराण जो भगवान् कार्तिकेय  से सम्बंधित है
में माँ रेवा का विस्तृत उल्लेख है यह महर्षि दधिची की तपोस्थली धर्मपुरी नगरी को भी तृप्त करती है
भगवान् शिव जी  के व्यक्तित्व को कही देखना हो तो माँ रेवा अर्थात माँ नर्मदा के दर्शन करना चाहिए नर्मदा जी के हर कंकर को शंकर के रूप में पुकारा गया है
शास्त्रों में इस कारण यह वर्णन है की यह सात पवित्र नदियों में शामिल है
क्योकि  अन्य पवित्र नदियों जिनमे गंगा ,यमुना ,ब्रह्मपुत्र,सिन्धु ,कावेरी व् विलुप्त सरस्वती नदी है 
में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है जबकि माँ नर्मदा के दर्शन मात्र ही पुण्य प्राप्ति के लिए पर्याप्त है