Wednesday, January 27, 2016

एक वृक्ष सौ पुत्र के समान क्यों?

शास्त्रो में वृक्ष को सौ पुत्रो के समान कहा गया है
 ऐसा क्यों? 
ऐसा इसलिए की पुत्र प्राप्ति के लिए 
विवाह करने के पश्चात 
दाम्पत्य जीवन का पालन करना पड़ता है 
उसकी शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारिया उठानी पड़ती है उसके बावजूद वह योग्य और समर्थ बन गया तो 
वह बुढ़ापे में साथ छोड़ कर 
आजीविका कमाने हेतु अन्यत्र चला जाता है 
साथ छोड़ देता है 
पिता वृद्धावस्था में पुत्र के सुख से
 वंचित रह जाता है यह तो तब होता है
 जब पुत्र संस्कारित हो 
परन्तु पुत्र अयोग्य निकल जाए तो
 कुसंस्कारों से युक्त व्यसनों से ग्रस्त होकर 
पिता को जीवन भर कष्ट देता रहता है 
 पुत्र पराश्रयी होकर
 पिता और परिवार पर भार बन जाता है 
जबकि वृक्ष को अंकुरित करने के लिए 
मात्र तनिक नियमित जल थोड़ा खाद ही 
कुछ दिनों के लिए देना पड़ता है 
बड़े होने पर वृक्ष कही नहीं जाता 
फल फूल छाया देता रहता है 
जहा भी रहता है 
वातावरण में प्राण वायु प्रवाहित करता रहता है 
कितना भारी तूफान आये जब तक वह खड़ा है
 उसके आस पास निर्मित मकान सुरक्षित रहते है
 और सुखी लकडिया गिरा कर 
शीत में ऊष्णता देता है 
शीतल छाया देकर ग्रीष्म में 
शीतलता प्रदान करता है 
वृक्ष जिस मकान पास रहता है 
उस मकान के सारे वास्तु दोष समाप्त हो जाते है मकान प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित हो जाता है