आत्म विश्वास उचित अनुभव और ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है l व्यक्ति का आत्मविश्वास उसकी शारीरिक भाषा , मानसिक स्थिति, बोले गये शब्दो आँखों से परिलक्षित होता है l आत्मविश्वास वह आधार है जो व्यक्ति की व्यवसायिक, प्रशासकीय, राजनीतिक बहुआयामी सफ़लता सुनिश्चित करता है l व्यक्ति में स्वाभाविक आत्मविश्वास होना और कृत्रिम आत्म विश्वास ओढ़ लेना दोनों अलग अलग बात है l क्रत्रिम आत्मविश्वास के सहारे किसी व्यक्ति को अधिक समय तक मूर्ख नहीं बताया जा सकता है l
व्यक्ति जब कृत्रिम आत्मविश्वास ओढ़ कर सम्वाद करता है तो तुरन्त पकड़ में आ जाता है l कृत्रिम आत्मविश्वास व्यक्ति के व्यक्तित्व और व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है l इसलिये व्यक्ति अपने ज्ञान अनुभव और कार्य क्ष्मता के अनुरूप उद्देश्य का निर्धारण करे l स्वयं का अत्यधिक मूल्यांकन कर लेना अत्यधिक हानिकारक है l व्यक्ति को वस्तुस्थिति व्यवसाय या वृत्ति को समझ कर लक्ष्य सुनिश्चित करना चाहिये अन्यथा असफ़ल होने संभावना लगातार बनी रहती है
व्यक्ति बिना अनुभव और ज्ञान के बिना किसी वैकल्पिक योजना बिना किसी से विमर्श किये निर्णय लेता है तो होने वाले दुष्परिणामों के लिये स्वयं उत्तरदायी है l ऐसा व्यक्ति स्वयं की गलतियों के लिये किसी अन्य को उत्तरदायी ठहराने का प्रयास अवश्य करता है ,परंतु यह प्रयास उसके भावी जीवन के लिये घातक ही प्रतीत होते है l
सामान्य रूप व्यक्ति में यह प्रवृत्ति होती है कि सफलता का श्रेय लेना चाहता है , असफ़ल होने पर वह दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियों को दोष देता है l सफल होने वाले व्यक्ति या सफ़ल व्यक्तियों में यह प्रवृत्ति नहीं होती l सफ़लता की और अग्रसर व्यक्ति सकारत्मक प्रवृत्तियों से परिपूर्ण होते है l वे विपदा में अवसर ढूंढते है उनके लिये अभिशाप भी वरदान बन जाते है l सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति सफ़लता का श्रेय खुद नहीं लेते ,भगवान के प्रसाद की तरह बांटते है l कठोर परिश्रम से पाई सफलता को संजोते है
( यह लेख उन लोगों के लिये है जो अनुकरण करना चाहते है)
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