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Saturday, June 23, 2012

कर्म क्षेत्र अर्जुन श्रीकृष्ण एवम गायत्री मन्त्र

 कुरुक्षेत्र में भगवान् कृष्ण अर्जुन के सारथी थे 
अर्जुन के रथ की ध्वजा को हनुमान जी थामे हुए थे ऐसा चित्र हम देखते आये है
 वर्तमान में हम भगवान् कृष्ण को खोजते है 
की वे कहा पर है
 इस विषय के सम्बन्ध में यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है
 पहले जो कुरुक्षेत्र था 
वह आज कर्म क्षेत्र बन चुका है 
यदि  हमने हमारे मन  को हमने  ईश साधना के माध्यम से परमात्मा से जोड़ लिया तो हमारी आत्मा एवम मन अर्जुन की भाँती परिष्कृत  सुसंस्कृत हो जाएगा 
ऐसी स्थिति में जीवन का कार्य क्षेत्र 
जो कुरुक्षेत्र की तरह है 
उसमे आने वाली कौरव रूपी  दुष्प्रवत्तियो से हम सदबुद्धी रूपी श्रीकृष्ण रूपी सारथी की सहायता  से परास्त कर सकते है 
 क्योकि  जिस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को समय समय पर गलत निर्णय लेने से बार बार रोका था और जीवन को सही दिशा प्रदान की थी  
उसी प्रकार हमारी देह में स्थित सदबुध्दी जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों में मन में आ रही किंकर्तव्य -विमूढ़ता को समाप्त कर 
सही दिशा एवम सही गति प्रदान करती है 
इस प्रकार हम जीवन के कर्म क्षेत्र में विजय प्राप्त कर सकते है अब प्रश्न यह उठता है की हम अपनी देह में स्थित सदबुद्धी रूपी भगवान् कृष्ण को 
कैसे चैतन्य रखे 
इसका मार्ग महर्षि विश्वामित्र द्वारा रचित महामंत्र गायत्री मन्त्र में निहित है
यह मन्त्र दुसरे मंत्रो की भाँती 
सांसारिक समस्याओं को समाप्त करने के स्थान पर आत्मा एवम मन का उत्थान करता है
 इस मन्त्र के माध्यम से हमने ईश्वर जो प्राण दाता दुःख हरता सुख देने वाला है 
जो शुध्द स्वरूप है 
सर्व जगत का उत्पत्ति कर्ता है से अपनी बुध्दी को अच्छे गुण कर्म स्वभाव प्रेरित किये जाने की प्रार्थना की है