होली और दशहरे में एक समानता है
होली पर होलिका का दहन होता है
दशहरे पर रावण का दहन होता है
दोनों ही बुराईयों के प्रतीक थे
परन्तु होलिका स्त्री थी रावण पुरुष था
रावण अहंकार का प्रतीक था
तो होलिका ईर्ष्या की प्रतीक थी
ईर्ष्या में व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का नुकसान करने के दुराग्रह में
स्वयं का को भी मिटा सकता है
होलिका इस तथ्य को चरितार्थ करती है
रावण का पुरुष होना होलिका का महिला होना
बुराईयों के बारे में यह तथ्य दर्शाती है कि
वे कही भी किसी भी रूप में हो सकती है
उनका विनाश होना यह दर्शाता है की
चाहे उन्हें कितनी भी वरदानी शक्तिया को मिल जाए
चाहे वे सज्जन शक्ति रूपी प्रहलाद से
क्यों न स्वयं को आवृत्त कर ले ?
उन्हें नष्ट होने से कोई भी बचा नहीं सकता
चाहे वे सज्जन शक्ति रूपी प्रहलाद से
क्यों न स्वयं को आवृत्त कर ले ?
उन्हें नष्ट होने से कोई भी बचा नहीं सकता
प्रहलाद कौन है प्रहलाद मन आल्हाद है मन की वह खुशी है
तद्पश्चात उसे विष्णु भगवान अर्थात
विश्व के प्रत्येक अणु व्याप्त परम तत्व एवं अपने ईष्ट पर
विश्वास होना चाहिए
नहीं तो आत्म विश्वास विहीन एवं ईष्ट एवं ईश से विमुख
व्यक्ति सदा संदेहों से घिरा रहता है
संदेहों से घिरे व्यक्ति के बारे में भगवान कृष्ण ने कहा है
संशयात्मा विनश्यति
जो सकारात्मक मानसिकता को प्रकट करती है
प्रसन्न वही व्यक्ति है जिसकी मानसिकता स्वस्थ है
जो परोपकार में विश्वास रखता है
प्रहलाद बनने के लिए व्यक्ति का सर्वप्रथम स्वयं में
विश्वास होना चाहिए तद्पश्चात उसे विष्णु भगवान अर्थात
विश्व के प्रत्येक अणु व्याप्त परम तत्व एवं अपने ईष्ट पर
विश्वास होना चाहिए
नहीं तो आत्म विश्वास विहीन एवं ईष्ट एवं ईश से विमुख
व्यक्ति सदा संदेहों से घिरा रहता है
संदेहों से घिरे व्यक्ति के बारे में भगवान कृष्ण ने कहा है
संशयात्मा विनश्यति