गुरु करुणा के पुंज रहे, गुरु पथ के है दीप
गुरु श्रोता बन सुन रहे , जीवन के हर कष्ट
सुनते सुनते रोग मिटे ,कष्ट हो गए नष्ट
गुरु शिष्यों से बोल रहे , खोल रहे है भेद
खुलते रहते अर्थ नये, मुक्त हुआ भव कैद
यूँ तो पृथ्वी गोल रही , रहा भू मण्डल डोल
गुरु तत्व है खींच रहा, कहता शास्त्र खगोल
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