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Tuesday, October 13, 2015

UNIVERSE: आंतरिक शक्तियो के जागरण का पर्व नवरात्रि

UNIVERSE: आंतरिक शक्तियो के जागरण का पर्व नवरात्रि

कर्म कर ले वीर तू कर्म कर ल

कर्म कर ले वीर तू कर्म कर ले कर्म से ही जीवन महान हैं
आलस्य तो जीवित जलता श्मशान है
कर्म कर ले वीर तू कर्म कर ले....
भूल मत ए वीर तू वीरों की सन्तान है
लक्ष्मण और गुडाकेश तेरे आदर्श महान हैं
कर्म ही जीवन जीने का सूत्र हे, आलस्य तो नाली में बहता मल-मूत्र है
कर्म कर ले वीर तू कर्म कर ले...
जाग जा अब तूझे आलस्य नहीं सूहाता हे
बहुमूल्य जीवन का समय व्यर्थ क्यों गवाता है ?

कब तक तू सोयेगा ? अपनी किस्मत को कब तक रोयेगा ?
रोना तुझे नहीं सुहाता है जाग तू ही अपना भाग्य विधाता है
कर्म कर ले वीर तू कर्म कर ले...
नींद मे अब तू ना रहना आलस्य को तू ना सहना
जाग जा अब यही समय की मांग है मौत के बाद फिर विश्राम ही विश्राम है।

आंतरिक शक्तियो के जागरण का पर्व नवरात्रि

बाह्य शक्तियो से अधिक महत्वपूर्ण भीतर की शक्तिया होती है बाह्य शक्तियो से सम्पन्न व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली हो आंतरिक दुर्बलता व्यक्ति को विवश कर देती है किसी विपत्ति को बर्दाश्त करने के लिए भीतर की शक्तिया चाहिए नवरात्रि की साधना आंतरिक शक्तियो के जागरण का उत्सव है परन्तु क्या माता की भक्ति करने वाले आंतरिक शक्तियो का संधान करते है
ऐसा प्रतीत नहीं होता है निज कर्म से विमुख हो धार्मिक अनुष्ठान करना आंतरिक दुर्बलता को दर्शाता है ऐसे धार्मिक अनुष्ठान व्यक्ति की कर्म से पलायनवादी प्रवृत्ति को दर्शाते है धर्म वह है जो कर्म की प्रखरता में वृध्दि कर दे भक्ति हो ज्ञान दोनों योग की श्रेणी में माने गए है और योग के बारे में कहा गया है योगः कर्मशु कौशलम् इसलिए नवरात्रि साधना के अवसर पर आंतरिक शक्तियो का जागरण ही वास्तविक शक्ति उपासना है कायरता पलायन अकर्मण्यता से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही माता का साक्षात्कार है