Tuesday, October 23, 2012

संवाद संवेदना और अध्यात्म

सम्वाद के लिये क्या शब्द और ध्वनि आवश्यक है ?
एक सीमा तक यह तर्क सही लगता है
किन्तु सदैव ऐसा नही होता
सम्वाद का सीधा सम्बन्ध सम्वेदना से होता है
सम्वेदना प्रखर होने पर समान सम्वेदना के स्तर वाले 
व्यक्तियो मे अनुभूतियो के स्तर पर सम्वाद होता है
इसको हम इस प्रकार से समझ सकते है कि
जब कोई परम प्रिय व्यक्ति किसी प्रकार के कष्ट मे होता है
तो दूरस्थ आत्मीय जन को उसके कष्ट की सहज ही 
अनुभूति हो जाती है
यह दो व्यक्तियो के मध्य स्थापित आत्मीयता की मात्रा
 एवम सम्वेदना अनुपात पर निर्भर करती है
सम्वेदना जितनी प्रखर होगी
सम्वाद उतना ही गहरा और स्पष्ट होगा
प्राचीन काल मे कहते है महाभारत मे द्रुपदि का 
करूण रुदन सुन कर
भगवान श्री कृष्ण सहायता के लिये आ  पहुंचे थे
चाहे वह चिर -हरण का प्रसंग हो या दुर्वासा के हजारो शिष्यो का
पाण्डवो के वनवास काल के दौरान अचानक भोजन के लिये
अतिथि के रुप मे आगमन
आधुनिक काल मे जितनी मात्रा मे दुरसंचार के 
साधनो मे व्रद्धि हुई है
हमारे संवेदना के स्तर का क्षरण हुआ है
शब्दो के स्तर पर हम चाहे कितनी चर्चाये कर ले
भावनाओं के स्तर पर हम परस्पर दूरी बनाये हुये है
निरन्तर ऐसा प्रतीत होता है मानो ध्वनि सम्वाद से जुडा 
व्यक्ति और हमारे मध्य कुछ और छुपा है 
अथवा कुछ तथ्य छुपाये जा रहे है
सम्वेदना के स्तर पर सम्वाद को हम 
मूक ,बधिर,नैत्रहीन व्यक्तियो से
क्रिया प्रतिक्रिया से समझ सकते है
वे कितनी कुशलता से संकेतो की भाषा को समझ सकते है
सम्वेदना के स्तर पर सम्वाद का सम्बन्ध अन्त चेतना से होता है
अन्त चेतना का सम्बन्ध हमारी आत्मा से होता है
आत्मा की चेतनता अध्यात्मिक क्रियाओं उत्पन्न होती है
हिन्दु धर्म मे विवाह संस्कार के पूर्व वर एवम वधु के गुणो का
मिलान किये जाने का आशय भी यह है
कि परिणय सूत्र मे बॅधने वाली दो आत्मा के संस्कार  
और उनके गुण धर्म क्या है
जितनी अधिक समानताये होगी उतना ही 
उनका सम्वेदना का स्तर समान होगा
सम्वेदना का स्तर समान होने से जीवन भर 
उनमे सम्वाद की मात्रा संतोषप्रद स्थिति मे रहेगी
यदि किसी कारण से भाषाई स्तर पर सम्वादहीनता 
उत्पन्न हो भी गई हो तो
सम्वेदना के स्तर पर सम्वाद प्रारम्भ हो जाने से
उनमे अलगाव के स्थान पर लगाव स्थापित हो जावेगा
बिना बोले ही भावो की समझने की क्षमता 
सम्वेदनशील व्यक्ति मे होती है
इस क्षमता सम्पन्न व्यक्ति प्रत्येक व्यक्ति की भावनाये 
समझने मे सक्षम होता है
भावनाये दोनो प्रकार की हो सकती है 
दुर्भावनाये या सदभावनाये
ऐसा व्यक्ति व्यक्ति को समझने मे किसी प्रकार की त्रुटि नही करता
सम्वेदनशील व्यक्ति को ईश्वरीय कृपा प्राप्त होता है
या ऐसा भी कह सकते है कि जिस व्यक्ति को ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त होता है ,वह सम्वेदनशील होता है
ईश्वर से सम्वाद स्थापित करने हेतु किसी भाषा की
आवश्यकता नही होती आत्मा का परमात्मा का मौन सम्वाद ही मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करती है