धनवान होना अलग बात है
सम्पन्न होना अलग बात है
धनवान के पास धन होता है
परन्तु धन के साथ मन हो साधन हो ,विचार हो
योजना हो संकल्प हो आवश्यक नहीं
धन से प्रत्येक वस्तु मिल आवश्यक नहीं
धन से ज्ञान ,यश रिश्ते
नहीं ख़रीदे जा सकते
धन के सहारे जो रिश्ते बनाये जाते है
वे रिश्ते आत्मीयता विहीन और क्षण भंगुर होते है
स्वार्थ उसकी बुनियाद होती है
धन से चापलूसो कि फौज खड़ी कि जा सकती है
प्रशंसको और हितेषियों कि नहीं
धन से चरित्र और स्वास्थ्य भी नहीं खरीदा जा सकता है
अनेक अवसरों पर पर्याप्त धनवान व्यक्ति
सद्व्यवहार के अभाव में अधिक
धन देने को तत्पर होने के बावजूद
वांछित वस्तु क्रय नहीं कर पाता
और वांछित वस्तु ऐसे व्यक्ति को उपलब्धि हो जाती है
जो सम्पन्न होता है
सम्पन्नता कई प्रकार कि होती है
वैचारिक ,चारित्रिक ,साधनो की ,भू सम्पदा ,
सामाजिक प्रतिष्ठा ,विश्वसनीयता से जुडी सपन्नताये
महत्वपूर्ण होती है
बहुत से ऐसे लोग होते है
जिनके पास आत्मीयता और प्रेम कि सपन्नता
प्रचुर मात्रा में होती है
जिनके पास आत्मीयता और प्रेम कि सम्पन्नता होती है
उन्हें अपनों से से सहयोग प्राप्त होता है
वह सहयोग जो बड़े -बड़े धनवान को भी
दुर्लभ होता है इसलिए धनवान नहीं सम्पन्न बनो