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Saturday, October 7, 2017

व्यक्ति की अवस्था

मन जब अबोध और मासूम होता है तब बच्चा कहलाता है 
बच्चा जैसे जैसे समझने लगता है 
सांसारिक जटिलताओं से निपटने  के लिए 
कुटिलताओ  सीखने की कोशिश में बच्चा किशोर हो जाता है
किशोरवय में कई भटकाव होते है 
भटकाव में व्यक्ति सम्हाल जाए तो जीवन संवर जाता है 
संघर्षो की राह पकड़ किशोर जीवन की ऊंचाइयों को पाता है 
भटकाव में व्यक्ति भटक जाए बहक जाए तो वह पतित होकर 
अनैतिक साधनो को अपनाने लगता है अपराधी बन जाता है 
कोई भी व्यक्ति जो मासूम और अबोध और बच्चा होता है 
कब अपराधी बन जाए उसे पता ही नहीं च लता 
अपराध को ही अपनी नियति मान लेता है 
किशोर अवस्था में जो जैसा बन गया जैसा ढल गया 
वैसा ही उसका जीवन मुकाम पाता है
कोई व्यक्ति कठिनाइयों से कमजोर 
तो कोई व्यक्ति कठिनाईयो में निखार जाता है
कोई व्यक्ति सुविधाओं में सम्बल  पाता है 
तो कोई व्यक्ति सुविधाओं में दुर्बल हो जाता है
अभावो में किसी की प्रतिभा निखर जाती है 
तो किसी व्यक्ति की प्रतिभा अभावो में दम तोड़ देती है
जीवन में समताये कम है विषमताएं ज्यादा है 
कभी परिस्थितिया व्यवस्थाएं बन जाती है 
तो कभी परिस्थितियां विवशताये बन जाती है