Wednesday, May 20, 2015

उत्तम वस्तु और दृष्टिकोण

कई बार हम अपने दिमाग में किसी वस्तु के बारे में क्रय किये जाने का संकल्प करके बाजार जाते है दुकान में प्रवेश करने के बाद विक्रेता हमारी मन पसंद वस्तु बताते हुए कहता है कि बाबूजी आप भले ही अपनी मन पसंद वस्तु खरीद लेना परन्तु एक नई वस्तु भी मै बताना चाहुगा पसंद आये तो विचार कर लेना जैसे ही विक्रेता हमें वह वस्तु बताता है देखते ही हम वह वस्तु भूल जाते है जिस वस्तु को खरीदने की मानसिकता बना कर आये थे  यह एक तरफ तो दूकानदार की विक्रय करने की कुशलता का द्योतक है वही दूसरी और हमारी सीमित सोच और वास्तविक तथ्य में भिन्नता दर्शित करता है जरुरी नहीं की उत्तम वस्तु वह हो जो जिसको हम पसंद करते है हो सकता है की सर्वोत्तम वह हो जिसके बारे में हम जानते नहीं है