देह के बन्धन मे देहाभिमान है
नेह के बंधन मे परमात्मा विराजमान है
नेह के बन्धन मे ईष्ट की अभिलाषा
आत्मीयता की आस
परम तत्व की प्यास है
देह के बंधन का देह से जुड़ाव होता है
नेह के बन्धन मे आत्मा का पड़ाव होता है
वैचारिक समानता से ही आत्मीयता उदभूत होती है
जहा आत्मीयता होती है
वहा वैचारिकता को खुली छूट मिली होती है
देह से जुडी मोह माया है
दैहिक सम्बन्धो मे काम ,वासना है ,
भौतिक काया है
देह मे नेह कहा होता है
स्नेह में अपनापन है शुभ विचार लगाते गोता है
सुख सम्रद्धि का झरोखा है
देह के सम्बन्ध मे अनगिनत बन्धन है
काया से जुड़े कई क्रंदन है
नेह में रहती मधुरता नेह में स्नेहिल वंदन है
देहाभिमान कहा काम आता है
स्नेह भरा व्यक्तित्व सुख शांती और सम्मान पाता है
आत्मीयता की उर्जा से ही तो व्यक्ति ऊँची उड़ान भर पाता है
नभ पर छाता है
जीवन संगीत गाता है
विकराल समस्याओ के वक्ष पर रख चरण
सर्वोच्च शिखर पर जाता है
इसलिये देह से नेह मत लगाओ
नेह को आत्मा में भरो नेह का रसपान करो,
नेह को आत्मा में भरो नेह का रसपान करो,
स्नेह के सागर मे में डूब कर वैचारिक गोते लगाओ