भगवान् शिव के मंदिर में शिव जी के दर्शन ज्योतिर्लिंग के रूप में होते है
ज्योतिर्लिंग अर्थात निराकार ईश्वर जिसका कोई आकार नहीं हो
जो ज्योति स्वरूप हो ज्योतिर्लिंग के रूप में उसकी मंदिर में स्थापना का उद्देश्य यह नहीं है
कि हम अनावश्यक कर्मकांड में लिप्त रहे
अनावश्यक कर्मकांड से मुक्ति से मानव रहे
इसलिए ज्योतिर्लिंग की आराधना
प्रकृति में सहज उपलब्ध जल एवम बिल्ब पत्र से की जाती है
हम देखते है की शिव जी के ज्योति स्वरूप की परिक्रमा पूर्ण रूपेण नहीं की जाती है
हठ योग में ज्योति के समक्ष साधक द्वारा की गई साधना को त्राटक कहा गया है
त्राटक साधना के साधक को अद्भुत परिणाम प्राप्त होते है
शिव जी के ज्योति स्वरूप के दर्शन करने के बाद यह विधान है
कि मंदिर के गर्भ गृह के बाहर आकर नंदी के नेत्रों के स्तर तक आकर दर्शनार्थी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करे
इसका यह तात्पर्य यह है कि
नंदी जी निराकार ईश के समक्ष समर्पण भावना को द्योतक है
समर्पण के अभाव में ईश्वरीय तत्व से साक्षात्कार नहीं हो सकता है
इसलिए साधक की नंदी के समान समर्पण भावना बनी रहे
इस प्रक्रिया को शिव मंदिरों ज्योतिर्लिग के समक्ष नंदी को दंडवत करते हुए बताया गया है
यदि हम शिव मंदिर में दर्शन करते हुए उपरोक्त भावना को आत्मसात कर पाए
तो शिव के ज्योति स्वरूप से सहज ही साक्षात्कार संभव है
अन्यथा हमारा जीवन अनावश्यक आडम्बरो में पडा रहेगा
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