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Sunday, December 4, 2011

भगवान विष्णु




ईश्वर को सदा न्यायकारी कहा जाता है |
भगवान विष्णु को राक्षस पक्षपाती देवता कहते थे |
क्योकि प्राचीनकाल में भगवान् विष्णु सदा देवताओं की सहायता करते थे और राक्षसों का संहार
 ऐसा वे इसलिए करते थे ,की कोई राक्षस स्वर्गलोक के इन्द्रासन पर विराजित न हो जाए|
वे चाहते थे की तत्कालीन सत्ता के सूत्र सज्जन व्यक्ति के हाथो में रहे|
  यदि ऐसा है तो सज्जन एवम दुर्जन सभी समुदायों एवम एवम प्रजातियों में रहते है
राक्षसों में भी प्रहलाद .एवम बलि नामक दैत्य भगवन विष्णु के अत्यंत प्रिय भक्त थे |
वह कौनसे कारण  थे |की भगवान विष्णु ने प्रहलाद को उनका अत्यंत प्रिय भक्त होने के बावजूद इन्द्र का आसन नहीं दिया तथा राजा बलि के इन्द्र बनाने का अवसर छीन  लिया  |
जबकि दोनों उक्त दैत्यों में दैवीय गुण तत्कालीन देवताओ के राजा इन्द्र से अधिक थे|
इसका कोई जबाब किसी तर्क शास्त्री के पास हो या न हो |
मै ऐसा सोचता हूँ की भगवान् कभी पक्षपाती हो ही नहीं सकते|
भगवान विष्णु के पास प्रहलाद एवम राजा बलि को इन्द्र आसन पर आसीन न होने देने का यह कारण था|
की किसी राज्य पर शासन के के लिए राजा का ही नहीं अपितु उसके मंत्री परिषद् में भी गुणवान व्यक्ति होने चाहिए|
 इन्द्रराज की मंत्री परिषद् में इन्द्र देवता से अधिक गुणी देवतागण थे |
जैसे सूर्य ,अग्नि ,वरुण ,वायु ,गुरु , यम इत्यादि जो गुणों में इन्द्र से अधिक ही गुणवान एवम चरित्रवान थे
जबकि राक्षसों में मात्र राजा बलि ,या प्रहलाद ही गुणी थे |शेष दैत्य गुणहीन ही नहीं ,अपितु सुख -चैन के शत्रु थे
वर्तमान में भी देखने में यह आता है की किसी राज्य का या देश का मुखिया बहुत सज्जन व्यक्ति होता है
किन्तु उसके सलाहकार तामसिक गुणों से युक्त होते है 
परिणाम यह होता है पूरी व्यवस्था भ्रष्ट हो जाती है