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Thursday, May 13, 2021

कोरोना वैक्सीनैशन

          जब से कोरोना के विरुध्द वैक्सीनेशन का अभियान चला है । लोगो मे वैक्सीन लगवाने की हौड़ लग गई है । जिन लोगो को वैक्सीन के  दोनों डोज लग गये है ।उनका ही नही उनके पूरे परिवार का आत्म विश्वास चरम पर पर है । उन्हें अपने सम्पूर्ण होने का अहसास होने लगा है ।परिवार वालो का यह कहना है कि उनके परिवार में एक ऐसा व्यक्ति है जिंसको दोनों वैक्सीन लग चुके है ।यह अहसास ठीक उसी प्रकार का प्रतीत होता है ।मानो पुराने जमाने मे किसी भारतीय परिवार का कोई सदस्य विलायत में बैरिस्टर की पढ़ाई करके आया हो ।इस प्रकार  उसके पूरे परिवार को वैक्सीन न लगते हुए भी सभी सदस्यों को वैक्सीन लगने का प्रभाव महसूस किया जा सकता है 
               वैक्सीन लगवाने की हौड़ में अब तो दो प्रकार की वैक्सीनो का तुलनात्मक विश्लेषण करने वाले लोगो की भी कोई कमी नही है । जिंसको जो वैक्सीन लगी है ,वह उसी वैक्सीन का ब्रांड एम्बेसडर बन गया है । उसमे यह सामर्थ्य है कि वह दूसरी वैक्सीन के सारे दोष बता कर उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डाल सके । 
           जब पूरा विश्व वैक्सीनेशन के दौर से उबर चुका था । मात्र भारत जैसे देश मे शिशुओं के टीकाकरण के उपक्रम शासकीय स्तर पर किये जा रहे थे । तब  कोरोना जैसी  महामारी  टपक पड़ी और उसने छोटे बच्चों के साथ बड़ो को भी वैक्सीनैशन की कतार में लाकर खड़ा कर दिया । शुरुआती दौर में कुछ लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाने में संकोच कर रहे थे । जब उन्हें कोई  वैक्सीन लगवाने के लिए कहता था तो वे स्वयम को बहुत अपमानित महसूस करते थे ,परन्तु बाद में जैसे कोरोना से लाशो के ढेर होना शुरू हुए ,हॉस्पिटल से शव लेने के लिए लंबी लंबी लाईने लगने लगी। श्मसान घाटो में टोकन सिस्टम से शवो के अंतिम संस्कार होने लगे ।जब उनकी आंख खुली की वैक्सीन लगवा लिया जाये , तब तक काफी दे हो चुकी थी। जब वे वैक्सीन लगवाने को पहुंचे तो कोविड टीका करण केंद्र पर पंक्ति में कोरोना संक्रमित लोग भी मिले ।  
          अब उन लोगो के बारे में विचार करे जिन लोगो ने अधूरे मन से ही सही पहला वैक्सीन लगवा लिया था। दूसरा लगवाने का मौका आया था वैक्सीन समाप्त हो चुके थे । मात्र एक वैक्सीन का डोज लेने पर उनको ऐसा लगने लगा कि वे अमृत का अधूरा प्याला ही ग्रहण कर सके । काश पूरा प्याला पी पाते इस तरह वे राहु केतु की तरह शेष प्याले नुमा वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के लिए बेतहाशा भटक रहे है । भगवान करे उनकी यह तलाश सीघ्र पूरी हो । ऐसे में यह खबर की एक वैक्सीन कंपनी का मालिक तरह तरह धमकियों से तंग आकर देश छोड़ चुका है वैक्सीनैशन अभियान के लिए खतरनाक मौड़ ले चुका है 
       हमारे एक परिचित ने तो वैक्सीनैशन अभियान की कछुआ चाल को देख कर वैक्सीन लगवाने से बेहतर स्वयम की इम्युनिटी बूस्ट करने की रणनीति बना ली है ।उनका यह मानना है कि वैक्सीन की शरीर में काम करने की भी एक अवधि है । अवधि व्यतीत होने के बाद वैक्सीन जनक प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जावेगी इसलिए वैक्सीन लगवाने से बेहतर है इम्युनिटी बूस्ट करने के स्थाई उपायों के बारे में सोचा जाये । इसी सिलसिले में उन्होंने नाक में नींबू , तेल डालने सहित इतने विकल्पों का अविष्कार किया है कि उनके पास तद विषयक सामग्री पर्याप्त रूप से उपलब्ध है ।निकट भविष्य में वे इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित करवाने के बारे में भी सोच रहे है ,परन्तु उनको कोई प्रकाशक नही मिल रहा है 
     

Tuesday, May 11, 2021

यज्ञ की महत्ता

यज्ञ वातावरण की नकारात्मकता दूर कर उसे विषाणु और जीवाणुओं से मुक्त कर दैविक शक्तियों का आव्हान करता है । जिससे महामारी सहित समस्त अनिष्टों का निवारण होता है । जब से हमारे जीवन से यह वैदिक और दैविक परम्परा समाप्त हुई । 

हमे आपदाओं और महामारियों ने घेर लिया। पहले दैनिक हवन होता था। फिर पाक्षिक हुआ , फिर हवन मासिक ,फिर साल में दो बार नवरात्रियो के समय आजकल तो कोई हवन ही नही करता। जिसके भयावह परिणाम हमारे सामने है।
      उल्लेखनीय है कि विषाणु और जीवाणु सूक्ष्मजीवी होने से दिखाई नही देते । इसका मतलब यह नही है कि वे होते ही नही । उसी प्रकार से दैविक शक्तियां वातावरण में होती तो है  परन्तु दिखाई नही देती । यज्ञ और मंत्रोच्चारण के अभाव में वे निष्क्रिय रहती है । जैसे ही हम वैदिक मंत्रों उच्चारण के साथ यज्ञ करते है वे  चैतन्य और सक्रिय होकर हमारे आस पास एक अदृश्य सुरक्षा चक्र बनाती है । जो हमे उत्तम स्वास्थ्य और समृध्दि प्रदान करती है । 
      कई लोग हवन या यज्ञ से करने से इसलिए बचते रहते है कि यह एक वृहद अनुष्ठान है ।इसमें काफी व्यय होता है । लोगो की यह धारणा गलत है । नियमित या साप्ताहिक हवन में अधिक व्यय नही आता है । किसी को आमांत्रित कर भोजन कराने की आवश्यकता भी नही है । हवन या यज्ञ नितान्त आध्यात्मिक पारिवारिक कार्यक्रम है । इसके माध्यम से विष्णु शिव ब्रह्मा ही नही इंद्र वरुण अग्नि सहित समस्त देवता आमांत्रित होते है और आहुतियों के माध्यम से हविष्य प्राप्त करते है 

Saturday, May 8, 2021

इम्युनिटी

         इम्युनिटी क्या है ?इम्युनिटी कैसे बढ़ती है?इम्युनिटी कहा से आती है ? इत्यादि प्रश्नों के कई जबाब  है ।चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इम्युनिटी  व्यक्ति का उत्तम स्वास्थ्य है जो रोगों से शरीर को लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। 
            इम्यूनिटी सकारात्मक सोच से प्राप्त होती है । इम्युनिटी प्राप्त होती है उचित खान पान और अच्छी आदतों से । इम्युनिटी रहती है आस्तिकता के भाव मे जहाँ से किसी व्यक्ति को आत्मविश्वास मिलता है । इम्युनिटी एक आश्वस्ति का भाव है जो किसी व्यक्ति को आत्मीय लोगो से प्राप्त होता है ।इम्युनिटी रचनात्मक कौशल और समय के सदुपयोग  से मिलती है । इम्युनिटी मिलती है हमे नियमित जीवन और व्यायाम से अच्छे साहित्य के अध्ययन से । इम्युनिटी मिलती है सत्पुरुषों के सत्संग से । इम्युनिटी का स्त्रोत हमारे भीतर है जो हमे कुदरत से प्रेम करना सिखाता है  
                जिन लोगो में आस्तिकता का भाव नही है ,वे आत्मबल से विहीन होते है । जिन लोग का उचित खान पान नही है ,उन्हें पोषण प्राप्त नही होता । स्वाभाविक रूप से उनका स्वास्थ्य कमजोर रहता है । जो लोग नियमित व्यायाम नही करते वे उन्हें अनेक प्रकार की व्याधियों और शारीरिक पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है । 
           जिन लोगो को परिवार और आत्मीय जन से आश्वस्ति का भाव प्राप्त नही होता है वे भीतर से स्वयम को असहाय और अकेले अनुभव करते है । जो लोग सत साहित्य और सत्पुरुषों का सानिध्य प्राप्त नही करते उनके भीतर आत्महीनता की ग्रन्थि निरन्तर सक्रिय रहती है। वे किसी के बारे में अच्छा सोच ही नही सकते । जो व्यक्ति किसी रचनात्मक गतिविधि में लिप्त होकर समय का सदुपयोग नही करता वो तरह तरह की आशांकाओ से ग्रस्त रहता है, निरन्तर नकारात्मक विचार उसे घेरे रहते है । जो व्यक्ति कुदरत के प्रति स्नेह और सरंक्षण का भाव नही रखता वो ईश्वर प्रदत्त  प्राकृतिक वरदानों से वंचित रह जाता है उस व्यक्ति को न तो झरने की कल छल सुनाई देती है और नही वह पंछियो की चहचहाहट का आनंद ले पाता है । उस व्यक्ति को बारिश की शीतलता भी बुरी लगती है वन्य प्राणियों से वह जुड़ाव महसूस ही नही कर पाता है ।भला ऐसे व्यक्ति को इम्युनिटी कहा से प्राप्त होगी 
      इम्युनिटी जीवन की इच्छा शक्ति है । बहुत से लोग ऐसे होते है। जो गम्भीर रूप से रुग्ण होने पर भी मृत्यु को प्राप्त नही होते ।अपनी इच्छा शक्ति के बल पर जीवन मृत्यु के बीच संघर्षरत रहते है और अंत मे वे म्रत्यु को मात देते है । इम्युनिटी तब समाप्त हो जाती है जब व्यक्ति तरह तरह की आशंकाओ और भय से ग्रस्त हो जाता है ।वह परिस्थितियों से पूर्णतः निराश हो जाता है । उसे जीवन के प्रति कोई आसक्ति शेष नही रह जाती है । कई लोग तो चिकित्सालयों के नकारात्मक परिवेश से घबराकर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता खो देते है । 
          प्रायः यह देखने मे आता है । युध्द में आहत सैनिक सैकड़ो घाव सहने के बावजूद जीवित बच जाते है । इसलिये अच्छी इम्युनिटी के लिये  जीवन को योध्दा की तरह जीना आवश्यक है । जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नही होता उन लोगो मे भी जीवन की इच्छा शक्ति का अभाव होता है । इसलिए अच्छी इम्युनिटी के लिये व्यक्ति का जीवन उद्देश्य पूर्ण होना आवश्यक है