Tuesday, January 15, 2019

संक्रांति

संघर्ष जीवन की नियति है संघर्ष के बिना सफलता की कल्पना नही की जा सकती है इस दुनिया मे ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसने जीवन मे दुख नही देखा है लेकिन इतिहास उसी का बनता है जिसने दुख देखने के बाद संघर्ष करके सफलता पाई है दुख से कातर व्यक्ति किसी व्यक्ति की करुणा सहानुभूति पा सकता है पर यही करुणा सहानुभूति उस व्यक्ति को कमजोर बना देती है इसलिए आवश्यकता से अधिक सहानुभूति व्यक्ति मानसिक रूप से अशक्त बना देती है धीरे धीरे वह दूसरे की दया पर आश्रित हो जाता है संघर्ष शील व्यक्ति सफलता प्राप्त नही होती तब तक निरन्तर कर्मरत रहता है संघर्ष के पथ पर एक मुकाम ऐसा आता जब व्यक्ति विचलित होने लग जाता है लक्ष्य समीप हो तो ऐसा विचलन अधिक मात्रा में होने लगता है तब व्यक्ति की धैर्य की परीक्षा होने लगती है उस परिस्थिति में जिस  व्यक्ति ने धैर्य नही खोया वह ही विजेता कहलाता है मंतव्य से गंतव्य की यात्रा के क्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है इसी यात्रा को हम संघर्ष यात्रा या संक्रमण का दौर कह सकते है यह हमारे जीवन के परिवर्तन का दौर मौन क्रांति का परिचायक होता है इसे ही हम संक्रांति के नाम से संबोधित कर सकते है संक्रांति अर्थात सकारात्म दिशा में परिवर्तन
इसलिए हम परिस्थितियों में आक्रांत नही स्वस्फूर्त ऊर्जा से भरपूर रहे संक्रांत रहे । यह सक्रांति का भाव ही हमारे उत्थान करेगा