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व्यक्ति का मूल्य उसके संस्कारो विचारो
आचार व्यवहार से होता है।
आखिर ऐसा क्यो होता है ?
कि समान उपाधी धारको मे से एक व्यक्ति शीर्ष पर
दूसरा धरातल पर खडा होता है।
यह परिस्थिति व्यक्ति के गुणो एवम संस्कारो पर
आधारित मूल्य के कारण निर्मित होती है।
केवल ज्ञान के आधार पर व्यक्ति का आकलन
नही किया जा सकता है।
व्यक्तित्व के आकलन के लिये व्यक्ति की क्षमता
,कार्य कुशलता ,विश्वसनियता ,कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता
तथा मानवीय आदर्शो के प्रति आस्था को परखना होता है
इसी प्रक्रिया को साक्षात्कार की संज्ञा दी जाती है
कोई संस्था हो या ओद्योगिक समूह हो
वह कार्य कुशलता के साथ व्यक्ति मे श्रेष्ठ गुणो की अपेक्षा करता है
दुर्गुणो से भरा ज्ञानी व्यक्ति कही भी हो
वह किसी व्यक्ति की विश्वसनियता अर्जित नही कर सकता
वह जहां जाता है ।
स्वयम के साथ संबंधित संस्था की छवि भी खराब करता है।
प्रश्न यह है कि हम अपने व्यक्तित्व मे श्रेष्ठ गुणो को
कैसे समाहित करे।
श्रेष्ठ गुण व्यक्ति मे एका-एक प्रकट नही हो जाते ।
समग्र श्रेष्ठ गुणो को व्यक्तित्व का अंग बनाने के लिये दीर्घ कालिन प्रयास करने होते है।
सत जनो का साथ श्रेष्ठ गुणो के विकास मे उर्वरता प्रदान करता है।
हमारे व्यक्तित्व के विकास मे हमारे परिवेश का
बहुत योगदान होता है।
स्वाभाविक रूप से हमारे व्यक्तित्व का विकास
श्रेष्ठ जनो का साथ पाकर होता जाता है
श्रेष्ठ विद्यालय ,महाविद्यालय ,शैक्षणिक संस्थानो मे अध्ययन एक मार्ग हो सकता है
परन्तु अच्छे बुरे लोग सभी जगह हो सकते है
हमे निरन्तर गुणी जनो का साथ चाहिये तो
हमे गुणहीन तथा दुर्गुणो से घिरे व्यक्तियो से दूर रहने
के यत्न करने होगे ।
दुर्गुणो से घिरे व्यक्तियो का दीर्घकालिन साथ
हमारे व्यक्तित्व की चमक को फीका कर देगा
सत्संग का अर्थ मात्र संत प्रवचन सुनना नही होता ।
सत्संग सतत चलने वाली प्रक्रिया है ।
जिसे हमे अपनी दिनचर्या मे अपनानी होती है