सज्जन लोगो मे मित्रता का प्रारम्भ परिचय से होता है। भली भांति परिचित होने के बाद ही वे परस्पर विश्वास कर पाते है । विश्वास सहयोग और सहयोग घनिष्ठता में कब बदल जाता है पता ही नही चलता । फिर भी वे एक दूसरे को मित्र बताते नही पर सभी लोगो जो उन्हें जानते है वे मित्र के रूप में ही जानते है ।
मित्र और परिचित के बीच एक और कड़ी होती वो हितैषी के रूप में कहलाते है । कुछ लोग वास्तव में हितैषी होते है तो कुछ लोग हितैषी होने का दम्भ भरते है और मुफ्त की सलाह दे दे कर भृमित करने में निपुण होते है ।
कहा जाता है मूर्ख मित्र से बेहतर है समझदार शत्रु का होना। यह कहावत वर्तमान परिस्थितियों में बिल्कुल स्टीक बैठती है । क्योकि शत्रु अगर समझदार हो तो वह कितनी चोट पहुंचाना कब चोट पहुचाना सब कुछ दूरगामी दृष्टिकोण रख कर तय करता है , जबकि मूर्ख मित्र नजदीकी का लाभ उठा कर स्वयं सबसे बड़ा हितचिंतक बताते हुए अपरिमित क्षति पहुचा भी देता है और स्वीकार भी नही करता है कि उसने कितनी बड़ी गलती की है ।
कुछ लोग दुश्मन पैदा करने की कला में इतने दक्ष होते है कि उनके पास दुश्मन पैदा करने के अनेक तरीके होते है।अकारण किसी व्यक्ति की आलोचना करना । किसी के कार्य मे अनावश्यक हस्तक्षेप करना । दूर दूर तक संबंध नही होने के बावजूद किसी व्यक्ति के चरित्र और आचरण के बारे में टीका टिप्पणी करना , सदैव अप्रासंगिक बातो को लेकर चिंतित रहना ।इनमें से कुछ तरीके हो सकते है ऐसे लोगो का कोई दुश्मन नही होता । वे स्वयं अपने दुश्मन होते है फिर उन्हें नित्य और निरन्तर नवीन दुश्मनो की तलाश रहती है