Wednesday, July 17, 2013

काल और महाकाल

 हिन्दू धर्म  में  काल  चौघडिया मुहूर्त  का  
अत्यधिक  महत्व  होता  है 
कुछ  व्यक्ति  तो  बिना  मुहूर्त  के  कोई  भी  
कार्य  करते  ही  नहीं  है 
भले  ही   कार्य  में  कितना  ही  विलम्ब क्यों  न  हो  जाये 
दिशा शूल  का  ध्यान  रखने  के  बाद  ही 
 कुछ  लोग  कही  प्रयाण करते  है  
कौनसी  दिशा  में  कौनसे दिवस  जाना 
 यह सुनिश्चित  करने के  बाद  ही  यात्रा  का  मार्ग  निर्धारित  करते  है उपरोक्त  मान्यताये यद्यपि  ज्योतिषीय काल गणना  पर  आधारित  है  परन्तु  प्रत्येक परिस्थिति  उपरोक्त  मान्यताओं  का
  पालन  किया  जाय  यह  आवश्यक नहीं 
यदि  काल  गणना का  इतना  ही  महत्व  होता  तो 
 ज्योतिष  विद्या का  प्रकाण्ड  विद्वान रावण 
अकाल  मृत्यु  का  ग्रास  नहीं  बनता
 भगवान्  विष्णु के  अवतार  श्रीराम एवं  सीता  जी  विवाह  का  
शुभ  मुहूर्त  में  होने के  बावजूद  
उन्हें विवाह के  पश्चात  वनवास  नहीं  भोगना  नहीं  पड़ता 
बिना किसी मुहूर्त  के श्री   कृष्ण  द्वारा रुक्मणी  का हरण 
तथा  अर्जुन  द्वारा सुभद्रा का हरण  और  हरण  के  बाद  
उनका सुखी  दाम्पत्य जीवन हमारे  सामने 
बिन  मुहूर्त  के उदाहरण  है 
कभी  हम  कोई  शुभ  कार्य  बिना  मुहूर्त  देखे कर  लेते  है 
 बाद में  हमें  पता  चलता  है 
 हमने वह  कार्य  उत्तम  मुहूर्त  में कर  लिया  है
 इसका  आशय  यह  मानना  चाहिये कि  किये  कार्य  में 
भगवान्  की पूरी  शुभकामना  शुभाशीर्वाद है 
व्यक्ति  अच्छे  मुहूर्त  में  कोई कार्य  क्यों करना  चाहता  है 
इसके  पीछे  प्रमुख  कारण  यह  होता  है  कि  व्यक्ति 
तरह  तरह की  आशंकाओं  से  भयभीत  रहता  है
 एक  ओर  तो  व्यक्ति  ईश्वर  की उपासना  करता  है 
 दूसरी  ओर  मन  तरह  तरह के  भ्रम  और  भय  को स्थान देता  है 
इस  प्रकार  के  व्यक्तियों  पर  गृह नक्षत्रो शकुन  अपशकुन 
का  ज्यादा  प्रभाव  होता  है 
यह  व्यक्ति  में  ईश्वरीय  शरणागति  भावना 
नहीं  होने  के  कारण होता  है 
जो  व्यक्ति  ईश्वर  पर  पूरा  विश्वास  रख कर  
प्रबल  पुरुषार्थ से कार्य  करता  है  
 उसके सारे  कार्य  बिना  मुहूर्त  देखे  ही  श्रेष्ठ  मुहूर्त  में 
निष्पादित हो  जाते है इसलिये  ईश्वर  को  महाकाल 
के  रूप में  भी  संबोधित  किया  गया है