नदी कि धारा कि तरह हो जीवन
जिसमे बहता हुआ हो आज
निखारा हुआ हो कल
लहरो कि तरह हो उमंगें
लहरो कि तरह हो उमंगें
जो नीचे गिरने पर भी
उठने को हो आतुर
पर्वत कि चोटियों कि उंचाइयो सी
महती आकांक्षा
जिसमे नभ छूने के हो हौसले
सागर कि गहराईयो सी हो प्रीत
सागर कि गहराईयो सी हो प्रीत
जिसमे डूब जाए कोई प्रियतम
पवन कि चंचलता सी हो स्फूर्ति
पवन कि चंचलता सी हो स्फूर्ति
तन मन में जो नस नस में भर दे चेतना
और भर पुर ऊर्जा
पखेरू सी उड़ती हुई हो कल्पनाये
जो सपनो को देखती ही नहीं हो
उन्हें बाहो में भर लेती हो
हो चन्द्रमा सी मन में हो शीतलता
हो चन्द्रमा सी मन में हो शीतलता
जो बिखरा दे परिवेश में शान्ति और सद्भाव
प्रकृति के अनेक रूपो और प्रतीकों सा रहे
मेरा मन चिंतन
तभी तो प्रकृति रूपी माता का मै सुत कहलाऊ
प्रकृति माँ कि गोद में रह कर
तभी तो प्रकृति रूपी माता का मै सुत कहलाऊ
प्रकृति माँ कि गोद में रह कर
जीवन में सहज ही अध्यात्मिकता पा जाऊ
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