Wednesday, October 24, 2012

रावण के अट्टहास का रहस्य

दशहरे के पर्व पर रावण दहन किया जाना
परम्परा के रूप में चला आ रहा है
रावण दहन के पूर्व हमें राम और रावण के परस्पर संबंधो के
बारे में सोचना चाहिए
रावण और कुम्भकर्ण कौन थे ?
रावण और कुम्भकर्ण भगवान् विष्णु के
अभिशप्त द्वारपाल जय- विजय थे
जो शाप वश धरती पर आये थे और शाप से मुक्त होकर
पुन भगवान् विष्णु के धाम उनकी रक्षा हेतु वापस चले गये
सभी इस तथ्य को जानते है कि
श्री राम भगवान् विष्णु केअंशावतार थे
जो अपना प्रयोजन पूर्ण होने के उपरांत भगवान् विष्णु के
 वृहद् अंश में समाहित हो गए
आखिर जय -विजय ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म
 और भगवान् विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार धारण क्यों किया था
ऐसा उन्होंने समाज को बुराई को छोड़ने और अच्छाई को अपनाने
तथा सदा बुराई पर  पर अच्छाई की विजय होती है
का सन्देश समाज तक पहुंचाने के लिए किया था
परन्तु हमने  दशहरे पर रावण दहन कर
रावण दहन के पीछे छुपे
सच्चे संदेशो को छोड़ दिया
कभी हमने ध्यान
दिया है कि
रावण की अट्टहास पूर्ण हंसी के पीछे क्या रहस्य है ?
रावण महान
ज्ञानी और विद्वान और भूत भविष्य का ज्ञाता था
उसे उसकी मृत्यु का पूर्वानुमान था
वह जानता था की उसकी मृत्यु सुनिश्चित है
किन्तु मृत्यु पूर्व उसकी उन्मुक्त हंसी
स्वयम मृत्यु की  देवी में  भय का भाव उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त थी
रावण जानता था की जन्म मृत्यु जीवन के शाश्वत सत्य है
कोई व्यक्ति अमरता प्राप्त नहीं कर सकता
किन्तु रोते ,बिलखते ,रुग्ण होकर मृत हो जाना
हमारी अनश्वर आत्मा की अमरता के लिए जन्म मृत्यु के चक्र से
मुक्ति प्राप्त करने  लिए घातक है
यदि हमें इस चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है
परमात्मा के चरणों में स्थान प्राप्त करना है तो
हमें स्वस्थ और प्रसन्न होकर मृत्यु का वरण करना होगा
रावण के अट्टहास ने मृत्यु मातम नहीं उत्सव बनाया
उत्सव भी ऐसा जो उसकी मृत्यु हजारो वर्ष व्यतीत होने बाद भी
दशहरा पर्व के रूप चला आ रहा है
यदि सही अर्थो में माना जाय तो दशहरा पर्व
बुराई पर अच्छाई की विजय के साथ
 मृत्यु पर जीवन की विजय तथा आत्मा की अमरता
एवं आत्म तत्व  के मोक्ष का उत्सव है
http://photo.outlookindia.com/images/gallery/20121024/Ravan2_20121024.jpg

दायित्व बोध

जीवन प्रबंधन ,व्यवसाय प्रबंधन के क्षेत्र में
दायित्व बोध का अत्यधिक महत्व है
व्यवहारिक जीवन में दो प्रकार के लोग होते है
प्रथम वे जो अपने दायित्व को भलीभांति समझते है
चाहे परिवार के प्रति दायित्व हो ,समाज के प्रति दायित्व हो ,
व्यवसाय के प्रति दायित्व हो या देश के प्रति दायित्व हो
प्रत्येक प्रकार के दायित्व को उठाने के लिए सदा तत्पर रहते है
दूसरे वे व्यक्ति होते है जिनमे दायित्व बोध की भावना नहीं होती
किसी प्रकार का दायित्व ऐसे व्यक्तियों पर डाला जाय तो
 वे यथा संभव उससे बचने का प्रयास करते है
दिए गए दायित्व से से वे पलायन करते है
जीवन में चहु और वे व्यक्ति सफलता प्राप्त करते है
जिनमे दायित्व बोध की भावना कूट -कूट कर भरी होती है
जिस व्यक्ति में जिस अनुपात में दायित्व वहन करने की क्षमता होती है
उतने ही अनुपात में उन पर दायित्व का भार डाला जाता है
जिस व्यक्ति पर दायित्व का भार जितनी अधिक मात्रा में होता है
उस व्यक्ति के अधिकारों का विस्तार उतना ही अधिक होता है
जिस व्यक्ति को जितने अधिकार प्राप्त होता है
वह व्यक्ति उतना ही अधिक सामाजिक रूप से
शक्ति सम्पन्न तथा विश्वसनीय व्यक्ति होता है
दायित्व से पलायन करने  वाले
व्यक्ति अकर्मण्य, अधिकारों से विहीन ,
एवं आत्मविश्वास से विहीन होते है
जीवन में ऊर्जा पाने के लिए यह आवश्यक है
कि हम दायित्व वान व्यक्तियों से जुड़े
स्वयं में दायित्व बोध कि भावना जाग्रत करे