गणेश जी का व्यक्तित्व जहा हमे स्थिरता का सन्देश देता है वहीं कार्तिकेय का व्यक्तित्व निरन्तर सक्रियता और भ्रमण शीलता की प्रेरणा प्रदान करता है l गणेश जी हमे बताते है कि स्थिर रहो तो इस तरह से कि आप सम्पूर्ण व्यवस्था के केंद्र बन जाओ l आप के बिना कोई व्यवस्था गति न ले पाये l कार्तिकेय बताते कि सक्रिय रहो तो इस तरह से रहो कि यह पृथ्वी ही नहीं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपके पुरुषार्थ को नमन करे l दोनों ही भ्राता शिव और शक्ति के अंश है शिव जहा लोक कल्याण के देवता है वहीं शक्ति दुष्टता का दमन करने वाली देवी है l इसलिए कार्तिकेय जी निरंतर सक्रियता दुष्टता का दमन और उसके मद का हरण करती है , वहीं गणेश जी की स्थिरता शांति स्थापित कर व्यक्ति परिवार समाज और राष्ट्र तथा विश्व को समृध्दि और अन्वेषण की ओर ले जाती है
व्यवहारिक जगत मे बहुत से ऐसे लोगों को जानते है न तो स्थिर होकर कोई भी कार्य नहीं कर पाते है और न हो सक्रिय रह पाते है l ऐसे व्यक्तियों का परिवार समाज मे कोई मूल्य नहीं होता l वही समाज मे ऐसे लोगों को भी देखते है l स्थिर और दत्त चित्त होकर प्रत्येक कार्य करते है वे व्यवस्था के केंद्र होते है l स्थिरता और जड़ता मे भेद होता है l अस्थिरता का तात्पर्य सक्रिय नहीं अपितु अव्यवस्थित दिशाहीनता होती है इसलिये दोनों देव य़ह बताते है कि जड़ता नहीं स्थिरता प्राप्त करो l अस्थिरता नहीं सक्रियता प्राप्त करो l
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