Wednesday, June 6, 2012

शनि देव के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण


शनि ग्रह को न्याय का प्रतीक माना जाता है
शनि देव जो सुर्य देव के पुत्र कहे जाते है
शनि देव की माता छाया कही जाता है
वर्ण से काला रंग तथा स्निग्ध द्रव्य तेल उनको प्रिय है
​​​​ऐसी मान्यता है
ऐसा भी कहा जाता है की उनकी द्रष्टि किसी व्यक्ति पर गिर जाये तो
उस व्यक्ति के प्रतिकूल दिन प्रारम्भ हो जाते है
उपरोक्त मान्यताओं से भयभीत होने के स्थान पर हमे स्वस्थ द्रष्टि से
सोचना आवश्यक है
सूर्य देव जीवन मे ओज ,प्रकाश,पुरुषार्थ के प्रतीक है
विश्व मे कोई भी ओजस्वी ,यशस्वी,पुरुषार्थी व्यक्ति हो
उसकी प्रष्ठभूमी को हम गहराई एवम ध्यान पूर्वक देखे तो पायेगे कि
वह असुविधाओ केअंधेरे मे प्रकाशित हुआ है
प्रकाश रूपी प्रतिफल जो ऐसे व्यक्ति के जीवन मे दिखाई देता है
उसके उत्थान के पीछे घने अंधेरे से लिपटी हुई व्यथा कथा होती है
इसलिये सूर्य देव की जीवन संगीनी छाया कहलाती है
ऐसी छाया की कौख से ही न्याय का देव शनि देव उत्पन्न होते है
यहा यह समझना आवश्यक है कि
किसी भी व्यक्ति के जीवन मे दो पक्ष होते है ​​​​​​नकारात्मक एवम सकारात्मक
व्यक्तित्व का सकारात्मक पक्ष व्यक्ति स्वयं दिखाना चाहता है
तथा विश्व मे सहज रुप से दिखाई भी देता है
किन्तु व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष जो तम के रूप मे होता है
उसे देखने और दिखाने के लिये शनि देव जैसी न्याय द्रष्टि चाहिये
और उसके दुष्परिणाम भुगतने की मानसिकता भी होनी चाहिये
हम अनुभव करते है कि व्यक्ति मे किसी भी अपराध करने के पश्चात
अपना अपराध स्वीकार करने का साहस नही होता
कुछ व्यक्तियो मे नकारात्मक प्रव्रत्तिया इतनी अधिक मात्रा मे होती है कि
उनमे अपराध बोध भी नही होता
ऐसे  व्यक्ति अपनी गलतियो को स्वीकार करने के बजाय.उन्हे न्यायोचित ठहराने लग जाते है
शनि देव से द्रष्टि न मिलाने का तात्पर्य यह है कि
व्यक्ति त्रुटिया करने के बाद प्रायश्चित्त करे
अन्यथा शनि देव की वक्र दृष्टि को झेलने के लिये तैयार रहे
क्योकि इसी जिन लोगो मे अपराध करने के बाद अपराध बोध
एवम प्रायश्चित की भावना नही होती
वे अपराध की पुनराव्रत्ती करते जाते है
पश्चातवर्ती परिस्थितियो मे वे कठोर दंड के भागी होते है
ऐसे लोग यह कहते हुये देखे जा सकते है
कि शनि की साढे साती या अढैया चल रहा है
शनि देव की दृष्टि वहा तक जाती है
जो व्यक्तित्व का कलुष पक्ष होता है
इसलिये उनका वर्ण काला होता है
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये सारा विश्व उन पर स्निग्ध द्रव्य चढाता है
जबकि स्निग्ध द्रव्य चढाने का आशय यह है
जीवन मे स्नेह,सौहार्द,सदभावना, संस्कार,सत्य रूपी द्रव्य संजोया जाये
जिससे सत्कर्म रूपी उष्मा पैदा होगी
वह हमारे मन का ही नही समस्त संसार का तम दूर करने मे समर्थ होगी
सर्वत्र न्यायपूर्ण समाज की स्थापना होने से शनिदेव स्वत: ही.प्रसन्न होगे