Total Pageviews

Saturday, March 9, 2013

भगवान् शिव

महाकालेश्वर , ओङ्कारेश्वर ,रामेश्वर ,घ्रिश्नेश्वर भीमाशंकर ,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ,, विश्वनाथ वैद्यनाथ ,केदारनाथ 
इत्यादि नामो के अतिरिक्त भगवान् शिव को उज्जैंन में  
राजा के रूप में
 तो नर्मदा तट पर बसी नगरी धर्मपुरी में जागीरदार 
बिल्वामृत्तेश्वर के रूप में संबोधित किया जाता है 
आवश्यकता वातावरण क्षेत्र के अनुरूप 
भगवान शिव को हम वैसा ही मानते है पूजते है
 जैसा हमें उचित लगता है भगवान शिव ऐसे देव है
 जो न तो किसी परम्परा से बंधे है न किसी वेश परिवेश से बंधे
 जैसा श्रृंगार कर दो वे वैसे ही बन जाते है 
परन्तु मनुष्य परिवेश के अनुसार न तो वेश बदलता है
 न ही उसके आचार विचार भाषा में कोई अंतर आता है
 भगवान् शिव के भिन्न स्वरूप हमें यह प्रेरणा देते है की
 व्यक्ति को आवश्यकता के अनुसार 
अपनी भूमिका निर्धारित कर लेनी चाहिए 
तभी वह सर्वस्वीकार्य  हो  सकता है

जीवेम शरदः शतं


देह नश्वर है इस तथ्य के बावजूद 
संसार में हर व्यक्ति सौ वर्ष तक जीना चाहता है
परन्तु हम ऐसे बहुत से लोगो को जानते है
जो सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर लेते है पर रुग्ण  रहते हुए
रग्ण  अशक्त रहते कोई व्यक्ति सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर भी ले तो
ऐसी शतायु रहने का क्या लाभ  
सौ वर्ष तक व्यक्ति जिए तो कैसा जिए
यह यजुर्वेद का यह मन्त्र बताता है
"
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमच्चरत पश्येम शरद शतं जीवेम शरद शतं शृणुयाम शरद शत्मप्र ब्रवाम शरद शतमदीना स्याम शरदशतम भूयश्च शरद
शतात “
अर्थात -सर्व जगत उत्पादक ब्रह्म को सौ वर्ष तक देखे
उसके सहारे सौ वर्ष तक जीए
सौ वर्ष तक उसका गुणगान सुने
उसी ब्रह्म का सौ वर्ष तक उपदेश करे
उसी की कृपा से सौ वर्ष तक किसी के अधीन न रहे
उसी ईश्वर की आज्ञा पालन और कृपा से सौ वर्ष उपरान्त भी हम लोग देखे
,जीवे सुने ,सुनावे और स्वतंत्र रहे
उक्त मन्त्र जो वैदिक संध्या में उच्चारित किया जाता है
यह तथ्य प्रकट करता है की मात्र सौ वर्ष तक जीना पर्याप्त नहीं है
सौ वर्ष तक सुनते रहना
देखते रहना  चलते रहना ,बोलते रहना भी आवश्यक है
तभी तो शतायु सही अर्थो में हम रह पायेगे
सौ वर्ष इस प्रकार जीने का क्या रहस्य है ?
इस बात को भी समझना आवश्यक है
प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चार आश्रम होते थे
प्रथम ब्रह्मचर्य  आश्रम द्वितीय गृहस्थाश्रम तृतीय वानप्रस्थाश्रम
चतुर्थ संन्यास आश्रम  वर्तमान में हम यदि चारो आश्रमों को
उनकी निर्धारित अवधि अर्थात पच्चीस -पच्चीस वर्षो तक जी पाए
तो कोई आश्चर्य नहीं की उपरोक्त मन्त्र की भावना के अनुरूप
सौ तक जीवन पूर्ण कर पाए
विशेष रूप से ब्रह्म चर्य आश्रम को पच्चीस वर्ष तक जीना परम आवश्यक है
कोई व्यक्ति जितनी  आयु ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यतीत करता है
उसकी चार गुना आयु तक वह स्वस्थ रह कर अपनी आयु पूर्ण कर सकता है
हम देखते है कि वर्तमान में ब्रह्मचर्य आश्रम की व्यवस्था
जैसे जैसे समाप्त होती जा रही है लोगो की ओसत आयु कम होती जा रही है