Wednesday, January 6, 2016

भीतरी शान्ति

जो व्यक्ति भीतर से  शांत होता होता है 
वह शान्ति बाहर नहीं ढूँढता है 
बाहर शान्ति ढूँढने के लिए
 मंदिर तीर्थ स्थलो पर नहीं भटकता 
अपने भीतर की शान्ति में डूबा रहता है
 भीतर की शान्ति में रहते 
आत्मतत्व से जुड़ा रहता है 
जो व्यक्ति भीतर से जितना अशांत होता है 
वह शान्ति हेतु बाहरी साधनो को ढूढता है 
शान्ति के बाहरी कृत्रिम साधनो से 
उसे क्षणिक शान्ति ही मिल पाती है 
चिर स्थाई शान्ति प्राप्त करना 
हर किसी के लिए संभव है 
भीतर से शांत
 हर व्यक्ति नहीं रह सकता 
भीतर से शांत वही व्यक्ति रह सकता है 
जिसने धर्म को धारण किया हो 
मन कर्म वचन से एक हो 
वह चाहे कितनी भी प्रतिकूलता में हो 
विचलित नहीं होता है 
ऐसे व्यक्ति को ध्यान मग्न होने में
 समय नहीं लगता क्योकि भीतर से शांत होने से उसका चित्त  एकदम से स्थिर हो जाता है
ईश्वरीय शक्तियों का सामीप्य उसे प्राप्त होता है 
अनुभूतियों की प्रखरता का स्तर उच्च होने से 
उससे नकारात्मक  या सकारात्मक दोनों प्रवृत्तियाँ 
छुप नहीं सकती