श्मशान में हर व्यक्ति को विरक्ति हो जाती है
जलती हुई शव की चिता को देख कर
मानव देह मिटटी की देह लगने लगती है
भौतिक पदार्थो से आसक्ति हटाने लगती है
रिश्तो और व्यक्तियों से मोह समाप्त होने लगता है
परन्तु श्मशान से लौटने के पश्चात
व्यक्ति अपने दैनिक कार्यो में लग जाता है
संसार में पूर्ण रूपेण लिप्त हो जाता है
भौतिक पदार्थो की प्राप्ति के लिए अनुचित
अनैतिक मार्ग अपनाने से भी नहीं चुकता
इस अवस्था को श्मशान वैराग्य के नाम से
संबोधित किया जाता है
कुछ लोग संसार से स्थाई विरक्ति प्राप्त करने हेतु
संन्यास मार्ग का अनुशरण करते है
परिवार रक्त संबंधियों से नाते तोड़ लेते है
पैत्रिक स्थान पैत्रिक गाँव शहर का परित्याग कर देते है
किसी गुरु से दीक्षा ग्रहण कर लेते है
किसी अखाड़े आश्रम सम्प्रदाय से जुड़ जाते है
मोह के नए बंधन निर्मित कर लेते है
वास्तव में व्यक्ति को सच्ची विरक्ति कैसी प्राप्त हो सकती है
जब व्यक्ति को सच्ची विरक्ति प्राप्त होती है
तो उसके लिए वास्तविक मुक्ति का मार्ग
स्वत खुल जाता है
सन्यास क्या है ? सच्चा सन्यासी वस्त्रो से नहीं
विचारों और संस्कारों से होता है
संन्यास में न्यास शब्द होता है
विशुध्द न्यास भाव में संन्यास निहित होता है
न्यास भाव का तात्पर्य यह है की मन में
किसी व्यक्ति वस्तु के प्रति स्वामित्व का भाव नहीं रखना है
सदैव व्यक्ति वस्तु पदार्थ सम्पत्ति के प्रति यह भाव रखना की
वह व्यवस्था या सुरक्षा की दृष्टि उसकी अभिरक्षा में है
न्यास भाव कहलाता है
इसलिए जिस व्यक्ति ने न्यास भाव अंगीकार कर लिया हो
वह सच्चा सन्यासी है