परिवर्तन और प्रगति की बात करना और उसे जीवन मे अपनाना साकार करना। दोनों अलग अलग बात है । कितने क्रांति और प्रगति पर भाषण देने वाले जब उन्हें साकार और क्रियान्वित करने की बात आती है तो पीछे हट जाते है । इस प्रकार ही वर्तमान में राजनैतिक पाखंड सहित समाज मे तरह तरह के पाखण्ड चल रहे है । यथास्थिति से जनित जड़ता को समाप्त करने के लिये सुदृढ़ संकल्प और साहस के साथ प्रखर पुरुषार्थ की आवश्यकता रहती है । उपरोक्त गुणों का समावेश उस व्यक्ति में ही सम्भव है ।जिसमे नैतिकता के साथ सत्य पर प्रतिबध्द रहने की सामर्थ्य होती है। राजनैतिक, सामाजिक , तथा विविध प्रकार प्रकार सत्ताओ से टकराने के साहस होता है । प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिये यथास्थिति के मौन को तोड़ना आवश्यक है। यह कल्पना नही की जा सकती कि एक ही दिन में सब कुछ ठीक हो जायेगा। प्रगति और परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया हैं।विशेषकर बहुआयामी परिवर्तन किया जाना हो तो उसमें कठोर परिश्रम के साथ दीर्घकालीन धैर्य की जरूरत रहती है । जल्दी बाजी परिवर्तन की अपेक्षा करना उचित नही है ।इस प्रकार के प्रयासों से विपरीत परिणाम देखने को मिलते है ।