कथा में हो रहे धार्मिक और मार्मिक उपदेशो से
श्रोताऔ के भाव आखो में अश्रु के माध्यम से निकल रहे थे
कथा वाचक संत की संवेदनाये
प्रवचनों के द्वारा मुखरित हो रही थी
कथा होने के उपरान्त एक बूढी महिला ने
जीर्ण शीर्ण वस्त्रो से रखी अपनी पोटली में से
महाराज को भाव स्वरूप ५०० रूपये की राशि भेट की
जो उन्होंने चुपचाप ग्रहण कर ली
थोड़ी ही देर पश्चात एक प्रवासी भारतीय द्वारा
भूत काल में दिए गए दान की प्रशस्ति मंच पर
उद घोषित हो रही थी
अपनी कीर्ति सुन कर प्रवासी भारतीय सज्जन
फुले नहीं समा रहे थे
उनके अहंकार की तुष्टि और पुष्टि हो रही थी
बूढी वृध्दा लकड़ी को टेक टेक अपने पोते को कथा से लिए घर की ओर
भाव विभोर हो चली जा रही थी
कथा वाचक संत की संवेदना मात्र
प्रवासी भारतीय व्यक्ति की महादानी प्रवृत्ति को
नमन कर रही थी
बस मेरे मन में एक चुभता सवाल था कि
क्या संत की उपदेशो में दर्शित संवेदना
कृत्रिमता का आवरण लिए थी ?
वृध्दा के भाव मौन होकर भी भगवत सत्ता की
अनुभूति से मन को अभिभूत अभी भी करा रहा है