मनुष्य विचारशील जीव है
परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के वैचारिकता का स्तर
अलग अलग होता है
निम्न वैचारिक स्तर वाला व्यक्ति संकुचित परिप्रेक्ष्य में
प्रत्येक विषय के बारे में सोचता है
व्यक्ति का जितना वैचारिक दृष्टि से उत्थान होता
उसका दृष्टिकोण उतना ही व्यापक और विहंगम होता जाता है
वैचारिकता के निम्न धरातल पर खड़े रह कर
हमें केवल अपने आस-पास
कि समस्याए और समाधान समझ में आते है
दूरगामी हित और परिणाम हमें दिखाई नहीं देते
आवश्यकता इस बात कि हम अपनी विचार शक्ति को
समग्र उंचाईया प्रदान करे
तभी हम शिखर पर बैठे व्यक्ति के दृष्टिकोण
,व्यवस्थाओ और व्यवस्थाओ से जुडी विवशताओं को समझ पायेगे
तब हमें हमारे परिवेश में व्याप्त विकृतिया ही नहीं
विकृतियों को दूर करने हेतु सही समाधान भी दिखाई देंगे
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