कितने सारे धर्म रहे , कितने सारे पंथ
मन मे न संतोष रहा , तृष्णा का न अंत
गुरु जी आंसू पोंछ रहे, सोच रहे है हल
गुरु जी चिंता मुक्त करे, गुरु मुक्ति के फल
तुझसे तेरे दूर हुए, तू किसके है पास
तू जिसके है पास रहा, उस पर कर विश्वास
भक्तो ने न जाप किया , किया नही है श्रम
सुविधा से सज्जित हुए , ऐसे भी आश्रम
तुझसे तेरा रुठ गया, उठ गया विश्वास
मैली होती रही चदरिया , मैला है आकाश