हीरालाल का पूरा जीवन जन सेवा एवम् राष्ट्रसेवा में बीता शासकीय सेवक रहते भी वह अपने कर्मचारी भाइयो मदद में लगा रहता था पत्नी की मृत्यु और मातृविहीन एक पुत्री और दो पुत्रो की परवरिश ने उसको समझोता परस्त बना दिया था जीवन में उसके
समस्या सुलझाने के तरीके अनोखे थे वह जैसे ही समस्या सुलझाने के लिए आगे बढ़ता समस्याएं और गहराती जाती हीरालाल इन सभी चीजो से बेफिक्र हो
अपनी कथित राष्ट्र सेवा में लगा रहता हीरालाल एक विशेषता थी की वह सदा उस व्यक्ति के साथ खड़ा रहता जो जीवन में किसी न किसी कारण असफल हो गया हो इसे हीरालाल की सदाशयता कहे या जीवन के प्रति अव्यवहारिक दृष्टिकोण इससे हीरालाल को कोई प्रभाव नहीं पड़ता चरैवेति चरैवेति का मन्त्र का जप करते अपने चुने रस्ते पर चलता रहता आज हीरालाल अपने जीवन के पच्चाहत्तरवे बसंत को पूर्ण कर चूका है परन्तु परेशानिया और जिम्मेदारिया बढती ही जा रही है आलोचक हीरालाल की इस दशा का उत्तरदायी उसे ही मानते है कि हीरालाल ने उन जिम्मेदारिया भी ओढ़ ली जिसे ओढ़ लेना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है परन्तु हीरालाल अपनी धुन पक्का है उसकी मान्यताये धारणाये को ध्वस्त करना इस उम्र में संभव नहीं है
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Sunday, May 24, 2015
एक था हीरालाल
Saturday, May 23, 2015
सपना का त्याग
रतिराम का प्रायश्चित्त
सुन्दर पत्नी दो नन्हे प्यारे बच्चे सरकारी मकान
और नई नवेली मोटर सायकिल खुशहाल जीवन
रतिराम के तीन भाई और थे रतिराम खर्च करने में बहुत उदार था
परिवार का सबसे बड़ा भाई होने के नाते छोटे भाईयो को आर्थिक रूप से स्वालम्बन बनाना वह अपना दायित्व समझता था | पिता अत्यंत निर्धन गाव के सीधे साधे व्यक्ति
मंदिर से घर घर से चाय की दूकान उनकी दिनचर्या बन चुकी थी |आखिर रतिराम जैसा कमाऊ पूत जो पाया था |
धीरे धीरे रतिराम का सारा ध्यान अपनी पत्नी बच्चों से हट सारा ध्यान अपने भाईयो की और चला गया |
आज बीस साल हो गए रतिराम बहुत खुश था |अपने सभी भाइयो को आत्म निर्भर देख कर भाइयो की पत्नी और बच्चों को खुशहाल देख कर पर अगर कुछ नहीं उसके पास तो वे उसके छोटे छोटे बच्चे जो हो गए थे बड़े बिना पिता के सरंक्षण के खो चूका था रतिराम अपनी पत्नी का स्नेह और बच्चों का सानिध्य ||बची थी रतिराम के पास प्रायश्चित्त कि वह भावना कि काश वह भी अपने बच्चों की और दे पाता तो उसने भी पाये होते कमाऊ पूत
Wednesday, May 20, 2015
उत्तम वस्तु और दृष्टिकोण
कई बार हम अपने दिमाग में किसी वस्तु के बारे में क्रय किये जाने का संकल्प करके बाजार जाते है दुकान में प्रवेश करने के बाद विक्रेता हमारी मन पसंद वस्तु बताते हुए कहता है कि बाबूजी आप भले ही अपनी मन पसंद वस्तु खरीद लेना परन्तु एक नई वस्तु भी मै बताना चाहुगा पसंद आये तो विचार कर लेना जैसे ही विक्रेता हमें वह वस्तु बताता है देखते ही हम वह वस्तु भूल जाते है जिस वस्तु को खरीदने की मानसिकता बना कर आये थे यह एक तरफ तो दूकानदार की विक्रय करने की कुशलता का द्योतक है वही दूसरी और हमारी सीमित सोच और वास्तविक तथ्य में भिन्नता दर्शित करता है जरुरी नहीं की उत्तम वस्तु वह हो जो जिसको हम पसंद करते है हो सकता है की सर्वोत्तम वह हो जिसके बारे में हम जानते नहीं है
Sunday, May 17, 2015
Saturday, May 16, 2015
व्यक्तित्व निर्माण की पाठशाला
Tuesday, May 12, 2015
व्यक्ति और व्यक्तित्व
व्यक्ति अपनी छोटी छोटी आदतो पर ध्यान नहीं देता है
जबकि एक ही प्रकार की आदत लंबे समय तक बने रहने पर वह व्यक्तित्व की अंग हो जाती है कई प्रकार की बुरी आदते बुरे व्यक्तित्व का निर्माण कर देता है संसार में जितने भी महान व्यक्तित्व हुए है वे छोटी छोटी बहुत सी अच्छी आदतो के कारण हुए है
व्यक्तित्व निर्माण एक दीर्घ और सतत् प्रक्रिया है
छोटे छोटे प्रलोभनों के कारण हम अपना कितना बड़ा दीर्घकालिक नुकसान कर बैठते है यह हमारे बौने व्यक्तित्व का ही परिणाम है मानसिक दरिद्रता और विकलांगता व्यक्ति के संकीर्ण सोच और सीमित क्षमता का परिचायक है ऐसी संकुचित मनोवृत्ति का व्यक्ति निकृष्ट व्यक्तित्व का प्रतीक होता है
Monday, May 11, 2015
गरीबी ??
आज के युग में सबसे अधिक कोई शब्द प्रचलित हैं तो शायद वह शब्द गरीब होना चाहिये ,
आज - कल लोगों को इससे बहुत लगाव है खासकर के राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही इस एक शब्द पर खडा है कुछ एक दलों ने तो इसी के सहारे सत्ता काे बरकरार रखा गरीब और गरीबी है तो सत्ता है यह मंत्र उन्हे कण्ढस्थ है तो गरीबी तो हटनी ही थी ?
खैर इसके लिये केवल राजनैतिक दलों को पुरा दोष देना भी उचित नही
क्योकि व्यक्ति गरीब पैदा अवश्य हो सकता है पर गरीबी में जीना और मरना यह उसके हाथों में हैं
यदि यहा आप गरीबी का आशय आर्थिक दरिद्रता से ही समझ रहे है तो में आपको स्पष्ट कर दूं की यह बहुत संकुचित अर्थ है और इसका अर्थ तो बहुत व्यापक हे
जैसे
मानसिक दरिद्रता
शारिरक दरिद्रता
और सबका परिचित आर्थिक दरिद्रता
आर्थिक गरीबी पाप नहीं है परन्तु मानसिक गरीबी होना बहुत बडा अपराध है यही वह गरीबी है जो व्यक्ति को आजीवन राजनैतिक दलों की निर्भरता और आर्थिक तंगी का मोहताज बनाये रखती है वरना किस की हिम्मत है कि वह मानसिक्ता सम्पन्न व्यक्ति को मुर्ख बना अपनी सत्ता की रोटिया सेंक सके ?
हमारे देश में तो आर्थिक दरिद्रता का कभी उपहास नहीं बनाया गया एसे कई व्यक्ति हुये जो आर्थिक रूप से भलें ही गरीब रहे हो पर उनकी मानसिक सम्पन्नता ने उन्हे लोकपूजक बना दिया आप स्वयं उन नामों को भलीभातीं जानते है
दुसरी शारिरिक गरीबी में यहा यह स्पष्ट कर दूं की में विकलागंता को शारिरिक गरीबी की श्रेणी में नही रखता क्योकि विकलांगता व्यक्ति की गति कम कर सकती हे पर उसे रोक नही सकती एसे भी कई उदाहरण मिल जायेगे जहॉ शारिरिक चुनौति के बावजुद लोगों ने असम्भव कार्य कर दिखाये है
अत: शारिरिक गरीबी वह है जो व्यक्ति को ईश्वर प्रद्त इस अनमोल सम्पदा के प्रति उदासीन रवैया रखने के परिणाम स्वरूप द्रष्टिगत होता है खैर विषय बहुत लम्बा है और समय कम ..............