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Monday, April 19, 2021

बेघर -उपन्यास

 "बेघर" शीर्षक से प्रकाशित उपन्यास वयोवृद्ध एवम वरिष्ठ लेखिका श्रीमती ममता कालिया का पहला उपन्यास जो सन 1972 की अवधि के दौरान रचा गया था। समय से कही आगे और विवाह पूर्व कौमार्य भंग को लेकर भ्रांतियों पर आधारित है । उपन्यास पंजाबी पृष्ठभूमि के एक ऐसे नवयुवक के जीवन पर आधारित है । जो आजीविका के लिए मुंबई रेफ्रिजरेटर बनाने वाली कंपनी में काम करने के लिए आ जाता है और पेईंग गेस्ट के रूप में समुद्र तट के निकट पारसी अधेड़ पारसी महिला के यहां रहने लगता है 
              लोकल ट्रेन में सफर करते हुए संजीवनी नामक गुजराती  लड़की के व्यक्तित्व से बेहद आकृष्ट हो जाता है ।  संजीवनी जो बैंक में  नोकरी करती है उसकी माँ मूक है ,भाई और भाभी अपने आर्थिक अहंकार के कारण उसकी माँ की उपेक्षा करने लगते है । संजीवनी अपने माता पिता की चिंता करने करने और उनके समस्त दायित्वों के निवर्हन करने वाली आदर्श लड़की है । लेखिका ने जिस प्रकार से संजीवनी के चरित्र को गढ़ा है वह अत्यंत अदभुत है । 
         शनै: शनै:संजीवनी और पंजाबी नवयुवक परमजीत के बीच आत्मीयता से ओत प्रोत प्रेम से परिपूर्ण प्रगाढ़ संबंध पनपने लगते है । एक दिन दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो जाते है । शारीरिक संबंध स्थापित हो जाने के दौरान परमजीत को पता चलता है कि संजीवनी का कौमार्य पूर्व से सुरक्षित नही है और यही से परमजीत के भीतर बैठा एक ऐसा पुरुष जाग्रत हो जाता है जो लड़की के सम्पूर्ण चरित्र को कौमार्य से जुड़ी परम्परागत धारण से नापने के आदि होते है ।  संजीवनी के सारे गुण एक तरफ रख परमजीत विवाह हेतु  ऐसी लड़की की तलाश में जुट जाता है जो तकनीकी रूप अक्षत कौमार्य से युक्त हो ।  परमजीत उसके समाज की ऐसी ही लड़की रमा से बेमेल विवाह कर लेता है    
            रमा से विवाह करने के उपरांत से हरजीत के जीवन मे मुसीबते  प्रारम्भ होती है , इससे परमजीत के जीवन की उर्वरकता समाप्त हो जाती है । वैचारिक विरोध और जीवन  के दोनों के भिन्न दृष्टिकोण के कारण परमजीत जीवन जीवन नही रहता है , नारकीय यंत्रणा बन जाता है । परिणाम स्वरूप परमजीत अपना सारा ध्यान अपने कार्यस्थल पर ही लगाता है । परमजीत का हृदय सच्चे प्रेम से रिक्त ही रह जाता है और अंत मे हृदयाघात के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हो जाती है ।लेखिका ने उपन्यास में जिस प्रकार से विषय को उठाया है वह विवाह पूर्व भारतीय समाज मे विवाह योग्य लड़कियों के कौमार्य के सम्बन्ध पुरुषों की भ्रांतियों का निवारण करने में समर्थ है ।रमा और संजीवनी दोनों विपरीत स्वभाव वाली महिलाओं के व्यक्तिव का एक पुरुष के जीवन पर क्या? प्रभाव पड़ सकता है, यह उपन्यास में अधिकार पूर्वक समुचित पर से विश्लेषण किया गया है 
           यद्यपि उपन्यास का कालखंड पचास साल पूर्व का है । परंतु उसकी विषय वस्तु आज भी इन अर्थो में प्रासंगिक है कि मात्र क्षुद्र धारणाओं के आधार पर कितने ही लड़के लड़किया बेमेल विवाह कर अपने सम्पूर्ण जीवन को नष्ट कर रहे है । उपन्यास का शीर्षक"बेघर" दो अर्थो स्पष्ट होता है ।प्रथम तो महा नगरीय जीवन शैली में स्थानाभाव के कारण व्यक्ति पेईंग गेस्ट संस्कृति में रहने हेतु विवश है ।द्वितीयतः वह व्यक्ति भी बेघर है जिसके पास रहने हेतु घर तो है परन्तु बेमेल विवाह के कारण रोज रोज के पारिवारिक विवादों के चलते उसका घर मे रहना असंभव है।