सामान्यत किसी भी परिवार में का एक व्यवसाय होता परिवार में जितने भाई होते है
वे सभी एक ही प्रकार के व्यवसाय में संलग्न रहते है
तथा एक ही प्रकार की कार्य कुशलता उनमे पाई जाती है
परिणाम स्वरूप एक सीमा के बाद एक ही परिवार के भाइयो के बीच
व्यवसायिक स्पर्धा प्रारम्भ.हो जाती है
ऐसी स्थिति में परिवार के व्यवसाय में वृध्दि के स्थान पर व्यवसाय में ठहराव तथा
परिवार के सदस्यों में परस्पर विद्वेष भाव पनप जाता है
परिवार में सामंजस्य स्थापित करते हुए
किस प्रकार से व्यवसायिक कुशलता प्राप्त की जाय
परिवार में.सौहार्द का भाव कैसे बनाए रखा जाए
इन प्रश्नों के उत्तर महाभारत के पांडव भाइयो में निहित है पांडव भाइयो मे परस्पर जितना सौहार्द तथा अपने अपने क्षेत्र में जितने कुशल थे
वैसा अनुपम उदाहरण इतिहास में मिलना मुश्किल है
पांडवो में सबसे बरिष्ठ भ्राता युधिष्ठर सत्य वादिता एवं द्युत क्रीडा में पारंगत माने जाते थे
वे घनघोर प्रतिकूल परिस्थतियो में स्थिर भाव में रहने की सामर्थ्य रखते थे उनका यह गुण अज्ञातवास ,कुरुक्षेत्र में युध्द के दौरान काम आया
दूसरा भाई भीम का पाक कला में प्रवीण गदा युध्द का महारथी अत्यंत बलशाली होना उनके जीवन में आई सभी चुनौतियों को सुलझाने में
काम आया
तीसरा भाई अर्जुन का धनुर्विद्या में तथा नृत्य कला में प्रवीण होना
तत्कालीन परिस्थितियों में पांडवो के लिए वरदान सिध्द हुआ
इसी प्रकार चतुर्थ भ्राता नकुल
तलवार चलाने का कौशल्य होना दुर्लभ था
पाचवे भ्राता सहदेव अश्वपालन तथा अश्व संचालन में
दक्ष होना महाभारत युध्द में प्रयोग किये जाने वाले मुख्य वाहन अश्वो की देख रेख के लिए
अति महत्वपूर्ण थे इसलिए परिवार की सफलता के लिए सभी सदस्यों में भिन्न -भिन्न क्षेत्रों में प्रतिभा एवं कुशल प्रबंधन आवश्यक है
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