जहा प्रेम होता है
वहा आत्मीयता होती जहा आत्मीयता होती है
वहां आत्मीयता पूर्ण सम्बोधन होते है
परन्तु आत्मीयता हो न हो
फिर भी व्यवहार में मधुरता सदा आवश्यक है
इसी मधुर व्यवहार को
व्यवहार कुशलता कहा जाता है
व्यवहार कुशलता जीवन प्रबंधन के लिए
सदा आवश्यक है
आत्मीय जन से प्रेम प्रगट करने के लिए
तो सभी लोग सद व्यवहार दर्शाते है
व्यवहार कुशल वे लोग होते है
जो अपने विरोधियो से भी
मधुर वाणी से संवाद स्थापित कर लेते है
ऐसे व्यक्तियो को व्यवहार कुशल कहा जाता है
कटु कर्कश शब्दों में कहा गया सत्य
सत्य को सही स्थान पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकता है सत्य को प्रतिष्ठा दिलवाने के लिए आवश्यक है कि सत्य को सौम्य स्वरूप में उजागर किया जाय
तब आलोचक यह नहीं कह पायेगे
तब आलोचक यह नहीं कह पायेगे
कि वह व्यक्ति सत्य बोलता है
पर कड़वा बोलता है
इसलिए वेदों में भी कहा गया है कि
सत्यम ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्
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