अहंकार भक्ति का शत्रु है
इसके बावजूद व्यक्ति तरह तरह के
इसके बावजूद व्यक्ति तरह तरह के
अहंकार में ग्रस्त तो होता ही है साथ ही वह साधना और भक्ति के क्षेत्र में भी चमत्कार
और वैभव रूपी अहंकार का प्रदर्शन करता है ।
स्वयं को माँ का परम भक्त निरूपित कर जान सामान्य अपनी धाक ज़माना
इसी अहम् भवना का द्योतक है ।
भक्ति के नाम पर चकाचौध रोशनियों से युक्त
बड़ी बड़ी झांकिया जूलूस निकाल कर
अपने सामाजिक और आर्थिक प्रभाव का प्रदर्शन अहंकार का विस्तार ही तो है
अहंकार भावना से युक्त भक्ति एवम् साधक
भले ही सिध्दियां प्रदान कर दे
परन्तु ईष्ट की कृपा का पात्र नही बनाती है
ईष्ट की कृपा तो ईश्वर शरणा गति से ही
प्राप्त की जा सकती है
अहंकार युक्त शक्ति साधना करते समय
व्यक्ति यह भूल जाता है की
माँ जगदम्बा अहंकार का ही आहार करती है ।