बेनियाज़ मियाद पार को लेखिका का आत्मानुभव कहे तो ज्यादा अच्छा होगा।लेखिका की आयु 80 वर्ष होना बताई गई है बुजुर्ग व्यक्तियों की आयु जनित अंग शिथिलताओ के साथ मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी पैदा होने लगती है । कहानी में उकेरी गई अनुभूतियो से हमे बुजुगों की मानसिक स्थितियों को समझने में सहायता मिलती है ।कहानी जिस प्रकार से कही गई है उससे पाठक का मन गुदगुदाता है ।
कहानी का संदेश यह है कि कब कोई मानसिक समस्या शारीरिक समस्या बन जाती है हमे पता ही नही चलता ।यह कहानी ऐसे लोगो की अनुभूतियो को शब्द प्रदान करती है ।जो तरह तरह की मानसिक पीड़ाओं से घिरे रहते है और जो अपनी पीड़ा को सही प्रकार से प्रगट ही नही कर पाते है ।कहानी में लेखिका के रूप में प्रकाशन जगत से जुड़ी चिंताओं को इस रूप में प्रगट किया है लेखक को पता ही नही चलता कि उसके द्वारा अभिलिखित कृति से प्राप्त निधि का प्रकाशक द्वारा किस प्रकार व्ययन किया गया है
कहानी हमे इस तथ्य से अवगत कराती है हमारे देश मे कुशल मानसिक चिकित्सक नही होने से और मनोरोगियों को गलत दवाईया दिए जाने से किस प्रकार से मरीज साइड इफ़ेक्ट का शिकार होता जाता है ।