Tuesday, December 31, 2013

आप किसे पाना चाहते हो ?

संसार में ईर्ष्या भी है प्रीत भी
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाने चाहते हो 
संसार में आनंद भी है अवसाद भी 
यह आप पर निर्भर है आप किसे पाना चाहते हो 
संसार में लोभ भी है संतोष भी
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो 
संसार में भोग और रोग भी है योग भी  
यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो
संसार में  संस्कार भी है विकार भी
 यह आप पर निर्भर है कि  किस और जाना चाहते हो 
संसारिक सम्बन्धो में सौहार्द भी है कलह भी 
यह आप पर निर्भर है कि आप किसे निभाना चाहते हो 
सबंधो में स्वार्थ भी है परमार्थ भी है 
यह यह आप पर निर्भर है  
आप किस भाव को अपने व्यक्तित्व में समाना चाहते हो 
संसार में सम्भावना भी है शून्य भी 
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो



Saturday, December 28, 2013

आत्म परीक्षण

व्यक्ति कितना ही कमजोर हो 
वह खुद को शक्तिशाली ही समझता है 
व्यक्ति कितना ही मूर्ख हो 
वह खुद को बुध्दिमान समझता है 
व्यक्ति कितना ही अल्पज्ञानी हो 
वह स्व यम को विद्वान समझता है 
व्यक्ति कितना ही अकुशल हो 
वह स्व यम को प्रवीण समझता है 
व्यक्ति कितना ही कटु भाषी हो 
वह स्व यम को मृदु भाषी मानता है 
व्यक्ति कितना ही अशिष्ट और असभ्य हो 
वह स्व यम को  शिष्ट और दूसरो को अशिष्ट समझता है
 चाहे संतान कितनी मुर्ख हो 
माता पिता को दुनिया में सम्पूर्ण प्रतिभा 
अपनी संतान में दिखाई देती है
व्यक्ति कितना ही दुष्ट हो 
  वह विश्व में सबसे अधिक धर्मात्मा स्व यम को मानता है 
व्यक्ति कितना ही कायर हो 
दुनिया का वीर पुरुष स्व यम को मानता है 
इस दुनिया में ऐसी कोई स्त्री नहीं होगी 
जो कुरूप होने के बावजूद स्व यम को सुन्दर न माने 
ऐसा इसलिए है कि 
व्यक्ति स्व यम का परिक्षण नहीं करना चाहता है 
अपनी आलोचना उसे बुरी लगती  है 
दुसरे व्यक्तियो द्वारा रखी गई परीक्षा प्रणाली उसे अधूरी लगती  है 
इसलिए स्व यम के आलोचक स्व यम बनो 
भ्रान्तियो के आधार पर ही न सपने बुनो

Thursday, December 26, 2013

संन्यास और भक्ति

वृत्ति का सम्बन्ध व्यवसाय और कार्य से है 
प्रवृत्ति का सम्बन्ध स्व भाव से है 
निवृत्ति वह शब्द है जिसे पाकर मुक्त होना है
मुक्ति कहा है यहाँ 
हर तरफ चिंताये  और चिताये है 
भस्म तन को ही होना है  
विरक्ति में वैराग्य है त्याग है
भक्ति का सम्बन्ध समर्पण से है
समर्पण क्या त्याग से बड़ा है ?
त्याग से संन्यास है और समर्पण से भक्ति
संन्यास से मुक्ति है और भक्ति से शक्ति 
संन्यास में उपाय है और भक्ति निरुपाय है 
बिन उपाय सब कुछ भक्ति से ही मिलता है 
भक्ति में भावनाए है भावुक विव्ह्वीलता है
इसलिए हे मनुज तुम भक्त बनो 
रहो पूर्णतया  समर्पित न यूं ही विरक्त बनो

Monday, December 16, 2013

क्षमताये और साधन

व्यक्ति कितना ही अकिंचन हो निर्धन हो 
उसके पास भी क्षमताये और साधन है 
यह बात अलग है कि 
व्यक्ति को अपने में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता 
जिन व्यक्तियो को स्वयम कि क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता 
वे सदा अभावो ,असुविधाओ का रोना रोते रहते है
प्रश्न यह है कि 
व्यक्ति को स्वयं में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान कैसे हो ?
इस हेतु क्या उपाय किये जाए ?
बिना ईश्वरीय कृपा के यह सम्भव नहीं है 
ईश्वरीय कृपा सभी को प्राप्त नहीं होती है 
जीवन से पलायन करने से नहीं 
ईश्वरीय कृपा ईश्वर द्वारा दिए गए जीवन में आस्था प्रगट करने से होती है 
प्रत्येक विषय और व्यक्ति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण 
अपनाने से आस्था प्रगट होती है 
बहुत से लोग यथार्थ में हम देखते है 
जिनके पास संसाधनो कि कोई कमी नहीं है 
पर्याप्त क्षमताये विदयमान है  परन्तु उन्हे इस तथ्य कि जानकारी नहीं है 
हमारे चित्त में आत्मा में अन्तः करण  में थोड़ा सा भी ईश्वरीय प्रकाश है 
उस परम दीप्ती और आलोक से हमारे भीतर कि चेतना जाग्रत होने लगती है 
जो हमारी क्षमताओ का समुचित उपयोग 
और उसका विस्तार करने में सहायक होती है

Friday, December 13, 2013

गरीबी क्या है ?

गरीबी क्या है ?
गरीबी को अलग अलग लोगो ने अलग तरह से
 परिभाषित किया है 
गरीबी के लिए मानक निर्धारित किये गए 
गरीबी के लिए तय किया गया है कि एक गरीब 
व्यक्ति कि प्रतिदिन कि आय क्या होनी चाहिए 
परन्तु क्या यही सत्य है कि गरीबी को मात्र व्यक्ति 
कि आय से जोड़ा जाय यदि ऐसा है 
तो प्राचीन काल में जितने भी ऋषि मुनि वनो में रहते थे 
जिनकी कोई आय नहीं थी वन पर निर्भर थे क्या गरीब थे 
बिलकुल नहीं वे तो अध्यात्मिक सत्ता के प्रतीक थे 
राज सत्ता के लिए मार्ग दर्शक थे 
वास्तव में गरीबी का आधार मात्र आय नहीं हो सकता 
स्थान परिवेश जीवन शैली से 
गरीबी कि परिभाषाये निरंतर बदलती रहती है 
गरीबी के लिए मानसिक स्थितिया भी उत्तरदायी होती है
व्यक्ति में संतुष्टि का स्तर क्या है 
किस व्यक्ति कि आवश्यकता किस प्रकार कि है 
यह सब गरीबी को समझने के लिए अनिवार्य है 
पर इन सब बिन्दुओ पर दृष्टिपात कौन करता है 
गरीबी को तो लोगो ने समाज सेवा का माध्यम बना लिया है 
कुछ लोगो के लिए गरीबी रोजगार का साधन है
 ग्रामीण परिवेश में गरीबी के लिए अलग मानक होंगे तो कस्बो में भिन्न 
महानगरीय जीवन शैली में व्यक्ति कि अधिक आय भी 
उसके अभावो को दूर नहीं कर सकती 
इसलिए गरीबी निर्धारण के लिए 
कोई सीधी और सरल रेखा नहीं हो सकती

आम आदमी

वर्त्तमान  में हुए चुनावो में आम आदमी को 
चर्चा का विषय बना दिया है 
आम आदमी के लिए प्रसन्नता का यह विषय है कि 
उसके नाम पर एक राजनैतिक दल का उदय हो गया है 
आम आदमी के साथ समस्या यह रही है कि 
उससे जुडी समस्याओ से जुड़ कर हर कोई राजनीति में 
आगे बढ़ना  चाहता है अपना कद और हैसियत बढ़ाना चाहता है 
पर आम आदमी वही रह जाता है 
और आम आदमी को पायदान बनाने वाला आगे बढ़ जाता है 
आखिर आम आदमी है क्या ?हम आम आदमी किसे कहेंगे ?
आम आदमी कि पहचान क्या है?
 इस दुविधा को दूर करने के लिए 
आम आदमी के हाथ में झाड़ू थमा दी गई है 
और उसके सिर पर टोपी रख दी गई है 
तो क्या मात्र टोपी पहन लेने से कोई आम आदमी हो जाता है 
अब तो लोगो में आम आदमी बनने के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी है
 जो किसी जमाने में ख़ास आदमी बनने के लिए 
हुआ करती  थी अभी तक यह माना जाता था कि 
आम आदमी याने आम +आदमी  अर्थात जो मीठे आम कि तरह 
मीठा जिसको आराम से खाया जा सके 
जिसे सरलता से सभी जगह पाया जा सके 
परन्तु जब से आम आदमी के नाम से 
राजनैतिक दल का उदय हुआ 
यह धारणा भी बदल गयी ऐसी स्थिति बन चुकी है 
कि न तो उगला जा रहा है न ही निगला जा रहा 
आम आदमी के कारण ख़ास आदमी परेशान ही नहीं हैरान है

Tuesday, December 10, 2013

वैचारिक दीवारो में कैद व्यक्ति

जितने व्यक्ति विश्व में भौतिक दीवारो में कैद नहीं है 
उससे कई गुना व्यक्ति वैचारिक दीवारो में कैद है 
व्यक्ति स्वयम द्वारा रची गई वैचारिक दायरे के बाहर 
न तो निकलना चाहता है 
और नहीं कुछ देखना चाहता है 
इसलिए ऐसे व्यक्तियो का चिंतन स्वस्थ  कैसे रह सकता है 
व्यक्ति यदि वैचारिक दृष्टि से कैद रहे तो 
उसका दृष्टिकोण अत्यंत संकुचित रहता है 
वैचारिक कैद से मुक्त होना प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है 
स्वयम के मत को ही सही मान लेना 
अन्य के विचारो को नहीं सुनना 
व्यक्ति में पूर्वाग्रह और दुराग्रह का कारण है 
जीवन में नए और ताजे विचारो को पाने का यत्न करना 
स्वयम के व्यक्तित्व को सवारने हेतु उपयोगी होता है 
विश्व में महानतम व्यक्तियो कि जीवनियों कि ओर 
  जब  हम दृष्टि पात करते है 
तो उन्होंने अपने विरोधियो के विचारो को भी 
ध्यान से और धैर्य से सुना  है
सभी प्रकार के धर्मो संस्कृतियों सिद्धांतो के साहित्य को पढ़ा  है 
उन्होंने ही नित नए विचारो को पाया है 
और नया ही कुछ गढ़ा  है
 वैचारिक उदारता का तात्पर्य यह नहीं कि 
 हम दिशाहीन हो जाए 
हमारी मौलिकता ही समाप्त हो जाए 
वैचारिक उदारता हमारी इसी में है कि 
हमारे जीवन में चिंतन में नवीन विचार अंकुरित होते रहे
 किसी भी विषय पर सभी दृष्टिकोण से देखे परखे 
इस प्रक्रिया में हम यह पायेगे कि 
हम जिस निष्कर्ष पर पहुचे है वह बिलकुल सही है 
वह सभी मापदंडो के अनुरूप है

Tuesday, December 3, 2013

मित्रो में शत्रु

निष्क्रिय व्यक्तियो के न तो शत्रु होते है न ही आलोचक 
व्यक्ति के चारो और शत्रुओ के संख्या में वृध्दि हो रही हो 
इसका सदा नकारात्मक आशय नहीं निकाला जा सकता 
व्यक्ति जब प्रवाह के प्रतिकूल चलता है 
उत्थान कि और अग्र सर होता है तो 
जाने अनजाने कितनी ही विपदाओ से सामना करना पड़ता है 
न चाहते हुए भी उसके अनगिनत शत्रु बन जाते है 
परन्तु यह भी सत्य है  ऐसे व्यक्ति के जिस अनुपात में शत्रु होते है 
उसी अनुपात में मित्र और समर्थक भी तैयार हो जाते है 
हम  समाज में ऐसे बहुत से ऐसे व्यक्तियो को पहचानते है 
जिनका कोई शत्रु नहीं होता 
फिर ऐसे व्यक्ति के साथ अनपेक्षित घटनाएं घटित होने लगती  है 
इसका कारण यह है 
ऐसे व्यक्ति ने अपने मित्रो कि संख्या में तो काफी वृध्दि कर ली 
पर मित्रो में कौन उसके प्रति शत्रु भाव रखता है 
उसे समझ नहीं पाया परख नहीं पाया 
विश्वास घात कि घटनाएं भी ऐसे व्यक्ति के साथ ही होती है 
जो बहुत अधिक मित्रो से घिरा होता है 
मित्रता के कवच में अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है 
इसलिए इस बात को चिंता नहीं होनी चाहिए कि 
हमारे कितने कम मित्र है 
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि 
हमारे कितने मित्र विश्वसनीय है 
चिंता इस बात कि नहीं होनी चाहिए
 कि हमारे कितने अधिक शत्रु है 
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि 
कही हमारे मित्रो में कोई शत्रु तो नहीं है

Wednesday, November 27, 2013

महर्षि पाणिनि

महर्षि पाणिनि का संस्कृत व्याकरण में 
बहुत बड़ा योगदान है 
उनके बाल्य काल कि घटना है 
उनके गुरु ने उनकी हस्त रेखा देखकर 
बताया कि उनके हाथ में विद्या कि रेखा नहीं  है 
वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने 
गुरूजी से प्रश्न किया कि 
विद्या कि रेखा हथेली में कौनसे स्थान पर पाई जाती है 
गुरूजी द्वारा बताये जाने पर वे नदी के तट पर गए 
और उन्होंने एक तिकोना पत्थर उठाया
तद्पश्चात अपने हाथ में विद्या रेखा बनाने का यत्न करने लगे 
उनके हाथ लहू -लुहान हो गए थे 
तभी गुरूजी ने उन्हें आकर समझाया कि
ऐसे कोई विद्या कि रेखा बनती है 
विद्या कि रेखा तो प्रारब्ध और पुरुषार्थ से उन्पन्न होती है 
महर्षि पाणिनि ने उनके आराध्य देव भगवान् महादेव कि
 तपस्या कि भगवान् महादेव ने उनकी 
तपस्या से प्रसन्न होकर इच्छित वर माँगने को कहा 
महर्षि पाणिनि ने उन्हें ज्ञान का वर माँगा 
भगवान् महादेव द्वारा डमरू बजाते हुए उन्हें  जो सूत्र दिए वे
 अष्ट अध्याय के पहले सूत्र बने 
महर्षि पाणिनि ने उन सूत्रो को आधार बना कर आठ अध्याय में संस्कृत व्याकरण के सारे सूत्रो को समेट लिया 

Monday, November 25, 2013

व्यवसाय कल्पना आशियाना

व्यक्ति कि कल्पना उसके द्वारा किये गए व्यवसाय और
 कार्य पर निर्भर करती  है यह अनुभव भवन निर्माण में आता है  
व्यक्ति जीवन भर  कि कमाई का उपयोग एक आशियाना 
बनाने में खर्च कर देता है एक बार एक रिटायर्ड स्टेशन मास्टर के 
निवास स्थान पर जाने का प्रसंग आया अवसर था गृह -प्रवेश  का मकान के प्रत्येक कौने से  उन्होंने आगंतुकों को अवगत कराया 
लगता था उन्होंने रेलवे का प्लेटफार्म बना दिया है सीढ़िया ऐसी लग रही थी जैसे  ओवर ब्रिज से एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म 
पर जा रहो हो कमरे ऐसे लग रहे थे जैसे रेल के डिब्बे ,मकान का का अग्र  मानो किसी ट्रैन कि प्रतीक्षा कर रहा हो इसी प्रकार एक शिक्षक के मकान कि आकृति विद्यालय या पाठ शाला जैसी प्रतीत हो रही थी सेवानिवृत्ति के पश्चात बोध हो रहा था कि मानो उन्होंने निजी विद्यालय खोल दिया है कमरो का परिचय ऐसे करा रहे थे जैसे कोई कमरा प्रधाना ध्यापक को हो तो कोई कमरा प्रयोगशाला या कोई कक्ष पुस्तकालय  एक बार एक सेवानिवृत्त सैनिक ने उनके भवन के गृह प्रवेश के अवसर पर आमंत्रित किया भोजन के पश्चात मकान कि भौगोलिक स्थिति से परिचित कराया दूसरी मंजिल पर ऊँची ऊँची दिवाले जिन पर कोई छत नहीं थी देखकर लगा कि दुश्मन 
देश कि सेना से प्रतिरक्षा  के लिए बंकर र बना रखा हो कमरो कि आकृति बैरक नुमा लग रही थी 

भ्रम निवारण का उपाय

भ्रम कई प्रकार के होते है
 व्यक्ति का स्वयम कि क्षमता के बारे में भ्रम होना 
स्वयम को अति क्षमतावान और बुध्दिमान मान लेने का भ्रम 
दूसरे व्यक्तियो कि क्षमताओ को अधिक या अल्प 
मान लेने का भ्रम 
दोनों प्रकार के भ्रम का निवारण होना आवश्यक है 
रामायण में जब सीता  जी कि खोज हेतु 
वानर सेना सहित श्रीराम हनुमान लक्ष्मण 
सुग्रीव अंगद सिंधु के किनारे किंकर्त्तव्य  विमूढ़  अवस्था में बैठे थे 
तब यह ज्ञात होने पर कि लंका जो उस पार है
 रावण ने सीता जी  को वहा 
अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है 
समुद्र कि चौड़ाई ज्ञात होने पर कि
 समुद्र शत योजन अर्थात चार सौ कोस है 
जांबवान को अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए
 समुद्र लांघ जाने में विफल होने का भ्रम था 
अंगद को मात्र अपनी क्षमता को अल्पता  का भ्रम था 
परन्तु हनुमान जी जो न तो अधिक उतावले थे 
और न ही किंकर्त्तव्य विमूढ़ को किसी 
प्रकार का भ्रम नहीं था 
परन्तु हनुमान जी कि क्षमता पर सभी लोगो को विश्वास था 
ऐसे क्षमतावान पराक्रमी पर
  विश्वास  व्यक्त करने का ही परिणाम ही था
 कि सीता रूपी लक्ष्य कि प्राप्त कर सके
आशय यह है जहा भ्रम  रहता है वहा सफलता प्राप्त नहीं होती 
सीता रूपी लक्ष्य तभी प्राप्त होता है 
जहा भ्रम  विहीन विश्वास  से युक्त ऐसी क्षमता विदयमान हो  
जिसे प्रभु राम जैसे ईश का आशीष प्राप्त हो  
इसलिए हनुमान जी के  स्मण  मात्र से सारे भ्रम दूर हो जाते है 

Friday, November 15, 2013

तू श्रीराम को पा जाएगा

भगवान् के भव् में भाव होते है 
भाव बिन अभाव रहता है 
भावो से प्रभाव होता है 
भावो से भावनाए होती है 
भावुकता एक अच्छे इंसान के ह्रदय में पलती  है 
दिल जब टूटता है भावनाए जलती है 
भावनाए पिघलती है
भाव विहिन्  चेहरा पत्थर  और निर्जीव  पाषाण कहलाता है 
भावनाओ से भरा व्यक्तित्व निष्प्राण में भी चेतना जगाता है 
भावनाओ के बल पर व्यक्ति हर मंजिल  और मुस्कान पाता  है 
भावनाओ के धरातल पर 
भगवान् भी इस जहां में इंसान बन कर आता है 
भगवान् प्रसाद का नहीं भावो का भूखा है 
भावो के जल के बिना यह जग मरुथल है  रूखा है 
भावो के दीप है भावो के सीप है 
भावो के पंछी है नभ भी समीप है 
भावो से कल्पनाये है ,भावो से वन्दनाएं है
भाव नहीं हो पूजन में तो व्यर्थ सारी  साधनाये है
भावनाए निश्छल हो तो हर व्यक्ति राम है 
भावनाए दुर्बल हो तो लक्ष्य भी गुमनाम है 
भावो के कैलाश पर शिव भी विराजमान है 
इसलिए जहा तक सम्भव हो भावनाए सुधारो 
भावो से विह्विल हो परम पिता  परमात्मा को पुकारो 
यह सच है भावो से खिंच कर तेरा प्रभु तेरे समीप आयेगा 
निषाद राज केवट कि तरह तू  प्रभु श्रीराम को पा जाएगा

Saturday, November 2, 2013

महालक्ष्मी पूजा के निहितार्थ

अकेली महादेवी लक्ष्मी उल्लू पक्षी पर आरूढ़ रहती है 
अर्थात जो व्यक्ति मात्र धन के पीछे भागता है 
लालच वश वह मुर्ख बन कर ठगा जाता है
हम  ऐसे कई लोगो को पहचानते है जिन्होने धन लोलुपता के कारण 
गलत प्रकार से गलत योजनाओ में धन का निवेश किया और 
अपने जीवन भर कि कमाई गँवा बैठे
जब महादेवी लक्ष्मी भगवान् विष्णु के साथ रहती है 
भगवान् विष्णु कर्म के देव होने से उनकी अनुगामिनी हो जाती है 
जहां कर्म है वहा धन के स्त्रोत अपने अपने आप उत्पन्न  हो जाते है 
यथार्थ में  हम ऐसे कई लोगो को देखते है 
जो एक समय कुछ भी नहीं थे 
उनके पास किसी प्रकार कि धन सम्पत्ति नहीं थी 
परन्तु कर्मरत रहने से धीरे धीरे वे सम्पन्न होते चले गए
महालक्ष्मी जब भगवान् गणेश के साथ रहती है तो 
धन  के साथ ऐश्वर्य भौतिक सुख आरोग्य कि प्राप्ति   होती है
गणेश के साथ महालक्ष्मी की  पूजा से 
स्थिर लक्ष्मी सहज ही प्राप्त हो जाती है 
इसलिए महालक्ष्मी पूजा के समय उपरोक्त तथ्यो को  
याद रखना आवश्यक है

Wednesday, October 30, 2013

महा सरस्वती ,महालक्ष्मी , महाकाली

महा देवियो में महा सरस्वती महालक्ष्मी  
महाकाली मान्य है 
महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के मध्य में
 विराजित होती है 
सभी लोग इस चित्र को देखते है पूजते है 
 परन्तु महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के मध्य में 
विराजित क्यों रहती है ?
इस रहस्य को जानने और समझने का 
कोई प्रयास कोई नहीं करता 
प्राचीन काल से हमारे ऋषि मुनि तरह तरह से
 जीवन में अध्यात्मिक उपलब्धियों के साथ -साथ 
भौतिक उपलब्धियों को सहेजने के सूत्र बताते आये है 
हमने उन्हें समझने और सीखने के पूर्व ही 
पूजना  प्रारम्भ कर दिया 
आज इस महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के चित्र को ही परिभाषित करने का प्रयास करते है 
महालक्ष्मी धन कि प्रतीक होती है 
महाकाली शक्ति और महा सरस्वती विद्या ज्ञान 
और सद बुध्दि कि प्रतीक  होती  है
जब  धन को बुध्दि का सरंक्षण प्राप्त होता है 
तो उसका संवर्धन होता है 
और जब धन को शक्ति का सरंक्षण प्राप्त होता है 
तो उसका सुरक्षा होती है 
ऐसा धन जिसे शक्ति का सरंक्षण प्राप्त नहीं हो
 उसका  हरण  हो जाता है 
अपराधी तत्वो के हाथो पहुच जाता है 
बुध्दि और ज्ञान का सरंक्षण जब धन को प्राप्त होता है 
धनवान व्यक्ति उसे सही प्रकार से निवेश करता है 
व्यसनो में लिप्त नहीं होता 
सही प्रकार से निवेश किये जाने से 
धन में संवर्धन होने लगता है 
तब धन सम्पदा में दिन दुगुनी 
और रात चौगुनी वृध्दि होने लगती  है 
इसलिए महालक्ष्मी  को   महा सरस्वती  और महाकाली कि सुरक्षा दी गई है 

Monday, October 28, 2013

नेतृत्व

नेतृत्व  वह गुण है 
जो समूह  की  शक्ति को जाग्रत करता है 
संगठित शक्ति देश हो समाज या कोई संस्था हो 
 में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है 
नेतृत्व का सम्बन्ध लोग राजनीति से जोड़ते है 
जबकि यह तो नेतृत्व का एक पक्ष है 
नेतृत्व के कई आयाम होते है 
नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति को 
नेता के रूप सम्बोधित किया जाता है 
जबकि कोई औद्योगिक का प्रबंधक 
जब मजदूरो यंत्रियों उपयंत्रियो के कार्य कौशल्य का 
बेहतरीन इस्तेमाल करता है 
प्रत्येक श्रमिक यंत्री लिपिक कि 
व्यक्तिगत क्षमताओ के बीच समुचित सामंजस्य
 समन्वय स्थापित करता है 
तो समग्र  व्यक्तिओ कि क्षमताओ एकत्रितकरण से 
जो ऊर्जा प्रस्फुटित होती है 
तो देखते देखते ही छोटी सी औद्योगिक ईकाई 
विशाल औद्योगिक समूह बन जाता है 
अकेले व्यक्ति द्वारा अपनी प्रतिभा के अनुसार कार्य करना आसान है 
बहुत से व्यक्ति व्यक्तिगत क्षमता के कारण 
किसी क्षैत्र में निपुणता से कार्य करते है 
परन्तु नेतृत्व क्षमता के अभाव  में वे 
बहुत से लोगो से कार्य नहीं ले पाते है 
नेतृत्व के गुण से परिपूर्ण व्यक्ति भले 
अपनी कार्य क्षमता का अच्छा प्रदर्शन  न कर पाये पर 
वह अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य कि क्षमता का 
समुचित दोहन कर कीर्तिमान बना लेते है 
                    अच्छे नेतृत्व के परिवेश के ऐसे कई उदाहरण है 
                     उनसे प्रेरणा ग्रहण करने कि आवश्यकता है
 

Friday, October 25, 2013

कल्पना

नदी कि धारा कि तरह हो जीवन 
जिसमे बहता हुआ हो आज 
निखारा हुआ हो कल
लहरो कि तरह हो उमंगें 
जो नीचे गिरने  पर भी 
 उठने  को हो आतुर 

पर्वत कि चोटियों कि उंचाइयो सी 
महती आकांक्षा
 जिसमे नभ छूने  के हो हौसले
सागर कि गहराईयो  सी हो प्रीत
 जिसमे डूब जाए कोई प्रियतम
पवन कि चंचलता सी हो स्फूर्ति
 तन मन में जो नस नस में भर दे चेतना 
और भर पुर ऊर्जा 

पखेरू सी उड़ती  हुई हो कल्पनाये
 जो सपनो को देखती ही नहीं हो 
उन्हें बाहो में भर लेती हो
हो चन्द्रमा सी मन में हो शीतलता 
जो बिखरा दे परिवेश में शान्ति और सद्भाव 

प्रकृति के अनेक रूपो और प्रतीकों सा रहे 
मेरा मन चिंतन
तभी तो प्रकृति रूपी माता का मै  सुत  कहलाऊ
प्रकृति माँ कि गोद में रह कर 
जीवन में सहज ही अध्यात्मिकता  पा जाऊ

Monday, October 21, 2013

पुण्य-लघु कथा

पवित्र नदी  के किनारे जब सब लोग स्नान कर पूजा पाठ कर रहे थे| मूर्तियों का विसर्जन कर नारियल प्रवाहित कर नदी के घाट  पर कर्मकांड में व्यस्त थे| तभी एक व्यक्ति आया जिसके पास एक जोड़ कपडे थे| जो भी उसने पहन रखे थे पहने हुए कपडे उतार कर वह नदी में कूद पडा| ताजगी लिए लिए नदी से बाहर निकला |शरीर  को पोछने के लिए कोई वस्त्र नहीं होने के कारण वह धूप  में इधर -उधर टहलने लगा |थोड़ी ही देर में उसके शरीर  से पानी सूख चुका था और उसके द्वारा स्नान पूर्व धोया हुआ बनियान भी |उसने धुप में सूखे बनियान को पहना और वहा -वहा दृष्टि पात किया जहा थोड़ी ही देर पहले लोग पूजा कर पूजा सामग्री छोड़ गए थे| उस व्यक्ति को अवशेष के रूप में पड़ी पूजा सामग्री में दस रूपये का नोट नजर आया |इधर -उधर लोगो की निगाह से बचते हुए वह नोट चुपचाप अपनी जेब में रख लिया |उसको नदी के किनारे से कोई पुण्य  प्राप्त हुआ हो या नहीं जीने के लिए थोड़ा सा आर्थिक संबल प्राप्त हो चुका था |

Thursday, October 17, 2013

जीवन में शिक्षा का महत्व

किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का अत्यधिक महत्व होता है
 व्यक्ति की बौध्दिक क्षमता उसके द्वारा ग्रहण की गई 
शिक्षा पर निर्भर करती है 
व्यक्ति कितनी भी आयु और अनुभव प्राप्त कर ले 
उसके द्वारा शिक्षा के प्रति की गई उपेक्षा   तकलीफ देह होती है 
व्यक्ति का प्रत्येक वस्तु  व्यक्ति विषय को समझने  नजरिया
परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
 उसके शैक्षणिक योग्यता को परिलक्षित करता है 
जो लोग यह सोचते है की शिक्षा मात्र रोजगार पाने का साधन है
 भारी त्रुटी करते है 
अल्प शिक्षित व्यक्ति कभी भी उच्च स्तर  के विचारों का 
सृजन नहीं कर सकता 
शिक्षा पाने के  ओपचारिक और अनौपचारिक तरीके हो सकते है 
ज्ञान का उच्च स्तर  ओपचारिक शिक्षा का मोहताज नहीं होता 
कला कौशल साहित्य संगीत में निपुणता 
अनौपचारिक शिक्षा से अत्यंत कारगर तरीके पाए जा सकते है
 अनौपचारिक शिक्षा में भले व्यक्ति को कोई
उपाधि प्राप्त न हो 
परन्तु अध्ययन में समर्पण और रूचि होने के कारण व्यक्ति में 
काल्पनिकता और आविष्कार प्रवृत्ति का उद्भव होता है 
 अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति अपने 
निम्न कोटि के सोच के फलस्वरूप 
एक स्तर के ऊपर सोच ही नहीं सकता 
अनौपचारिक शिक्षा के का कारण 
जो सद्गुरुओ  के सान्निध्य में रह कर
 तुलसी सूर कबीर मीरा ने वो साहित्य रचा 
जो केवल पाण्डित्य  पूर्ण ज्ञान से प्राप्त नहीं हो सकता

समस्या प्रबंधन

लोग अलग अलग समस्याओं के लिए 
अलग ग्रहों की शान्ति के उपाय करते है
कुछ लोग राहू  केतु तो कुछ लोग शनि मंगल ,को 
प्रसन्न करने के लिए ज्योतिषियों से मंत्रणा करते है
भूल जाते है की नव गृह का मुखिया सूर्य देव है
 फिर क्यों नहीं लोग मात्र सूर्य की उपासना से 
अपने सारे कष्ट कर लेते है 
समझदार व्यक्ति समस्याओं के निवारण के लिए
 समस्याओं की परिधि को स्पर्श न कर 
समस्याओं के केंद्र का संधान करते है
 इससे व्यर्थ के परिश्रम में अपव्यय होने वाली ऊर्जा से 
बचा जा सकता है 
जीवन समस्याओं से घिरा हुआ है
 परन्तु सभी समस्याओं  की जड़ 
कोई एक मुख्य समस्या हुआ करती  है 
मुख्य समस्या हल होते ही शनै शनै आनुषांगिक समस्याए 
निराकृत होने लगती  है
 इसलिए समस्याओं से उबरने का सही उपाय है
 मुख्य समस्या का समाधान करे 

Wednesday, October 16, 2013

महान तपस्वी महर्षि अगस्त्य

महर्षि अगस्त्य महान तपस्वी थे कहा जाता है 
की उन्होंने अपने तपोबल के द्वारा 
अपने आश्रम की सीमाओं को बाँध रखा था 
महर्षि अगस्त्य की अनुमति के बिना कोई भी निशाचर 
उनके आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकता था 
महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल के गुरु थे 
एक बार विन्ध्याचल पर्वत निरंतर 
अपनी उंचाई बढाता जा रहा था 
निरंतर ऊंचाई पाने के कारण 
सृष्टि में अन्धकार छाता जा रहा था 
जीव जंतु व्याकुल होते जा रहे थे
विन्ध्याचल पर्वत की ऊंचाई रोकने के सारे प्रयास विफल हो गए थे उस समय देवताओं के आग्रह पर
 लोक कल्याण के हित में महर्षि अगस्त्य 
जो उत्तर भारत में निवास रत थे ने 
दक्षिण भारत की और प्रस्थान किया
 रास्ते में उनका शिष्य विन्च्ध्याचल पर्वत 
निरंकुश गति से ऊंचाई ग्रहण करते हुए मिले 
महर्षि अगस्त्य ने विन्ध्याचल से रास्ता देने को कहा
 और वापस लौटने तक उसी स्थिति में रहने का आदेश दिया 
लोक कल्याण में महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत से 
वापस दक्षिण भारत से आज तक नहीं लौटे
 कहते है वह स्थान दतिया जिले में सेवढा  तहसील के समीप आधारेश्वर महादेव के निकट स्थित है 
 महर्षि अगस्त्य के बारे में कहा जाता है की 
उन्होंने लोक हित में समुद्र को पी लिया था 
जिसमे राक्षसों ने शरण ले रखी  थी
ऐसे महान तपस्वियों की तपो भूमि हमारा देश रहा है 
जहा उत्तरी भारत को योगियों की भूमि कहा गया है 
वही  दक्षिण भारत को तपस्वियों की तपो भूमि कहा जाता है 

Saturday, October 5, 2013

सीधे बनो सच्चे बनो अच्छे बनो

पुरानी धारणा यह थी की सीधे लोगो का ज़माना नहीं है 
परन्तु आधुनिक अवधारणा यह है 
की सीधे लोगो का ही ज़माना है 
सीधे लोग की अपेक्षा वे लोग अधिक नुकसान उठाते है 
 जो कपटी और धूर्त होते है 
क्योकि कपटी और धूर्त लोगो के मित्र कम और शत्रु अधिक होते है 
हितैषी कम और अहित की कामना करने वाले अधिक होते है 
सीधे मार्ग पर चलने वाला पथिक विलम्ब से ही सही गंतव्य पर पहुँच जाता है जबकि सफलता के लिए संक्षिप्त मार्ग अपनाने वाला राही राह से भटक जाता है उसे डाकू लुटेरो का ख़तरा रहता है 
सीधे व्यक्ति पर कोई भी सहज विश्वास कर सकता है 
त्रुटी होने पर भी सद्भावना के कारण दया पात्र हो जाता है 
इसके विपरीत चालाक व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता है
 कोई भी महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौपे जाने पर
 उसके कृत्यों पर निरंतर लोगो की निगाह रहती है 
त्रुटी किये जाने पर उसके साथ 
अपराधी जैसा बर्ताव किया जाता है 
यह उपधारणा की जाती है 
उसने गलती जान बूझ कर की होगी है 
इसलिए सीधे बनो सच्चे बनो अच्छे बनो 

Monday, September 23, 2013

सत्य क्या है

सत्य क्या है और असत्य क्या है 
स्थान परिवेश और समय के साथ साथ 
सत्य और असत्य के स्वरूप बदल जाते है 
कभी असत्य सत्य के आवरण में हमें दिखाई देता है 
तो कभी सत्य का सूरज बादलो की ओट  में
 निस्तेज और प्रभावहीन दिखाई देता है 
परन्तु जिस वक्तव्य से लोक कल्याण हो 
आत्मा की उन्नति हो वह किसी  भी रूप में हो 
वह वास्तविक सत्य होता है 
सत्य बोलने में तात्कालिक लाभ नहीं मिलता
 दूरगामी परिणाम अच्छे होते है 
जबकि असत्य भाषण से तात्कालिक लाभ 
भले ही कोई हासिल कर ले 
दूरगामी परिणाम आत्मघाती होते है 
असत्य भाषण करने वाले व्यक्ति द्वारा कही गई
 हर बात संदिग्ध दिखाई देती है 
ऐसे व्यक्ति को अपनी बात को सत्य प्रमाणित करने के लिए 
तथ्य रखने पड़ते है 
इसलिए कहा जाता है कि 

न च सभा यत्र न सन्ति वृध्दा
        वृध्दा न ते येन न वदन्ति धर्म
धर्म सानो यत्र न सत्य मस्ती
     सत्य न तत  यत  छल नानुम वृध्दिम 


सत्य के स्वरूप को जानने समझने के लिए 
एक दृष्टि की आवश्यकता होती है 
जिसे अनुभव ज्ञान एवं प्रज्ञा की दृष्टि कही जा सकती है 
ऐसी दृष्टि को  शिव के तीसरे नेत्र की उपमा दी जा सकती है 
जिस व्यक्ति को शिव  की तीसरे नेत्र की प्राप्त हो चुकी हो
उसे सत्य पर आधारित पहचाने में तनिक भी देर नहीं लगती 

Friday, September 20, 2013

उपयोगिता और व्यक्ति का मुल्य

व्यक्ति हो वस्तु  हो या हो कोई प्राणी 
उसका महत्त्व उसकी उपयोगिता से होता है
उपयोगिता एक बार किसी व्यक्ति द्वारा प्रमाणित कर दी जाए 
तब उसकी अनुपस्थिति एक प्रकार की रिक्तता 
और अभाव की अनुभूति देती है 
जो व्यक्ति परिवार समाज परिवेश में 
अपनी उपयोगिता प्रमाणित नहीं कर पाया हो 
वह महत्वहीन हो जाता उसके रहने या रहने से 
किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता
व्यक्ति की उपयोगिता ही उसका मुल्य निर्धारित करती  है
 इसलिए हमें अपना सही मूल्यांकन करना हो तो 
यह विश्लेषण करना होगा की हमारी उपयोगिता क्या है 
जिस व्यक्ति ने स्वयम का मूल्यांकन और विश्लेषण नहीं किया 
उस व्यक्ति में सुधरने  की कोई संभावना नहीं होती 
ऐसा व्यक्ति न तो किसी के काम आ पाता  है 
और नहीं स्वयं के काम का रह पाता  है 
इसलिए जीवन व्यक्ति के उत्थान का सबसे सरलतम मार्ग यह है
हम परिवार समाज और परिवेश के लिए उपयोगी  बने 
एक बार हमारी उपयोगिता प्रमाणित हो जावेगी 
तब लोगो को हमारी उपस्थिति अनुपस्थिति का अहसास होगा
 तब हमारा व्यक्तित्व अमुल्य हो जावेगा

Thursday, September 19, 2013

सेवा निव्रत्ती और संकट

लक्ष्मीनारायण जी के अत्यंत दुर्बल स्वास्थ्य के बावजूद उन्हें एक तारीख को अपनी पेंशन  लेने जाना पडा ,कड़कती हुई सर्दी में सुबह सुबह जाने के कारण उन्हें शरीर  में लकवा मार गया लक्ष्मीनारायण  जी ने जीवन भर शासकीय शिक्षक की नौकरी की सेवा निवृत्ति के पश्चात वे अपने बेरोजगार और बालबच्चेदार पुत्र नरेश के साथ निवास कर रहे थे |नरेश जो विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई में रूचि न रख अनावश्यक बातो में ध्यान देता था| रिश्तेदारों की सलाह मानकर लक्ष्मीनारायण जी ने नरेश का विवाह कर दिया तब से नरेश का एक मात्र उद्देश्य जनसंख्या वृद्दि में योगदान रह गया था| पढ़ाई अच्छी नहीं होने की वजह से नरेश की नौकरी भी नहीं लगी थी |कार्य के प्रति समर्पण के अभाव में लक्ष्मीनारायण जी के अथक प्रयास के बाद कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाया था |ऐसे में पेंशन की आवश्यकता लक्ष्मी नारायण जी से अधिक नरेश और उसके परिवार को अधिक थी प्रत्येक माह की एक तारीख का इंतज़ार उसे सदा रहता था| संकट यह नहीं था की लक्ष्मीनारायण की स्वास्थ्य कैसे ठीक होगा परेशानी नरेश के सामने यह थी की लक्ष्मी नारायण जी के ठीक न होने पर और असमय दिवंगत होने पर नरेश और उसके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा |

Wednesday, September 18, 2013

सर्वांगीण विकास के द्वार

बहु तेरे इंसान भाग्य और भगवान् को दोष देते है 
हर असफलता के लिए स्वयं का मूल्यांकन न कर 
परिस्थितियों को उत्तरदायी ठहराते है 
सफलता मिलने  अहंकार से युक्त हो जाते है 
तथा सफलता का श्रेय स्वयम के पुरुषार्थ को देते है 
इसी प्रकार की प्रवृत्ति वर्तमान में युवा पीढ़ी में भी पाई जाती है 
की वे अपनी  स्थितियों के लिए अपने माता पिता  को कोसते है 
ऐसी परिस्थितियों में ऐसे व्यक्तियों के शीश  से 
भगवान्  और भौतिक माता -पिता  आशीष हट जाता है
 और वे जहा   जाते है दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता है
 इसलिए सफलता प्राप्त करने  का सर्वश्रेष्ठ मार्ग यह है
 की भगवान् भाग्य और माता पिता  को दोष देना छोड़ कर 
उनका आशीष साधना और सेवा  कर प्राप्त कर 
इसमें कर्म के प्रति अहंकार का भाव समाप्त  होगा 
आशीर्वाद से ऊर्जा प्राप्त होगी ऊर्जा से पुरुषार्थ और पुरुषार्थ से 
जीवन में सर्वांगीण  विकास  के द्वार  खुलते जायेगे

Tuesday, September 10, 2013

मिटटी की महिमा

मिट्टी  से प्रतिमा है बनती मिटटी से बनता है घर
मिटटी में ही  मिल जाएगा अहंकार अब तू न कर

मिट्टी  में है तेरा बचपन मिटटी पर है तू निर्भर
मिटटी में भगवान् रहे है मिटटी में रहते शंकर

मिट्टी   से माता की  मूर्ति मिट्टी  से लम्बोदर
मिटटी खाए कृष्ण कन्हैया मिटटी को हांके हलधर

कही छाँव है कही है धुप माटी  का है उजला रूप
माटी  के भीतर  है ऊर्जा माटी से तू अब न डर

Sunday, September 8, 2013

श्रीकृष्ण बलराम संवाद


http://www.mavericksonlineden.com/forwards/pictures/HappyJanmashtami/HappyJanmashtamiBalram.jpg 

यमुना तट पर बैठे भगवान् श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम श्रीकृष्ण से बोले की कृष्ण त्रेता युग में मै  तुम्हारा अनुज लक्ष्मन था | तब मै  तुम्हारी आज्ञा का पालन करता था तुम्हारी रक्षा में संलग्न रहता था |वर्तमान युग द्वापर में मै  तुम्हारा ज्येष्ठ हूँ फिर भी मुझसे ज्यादा निर्णायक भूमिका तुम्हारी है |
तुम अधिक पूज्य हो आखिर बड़े भाई होने का मुझे क्या लाभ ? 
भगवान् श्रीकृष्ण बोले !दाऊ  त्रेता युग में जब मेरे अनुज लक्ष्मन थे | 
तब तुम बार क्रोधित हो जाते थे, छोटी छोटी बाते तुम्हे विचलित कर देती थी, तब मै  तुम्हे शांत कर देता था, भैया भारत को और परशुराम को देखकर तुम कितने उत्तेजित हो गए थे |उत्तेजना वश मेघनाथ से युध्द करने के कारण तुम अचेत हो गए थे |वर्तमान में भी दाऊ आप कभी    सुभद्रा हरण के प्रसंग पर क्रोधित हो जाते हो तो कभी महाभारत युध्द में भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा तोड़े जाने पर  क्रोधित हो जाते हो | निर्णायक क्षणों में तीर्थाटन पर निकल जाते हो और मै  रामावतार में भी विचलित नहीं होता था |और इस अवतार में भी क्रोधित नहीं निर्णायक क्षणों में मै  मूक दर्शक नहीं रहता | समस्याओं से पलायन नहीं करता,उनके बीच में रह कर उन्हें सुलझाने के सारे उपाय करता हूँ |सज्जनों का सरंक्षण कर उनका मार्ग प्रशस्त करता हूँ, उन्हें नेत्रत्व प्रदान कर समाज को सही दिशा प्रदान करता हूँ |जहा भी मेरी आवश्यकता पड़ती मै तुरंत पहुँच जाता हूँ |इसलिए भैया छोटे या बड़े होने का कोई अर्थ नहीं जो समाज परिवार और राष्ट्र में अपनी भूमिका को समझ पाता है वही अधिक  पूज्य होता है