Sunday, March 11, 2012

PARSURAM BHAG - 3






परसुराम भाग -  3

( महाराज गधिक को रिचिक की भेट एवं   रिचिक का राजकुमारी से विवाह )

रिचिक ऋषि ये बात समझ गए थे की महाराज अपनी सुकुमारी पुत्री का विवाह उनसे नहीं करना चाहते और इस लिए गधिक ने एसी भेट मांगी जिसे कोई सामान्य व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता और नाही ये मांग पूरी करना संभव था क्योकि स्वेद वर्ण वाले एसे अस्व जिनका सिर्फ  दाया कर्ण काला हो इस प्रकार के एक हजार अस्व तो क्या संभवत ऐसा एक भी अस्व मिलना सरल नहीं परन्तु गधिक को पता नहीं था की रिचिक कोई साधारण सन्यासी ब्रह्मण नहीं थे स्वयं प्रभु ने उन्हें चुना था.

रिचिक ने वेदी मैं अग्नि प्रज्वलित की और यज्ञ प्रारम्भ किया होम की अग्नि जलने लगे ऋषि सविधा डालने लगे वेद मंत्रो का उच्चारण शुरू हुआ रिचिक ने दिव्य मन्त्रो का पाद शुरू किया सारा वातावरण दिव्य हो गया.
रिचिक ने मंत्रो को तेज स्वर मैं बोलना प्रारंभ किया ॐ वरुण देवाय नमह ॐ वरुण देवाय नमह यज्ञ की अग्नि और तेज जलने लगी .

ॐ वरुण देवाय नमह ॐ वरुण देवाय नमह 

यज्ञ की अग्नि मेंसे स्वयं वरुण देव प्रकट हुए, रिचिक ने वरुण देव को प्रणाम किया और वरुण देव ने भी रिचिक को प्रणाम किया.
वरुण देव ने कहा - रिचिक आपने मेरा आह्वान किया. कहिये क्या बात हैं. 
जब एक साधारण सा मनुष्य अपनी इच्छाओ का त्याग कर देता हैं जब उसका जीवन उसके लिए नहीं जनकल्याण और  परहित के लिए हो जाता हैं, जब एक साधारण सा व्यक्ति एन्द्रिक विषयों से ऊपर उठ जाता हैं .भोगो का त्याग कर देता हैं तो उसका जीवन स्वयं यज्ञ बन जाता हैं तब ऐसे  व्यक्ति के सामने देवता भी नतमस्तक हो जाते हैं.
आज वही द्रश्य साकार हो रहा था वरुण देव रिचिक के आदेश की प्रतीक्षा कर रहें थे.
वरुण देव आपके आह्वान के पीछे मेरा कोई व्यक्तिगत उद्देश्य नहीं हैं अपितु   सर्वशक्तिमान  भगवन  की आज्ञा से जनकल्याण हेतु  मुझे दिया  हुआ एक अतिमहत्वपूर्ण  कार्य संपन्न करने के लिए मुझे आपकी आवश्यकता हैं.
सुनिए वरुण देव इस कार्य के निमित मुझे आपकी आवश्यकता हैं, 

वरुणदेव - आप कहिये ऋषिवर मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ.
वरुण देव मुझे स्वेद वर्ण वाले ऐसे अश्वो की आवश्यकता हैं जिनका दया कर्ण कला हो मुझे ऐसे एक हजार अस्वो की आवश्यकता हैं,
वरुण देव ने बिना विलम्ब  किये एक हजार दिव्य अस्वो को प्रकट कर दिया .
मुनिवर ये दिव्य अस्व हैं आप जेसा कहैंगे ये आपकी आज्ञा का वेसा ही पालन करेंगे.
रिचिक ने वरुण देव को धन्यवाद दिया वरुणदेव पुनह अग्नि के धुएं मैं विलीन हो गए रिचिक उन हजार अस्वो को लेकर अगले ही दिन  राजा गधिक के पास चल दिए.
महाराज गधिक को जब ये पता चला की रिचिक उन्हे भेट देने के लिए उनकी इच्छा अनुसार एक हजार अस्व लेकर आये तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ वो भागते हुए रिचिक के पास पहुचे उन्होंने देखा रिचिक उसी प्रकार के एक हजार अस्वो के साथ खड़े थे जिनका वर्णन उन्होंने किया था , और आज तो भेट के अनुसार दूसरा दिन ही प्रारंभ हुआ था.
गधिक को अपनी आँखों पर विशवास नही हुआ.
देखिये महाराज आपकी इच्छानुसार मैं अस्वो को ले आया भेट स्वीकार कीजिये.
गधिक रिचिक के तप सामर्थ्य को समझ गए.और दुःख भरे स्वर मैं बोले ऋषिवर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया हैं मैं समझ गया हूँ मेरी पुत्री के लिए आप से श्रेष्ट  वर नहीं हो सकता मैं अपनी पुत्री का विवाह आप से करके स्वयं को धन्य समझूंगा मेरी पुत्री का ये सोभ्ग्य होगा की उसे आप जेसा पुरुष वरन करे .
 जब दुनिया को किसी व्यक्ति की शमता का पता चलता हैं, उसके सामर्थ्य का ज्ञान होता  हैं जब व्यक्ति अपने आप को सिद्ध कर देता हैं जब दुनिया को उसकी शक्ति का पता चलता हैं , तो वही दुनिया उसकी प्रसंसा करते नहीं थकती जिसे कल तक वो स्वीकारने को तेयार नहीं थी.जिसका त्याग कर दिया गया  था पर अब  वही  उनके लिए सम्माननीय हो जाता हैं  जेसा आज राजा गधिक और रिचिक के प्रसंग से देखने मैं आता हैं
राजा गधिक ने अपनी सुकुमारी पुत्री का रिचिक से भव्य विवाह किया रिचिक ने राजा गधिक से जाने की अनुमति ली और अपनी नवविवाहित वधु को लेकर प्रस्थान किया............................................(शेष भाग भाग ही समय बाद )