त्याग और निर्माण

जीवन का यह कटु सत्य है कि 
किसी भी निर्माण के पीछे 
किसी का बलिदान होता है 
गुरु अपने शिष्य को पूर्णता
 प्रदान करने के लिए 
अपने सुख चैन त्याग कर देता है 
अपना सम्पूर्ण ज्ञान अनुभव
 शिष्य पर उड़ेल देता है 
                 माता पिता अपने बच्चों के लिए
 कितने त्याग करते है 
तब जाकर संतानो का
 जीवन निखर पाता है
 बीज मिटटी में दब कर 
अपने अस्तित्व को पूर्ण रूप से
 मिटा कर एक पौधे को अंकुरित करता है
 जो समय के साथ घना और छायादार
 फलो से भरा वृक्ष बन जाता है
 यदि बीज यह तय कर ले कि
 वह अपने अस्तित्व को बचाकर रखे तो
 कभी भी वृक्ष रूपी विशालता 
उसके भीतर से प्रकट नहीं हो पाएगी
 त्याग से महान लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते है
 महान पुरुषो का जीवन देखे तो
 किसी ने देश और समाज के 
उत्थान के  लिए अपने  मूल्य वान  समय का 
किसी ने रिश्तों का 
किसी सुखो का 
तो किसी ने स्थान और धन सम्पदा का
 त्याग किया है समय आने पर
 वे प्राणों का त्याग करने से भी नहीं चूके है