तू सपनो में लिप्त रहा, हुई चोट पर चोट
जैसा जिसका भाव , ठीक वैसा ही भव
वैसे ही सब लोग मिले , वैसा ही सम्भव
विद्या से विनम्र हुआ , प्रज्ञा से है धन्य
भीतर से है भींग गया ,प्राणों से चैतन्य
भावो में ही बसा रहा, होता वह भगवान
हुआ भाव से शुन्य यहाँ, वो कैसा इन्सान