Total Pageviews

Thursday, December 10, 2020

यथास्थितिवाद से मुक्ति कैसे हो?

इस युग मे दो प्रकार के व्यक्ति दिखाई देते है यथास्थितिवादी और प्रगतिशील ।                                यथास्थितिवादी  अर्थात जो चल रहा है उसे चलते रहने दिया जाय । इस प्रकार की प्रवृत्ति में जोखिम नही रहता ।विरोध का सामना नही करना पड़ता । परन्तु प्रगति अवरुध्द हो जाती है । जड़हीनता प्रश्रय पाती है । यथास्थिति से बने रहने सिवाय उन लोगो जो शोषण करने में विश्वास करते है किसी को फायदा नही होता । जो चीज जहाँ पड़ी है बरसो बाद वही पड़ी मिलेगी ।घिसी पिटी परम्पराये जो समाज मे अस्तित्व में थी ।वे परिस्थितियां परिवर्तित होने पर उसी स्वरूप में चलती रहेगी ।
                 परिवर्तन और प्रगति की बात करना और उसे जीवन मे अपनाना साकार करना। दोनों अलग अलग बात है । कितने क्रांति और प्रगति पर भाषण देने वाले जब उन्हें साकार और क्रियान्वित करने की बात आती है तो पीछे हट जाते है । इस प्रकार ही वर्तमान में राजनैतिक पाखंड सहित समाज मे तरह तरह के पाखण्ड चल रहे है ।                                                                          यथास्थिति से जनित जड़ता को समाप्त करने के लिये सुदृढ़ संकल्प और साहस के साथ प्रखर पुरुषार्थ की आवश्यकता रहती है । उपरोक्त गुणों का समावेश उस व्यक्ति में ही सम्भव है ।जिसमे नैतिकता के साथ सत्य पर प्रतिबध्द रहने की सामर्थ्य होती है।  राजनैतिक, सामाजिक , तथा विविध प्रकार प्रकार सत्ताओ से टकराने के साहस होता है ।                                                  प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिये यथास्थिति के मौन को तोड़ना आवश्यक है। यह कल्पना नही की जा सकती कि एक ही दिन में सब कुछ ठीक हो जायेगा। प्रगति और परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया हैं।विशेषकर बहुआयामी परिवर्तन किया जाना हो तो उसमें कठोर परिश्रम के साथ दीर्घकालीन धैर्य की जरूरत रहती है । जल्दी बाजी परिवर्तन की अपेक्षा करना उचित नही है ।इस प्रकार के प्रयासों से विपरीत परिणाम देखने को मिलते है ।

Friday, December 4, 2020

चाणक्य के जासूस

चाणक्य और चंद्रगुप्त के द्वारा नंद राजवंश के विरुध्द राजसत्ता को उखाड़ने का संकल्प और उस संकल्प को मूर्त रूप देना इतिहास का रोचक अध्याय है । परंतु वरिष्ठ लेखक त्रिलोकीनाथ पाण्डेय द्वारा जो उस संघर्ष को गुप्तचर की दृष्टि से देखकर उपन्यास के माध्यम से सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है । वह एक कृति के रूप में प्रगट किया गया है उस कृति का नाम है "चाणक्य के जासूस"।
                चाणक्य के  जासूस में गुप्तचरो के प्रशिक्षण से लेकर सैन्य अभियान के समान्तर जो सूचनाएं प्राप्त कर उन सूचना के आधार पर शत्रु पक्ष के विरुध्द समय अनुकूल रणनीति में परिवर्तन कर वांछित लक्ष्य प्राप्त किये जाने के उपक्रम दर्शाये गये वे अन्यत्र दुर्लभ है । पुस्तक में हम जैसे जैसे पढ़ते हुए आगे बढ़ते है पुरातन युग और तत्कालीन परिस्थितियों में प्रवेश करते जाते है ।
         गुप्तचर वे योध्दा होते है जो मौन क्रांति करते हुए क्रूर और आततायी से मुक्ति दिला सकते है। शत्रु का हृदय परिवर्तन कर  उसे अपने हित मे इस्तेमाल कर सकते है। शत्रु को भ्रांति में डाल कर उसे अपनी शरण मे आने हेतु बाध्य कर सकते है । 
               लेखक का यह कहना सही है कि गुप्तचर यदि लेखक बन जाये तो उसे अतीत के आधार पर कल्पना चित्र खींचना पड़ता है ।वर्तमान के आधार पर कृति लेखन में व्यवस्था को हानि उठानी पड़ सकती है । 
                            इसके बावजूद यह दावा किया जा सकता है कि इस उपन्यास में गुप्तचर के जो गुण और उसकी जो पध्दतियां बताई गई है ।विचार करने पर वे आज भी कारगर और उपयोगी है । सूक्ष्म संकेतो और संगठित गुप्तचर अभियानों से हम समाज और राष्ट्र बड़ी क्षति होने से बचा सकते है यह इस का उद्देश्य परिलक्षित होता है।
     उपन्यास में गुप्तचर व्यवस्था में अलग अलग पक्ष के प्रधान के रूप चाणक्य और कात्यायन को दर्शाया गया है । दोनों के अलग अलग तरीके उल्लेखित किये गये है । जहाँ चाणक्य की गुप्तचर नीति में शुचिता और चारित्रिक मूल्यों और वृहद सोच को महत्व दिया गया है ।वही पर कात्यायन की गुप्तचर नीति मात्र राज निष्ठा पर आधारित हो कर शासन प्रबंधन को नियंत्रित करती है। 
           उपन्यास के अंत मे शुचिता, चरित्र और मानवीय मूल्यों की विजय होती है 
     यह रोचक प्रसंग कृति में आता है कि किस प्रकार मगध में वंसतोत्सव मनाया जाता है । बिना युध्द के मात्र गुप्तचर नीति के आधार पर दो वृहत साम्राज्य के शासक नन्द और पुरु का कैसे वध किया जाता है। भ्रांतिया फैलाकर नन्द वंश के गुप्त राजकोष की कैसे खोज की जाती है । शत्रुपक्ष में अपने गुप्तचर भेज किस प्रकार उनको विश्वसनीय बना दिया जाता है । इस कृति ऐसे कई और पक्ष भी है ।जिनका उल्लेख इस संक्षिप्त लेख में किया जाना संभव नही है ।जिन्हें मात्र इस पुस्तक को पढ़कर ही ज्ञात किया जा सकता है ।उपन्यास को राजकमल प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है

Thursday, November 26, 2020

तू किसके है पास


कितने सारे धर्म रहे , कितने सारे पंथ
मन मे न संतोष रहा , तृष्णा का न अंत

गुरु जी आंसू पोंछ रहे, सोच रहे है हल
गुरु जी चिंता मुक्त करे, गुरु मुक्ति के फल

तुझसे तेरे दूर हुए, तू किसके है पास
 तू जिसके है पास रहा, उस पर कर विश्वास

भक्तो ने न जाप किया , किया नही है श्रम
सुविधा से सज्जित हुए , ऐसे भी आश्रम

तुझसे तेरा रुठ गया, उठ गया विश्वास
मैली होती रही चदरिया , मैला है आकाश 



Sunday, November 22, 2020

अपघर्षण कुण्ड-यक्ष युधिष्ठर सम्वाद स्थल


इस स्थान पर महाभारत काल मे युधिष्ठर का यक्ष से संवाद हुआ था । तत्समय की कथा यह है कि वनवास के समय पांडवो को प्यास लगी तो पांडवो के सबसे अनुज भ्राता सहदेव ने कहा कि वे पानी घड़े भर कर निकट के सरोवर से लाते है । सहदेव इस स्थल पर स्थित कुंड पर पानी लेने गए तो वापस नही लौटे । ज्येष्ठता के क्रम में एक एक कर पांडव भ्राता पानी लेने गए पर कोई नही लौटा । अंत मे युधिष्ठर अपने भाईयों को ढूंढने के लिए तो उनका साक्षात्कार इस स्थल पर यक्ष से हुआ । इसी कुंड के पास भीम अर्जुन नकुल सहदेव अचेत अवस्था मे पड़े हुए थे। यक्ष के द्वारा युधिष्ठर के समक्ष जो प्रश्न रखे गए , उनके  सही उत्तर जैसे जैसे युधिष्ठर देते गये वैसे वैसे सभी पांडव भ्राता जीवित होते गए । यक्ष उस समय इस कुण्ड की सुरक्षा में रत रहता था। यह स्थान सतना जिले में धार कुण्डी के समीप ऊंचे पहाड़ों के बीच घने वन के बीच स्थित है

Thursday, November 19, 2020

यादे है बुनियाद

सपनो में है याद मिली, यादे है बुनियाद
यादे हमको मोड़ मिली ,यादो से की बात

यादो में इकरार मिला, यादो में इनकार
यादो में से ताक रहा, अनुभवी का संसार

इक अम्मा की याद रही , इक दादा की याद
यादो में है डाँट मिली , यादो में दी दाद

यादो में धूप छाँव मिली, यादो के झुरमुट
यादो की बारात चली, होकर के सूट बूट



Saturday, November 14, 2020

दीपो की बारात

अन्धियारे में  पाप रहा , होता उजला पुण्य
दीपक से तम घोर भगा, होता तम है शून्य

सृजन में उजियार रहा, प्रलय में तम घोर
सृष्टि कितनी शान्त रही , मत करना तू शोर

जगमग जगमग आज चली ,दीपो की बारात
दीपो से है रात खिली , कुदरत की सौगात

कोहरे से है धूप लदी, बहके है जज्बात
दीपो से है सेज सजी, अंधियारे में बात

Thursday, November 12, 2020

वैसा ही सम्भव

सपनो में तव सोच रहा , सपनो रहे कचोट
तू सपनो में लिप्त रहा, हुई चोट पर चोट

जैसा जिसका भाव , ठीक वैसा ही भव
वैसे ही सब लोग मिले , वैसा ही सम्भव

विद्या से विनम्र हुआ , प्रज्ञा से  है धन्य
भीतर से है भींग गया ,प्राणों से चैतन्य

भावो में ही बसा रहा, होता वह भगवान
हुआ भाव से शुन्य यहाँ, वो कैसा इन्सान


Wednesday, November 4, 2020

रिश्तो की है नाव

रिश्ते पावन प्रीत भरे, रिश्ते है गुलकंद
रिश्ते दुख और दर्द हरे, रिश्ते सुरभित गंध

कुछ रिश्तो से नेह मिला , कुछ रिश्तो से दंश
रिश्तो में कौन्तेय मिले, कुछ रिश्तो में कंस

रिश्तो में सौंदर्य रहा ,रिश्तो की है छाँव
डग मग करती नही डूबी , रिश्तो की है नाव

जितने भी थे रूठ गये , जो थे रिश्तेदार
रिश्तो की पड़ताल करे, रिश्तो के हकदार

रिश्तो से है प्यार मिला , पाया लाड़ दुलार 
ऐसे रिश्ते कहा गये, उनको रहे पुकार

Saturday, October 31, 2020

संस्कृति और संस्कृत

लोग कहते है 
संस्कृत और संस्कृति मर रही है 
संस्कृत और संस्कृति के स्थान पर 
पाश्चात्य भाषा और संस्करहीनता
विद्रूप रूप धर रही है 
परन्तु संस्कृत और संस्कृति कभी मरा
नही करती है 
संस्कृत जीवित है
मंत्रो के उच्चारण में ।
श्लोको में हिंदी की व्याकरण में 
संस्कृत जीवित है 
हिंदी के संधि विच्छेद में 
अलंकार में बिम्ब में प्रतिबिम्ब में 
संस्कृत से जुड़कर 
हिंदी समृध्द हो जाती है 
विज्ञान में जब हिंदी में 
तकनीकी शब्दावलिया नही मिली पाती है 
तो संस्कृत याद आती है
संस्कति वहा याद आती है 
जब संयुक्त परिवार की परम्पराए समाप्त 
हो जाती है और विचारों और संस्कारों में
 लघुता आ जाती है 
संस्कृति वहा याद आती है 
जब विदेशो में बसे भारतीय की आँख
अपनी मिट्टी की याद से भींगो जाती है
इसलिये संस्कृत और संस्कृति 
कभी मरा नही करते है 
वे सदैव अपनो परम्पराओ रूढ़ियों 
पुरातन और सनातन ज्ञान की धाराओं में 
बहा करते है

Monday, October 26, 2020

तेरे दर भगवान

सच्चे अच्छे कार्य करे, सेवा और उपकार
सेवा तुझको धन्य करे,उपकृत से दातार

सेवा तो गुमनाम रहे, दाता रहे अनाम
याचक बनकर माँग रहा, तेरे दर भगवान

मिल जुल करके काम करो, रखो कार्य मे धार
कार्य यहाँ अनिवार्य रहा, परखा फिर व्यवहार

मिलता जुलता रूप रहा, मिलते जुलते गुण
उल्टे सीधे कार्य करे ,फिर भी कार्य निपुण

मिली जुली कोई बात मिली , मिलते नये पड़ाव
मिलने का जब दौर चला, मिले हृदय में घाव



Sunday, October 25, 2020

Srijan: देहरी में हो दीप

Srijan: देहरी में हो दीप: घर मे खुशिया बसी रहे, देहरी में हो दीप दोहरे होते चाल चलन , उन सबको तू लीप मौलिकता तो मिली नही , मिले मिलावट लाल मिले जुले ही रूप मिले , मौल...

Friday, July 10, 2020

वैधानिक गल्प - उपन्यास समीक्षा

राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास वैधानिक गल्प लेखक चंदन पांडेय द्वारा अभिलिखित है ।वैधानिक उपन्यास अर्जुन नामक ऐसे व्यक्ति से आरम्भ होती है जो लेखक और कथाकार के साथ प्रकाशन समूह का संपादक भी है ।  अर्जुन जिसकी पत्नी अर्चना है को तब झटका लगता है जबकि एक दिनअर्जुन  उसकी पूर्व प्रेमिका अनसूया का  नोमा नामक कस्बे से फोन आता है । अनसूया अर्जुन को बताती है कि  उसका पति रफीक कही गायब हो गया है ।।      
                    रफीक रंग कर्मी के साथ कॉलेज में संविदा प्राध्यापक भी रहा है। अर्जुन अनसूया की मदद के लिए पहुँचता है ।  अर्जुन अनसूया को थाने में पुलिस द्वारा अपमान जनक तरीके से पूछताछ करते हुये पाता है । थाने के आतंक पूर्ण वातावरण को महसूस करता है । अनसूया से गर्भ से है को अर्जुन थाने से उसके घर ले जाने के बाद कुछ दिनों के लिए अर्जुन नोमा ही रुक जाता है । प्रकाशन समूह के मालिक की मदद से अर्जुन को थाने का प्रभारी शलभ का सहयोग प्राप्त होता है ।परंतु स्थानीय राजनीति के चलते रफीक का नाम लव जेहाद में जुड़ जाता है क्योंकि रफीक के गायब होने के साथ उसकी छात्रा जानकी के गायब होने की जानकारी भी उसे प्राप्त होती है 
          रफीक की तलाश किये जाने के सिलसिले में अर्जुन को रफीक की डायरी प्राप्त होती है जिसके गीले और फटे हुये  पन्नो पर लिखी इबारत को पढ़ने का प्रयास करता है ।जिसके माध्यम से अर्जुन गायब होने के पूर्व रफीक की क्या मानसिकता थी । इसे समझने चाहता है ।इसी दौरान अर्जुन को निलम्बित पुलिस उपनिरीक्षक अमन दीप मिलता है जिसके ऊपर आर्थिक गबन का आरोप है ।परंतु गहराई से जांचने पर ज्ञात होता है ।अमन दीप को निलंबित किये जाने की वजह कुछ और है। जिसमे अमन दीप ने एक व्यक्ति को प्रायोजित भीड़ द्वारा की गई हिंसा से बचाये जाने के कारण स्थानीय राजनेता की नाराजगी है  उपन्यास के अंत तक गायब हुए रफीक और जानकी का पता नही चलता। 
          उपन्यास के माध्यम से लेखक ने यह तथ्य कहने का प्रयास किया है कि प्रत्येक मामले को लव जेहाद का रंग देने की आवश्यकता नही है ।कितने संविदा अध्यापकों और प्राध्यापको को लंबे समय से नियमित न किया जाकर उनका शोषण किया जा रहा है । उपन्यास के माध्यम से लेखक ने पुलिस की कार्य प्रणाली और पुलिस स्थानीय राजनेताओ के साथ साठ गांठ को रेखांकित किया है । लेखक ने यह प्रश्न भी उठाया है ।पुलिस में संवेदनशीलता का अभाव है वह एक प्रसूता के साथ पेशेवर अपराधी की तरह व्यवहार करती है ।  

Friday, July 3, 2020

लौटा दे कोई बीते हुए पल

कहते है ,समय हर यक्ष प्रश्न का जबाब देता है ।इसलिए सही समय की प्रतीक्षा करो ।परन्तु सही समय की प्रतीक्षा में सही व्यक्ति का पूरा जीवन संघर्षो में बीत जाता है ।संघर्ष करते करते सही व्यक्ति के जीवन का रस और आनंद कही खो जाता है और रह जाती है वे अनुभूतिया जिनकी स्मृति मात्र व्यक्ति के मन मे कसैलापन ला देती है ।व्यक्ति  के हृदय में तब आत्मीयता स्नेह करुणा के स्त्रोत सूख जाते है । व्यक्ति यथार्थवादी हो जाता है ।
      इसलिए यह कहना कि समय हर प्रश्न का जबाब दे देता है सही समय का इंतज़ार करो ।कहना बहुत आसान है ।नही आसान होता बुरे समय से गुजरने वाले व्यक्ति की समस्याओं को समझना,अनुभूतियो को जानना, संघर्ष यात्रा के पथ के उतार चढ़ाव पीड़ा को पहचानना ।हम तत्काल उस व्यक्ति के शुष्क व्यवहार पर टिप्पणी कर देते है ।जिसने समय से संघर्ष करते करते उपलब्धिया पाई है । यह शाश्वत  सत्य है कि बीता हुआ समय कभी वापस नही लौटता । लौट कर आती है  तो दुखद और सुखद यादे । ये दुखद और सुखद यादे ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिभाषित करती है ।
        हर आयु के साथ जुड़े  हुए कुछ आनंद के पल होते है । बचपन , यौवन , की अपनी आवश्यकता होती है ।समय बीत जाने पर हम बचपन आनंद को अधेड़ अवस्था मे अनुभव नही कर सकते ।यौवन के आनंद को वृध्दावस्था में अनुभव नही किया जा सकता । चाहे लाख अनुकूलताएं आ जाये एक उम्र बीत जाने पर उस उम्र से जुड़ी आनंद की अनुभूतियो का अनुभव नही किया जा सकता । जिन लोगो ने बचपन मे बचपन के उल्लास को ,यौवन में यौवन की उमंग को अनुभव नही किया है ।आयु बीत जाने पर बूढ़े होने पर उस आनंद को पाना चाहते है ।इसलिए कोई व्यक्ति वृध्दावस्था में बच्चों की तरह खेलना कूदना चाहता है ।उछलने की कोशिश करता है । कुछ लोग वानप्रस्थ अवस्था दूसरा विवाह कर लेते है । इसलिए उच्छृंखलता और उदंडता से परे बच्चों को  अपनी स्वाभाविक चपलता और मस्ती जीने अवसर दिए जाने चाहिए। इसी प्रकार से किशोर और तरुण को भी यौवन से जुड़ी उमंगे  को खिलने तथा तरंगित होने के मौके मिलने चाहिए ।अन्यथा बचपन और यौवन न जीने कुंठा व्यक्ति के व्यक्तित्व को तहस नहस कर देती है जिसकी परिणीति व्यक्तित्व में आने वाली विकृतियों के रूप में होती है

Tuesday, June 30, 2020

व्यक्तित्व की सघनता

वृक्ष हो या व्यक्ति उसका  बड़ा होना पर्याप्त नही है। घना होना भी आवश्यक है, नही तो लोग ऊंचाई से आतंकित होने लगते है ।पास आने पर भी डर लगता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में ऊंचाई के साथ घनत्व भी होना चाहिये ।घनत्व के साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व में गुरुत्व भी होना  चाहिए
            लोग अक्सर सफलता और ऊँचे लक्ष्य पाकर उदारता खो देते है उदारता ही व्यक्ति के व्यक्तित्व की सघनता निर्धारित करती है अहंकार से ग्रस्त होने पर व्यक्ति किसी काम का नही रहता । अधिकार और वैभव प्राप्त होने पर तो कोई भी व्यक्ति सामान्य शिष्टाचार भूल जाता है । अपने अधिकारों का दुरुपयोग  प्रारम्भ कर देता है ।ऐसे अहंकारी व्यक्ति से किसको क्या मिल सकता है ? जो लोग ऐसे व्यक्ति से कोई आशा रखते है तो वह ऐसा ही होगा जैसे रेत में से  कोई व्यक्ति तेल निकाल ले। मरुथल में कोई व्यक्ति उद्यान लगा ले ।जो वृक्ष सघन होते है वे ही छायादार और फलदार होते है । जो व्यक्ति उदार होते है वे मानवीय गुणों की सघनता से परिपूर्ण होते है उनके पास दुसरो को देने के लिए सकरात्मकता ,सर्जनात्मकता ,होती है इसलिए लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर खींचे चले आते है । उन्हें जबरन किसी को बुलाने की आवश्यकता नही होती है अपनी बात को मनवाने के लिए कुतर्को का सहारा नही लेना पड़ता । उनके व्यक्तित्व में सदैव स्नेह संवेदना और करुणा की छाया रहती है । उनका सानिध्य मात्र ही तन मन को आल्हादित कर देता है 
           घने वृक्षो के  पत्तो और डालियो पर जिस प्रकार पंछी सुरक्षा का भाव पाते है ।अपने घोंसले बनाते है । पथिक थकान मिटाते है ।घने वृक्ष की विद्यमानता यह सुनिश्चित करती है कि उसके आस पास निश्चय ही मीठे जल का स्त्रोत होगा । उसी प्रकार से सघन व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति की सघनता के पीछे उनकी जड़ो की गहनता और संस्कारों की विरासत होती है ।

Tuesday, June 23, 2020

बेनियाज़ मियाद के पार-कहानी समीक्षा

जहाँ हमारे देश मे मानसिक अवसादों पर बहुत कम साहित्य लिखा गया है वही हिंदी उपन्यासकारा और वरिष्ठ लेखिका श्रीमती मृदुला गर्ग की द्वारा अभिलिखित कहानी "बेनियाज़ मियाद पार" में  मनोवैज्ञानिक समस्याओं की और गंभीरता से ध्यान आकृष्ट किया गया है। कहानी में बताया गया है कि किस प्रकार से कोई व्यक्ति मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर विचारो के भ्रांतियों का शिकार हो जाता है ।चिकित्सक भी समझ नही पाते है कि यह शारीरिक रुग्णता है या मनोवैज्ञानिक ऐसी स्थिति में व्यक्ति निराशाओ से घिरता जाता है ।
              बेनियाज़ मियाद पार को लेखिका का आत्मानुभव कहे तो ज्यादा अच्छा होगा।लेखिका की आयु 80 वर्ष होना बताई गई है बुजुर्ग व्यक्तियों की आयु जनित अंग शिथिलताओ के साथ मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी पैदा होने लगती है । कहानी में उकेरी गई अनुभूतियो से हमे बुजुगों की मानसिक स्थितियों को समझने में सहायता मिलती है ।कहानी जिस प्रकार से कही गई है उससे पाठक का मन गुदगुदाता है ।
      कहानी का संदेश यह है कि कब कोई मानसिक समस्या शारीरिक समस्या बन जाती है हमे पता ही नही चलता ।यह कहानी ऐसे लोगो की अनुभूतियो को शब्द प्रदान करती है ।जो तरह तरह की मानसिक पीड़ाओं से घिरे रहते है और जो अपनी पीड़ा को सही प्रकार से प्रगट ही नही कर पाते है ।कहानी में लेखिका के रूप में प्रकाशन जगत से जुड़ी चिंताओं को इस रूप में प्रगट किया है लेखक को पता ही नही चलता कि उसके द्वारा अभिलिखित कृति से प्राप्त निधि का प्रकाशक द्वारा किस प्रकार व्ययन किया गया है 
       कहानी हमे इस तथ्य से अवगत कराती है हमारे देश मे कुशल मानसिक चिकित्सक नही होने से और मनोरोगियों को गलत दवाईया दिए जाने से किस प्रकार से मरीज साइड इफ़ेक्ट का शिकार होता जाता है ।

Friday, June 19, 2020

हसीनाबाद-उपन्यास समीक्षा

लेखिका गीता श्री द्वारा अभिलिखित उपन्यास जो वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है ।यह उपन्यास समाज के एक ऐसे वर्ग की पीड़ा को बयान करता है जिनके बारे में लोग खुले मुँह बात करना पसंद नही करते  अर्थात ग्रामीण क्षेत्र के सामन्तवादी लोगो की वासनाओ की तृप्त करने वाली महिलाओं और उनके बच्चों की दास्तान का नाम है हसीनाबाद।
           वैसे तो देश के कई हिस्सों में हसीनाबाद जैसी बस्तियां दिखाई देती है परंतु उपन्यास में उल्लेखित हसीनाबाद बिहार के वैशाली जिले से सम्बंधित है  उपन्यास की केंद्रीय पात्र सुंदरी जिसे कुछ लोग बचपन मे उसके गांव उठाकर ले जाते है और बाद में उसे है हसीनाबाद में ठाकुर सजावल सिह ठाकुर की कामनाओ का शिकार होना पडता है ।सुंदरी जिसे अपनी नियति मान लेती है । कालांतर में सुंदरी को ठाकुर सजावल सिंह से एक पुत्र रमेश और एक पुत्री गोलमी पैदा होती है । उपन्यास की सम्पूर्ण कथा सुंदरी की पुत्री गोलमी के इर्द गिर्द घूमती है ।हसीना बाद में सुंदरी जैसी अनेक स्त्रियां होती है जो अलग अलग ठाकुरों की यौन इच्छाओ की पूर्ति की साधन मात्र होती है ।परम्परा के तहत ठाकुर उनके जीवन यापन की सारी व्यवस्था करते है ।ऐसी महिलाओं की लड़कियों को पुनः अनैतिक कृत्यों में लिप्त होना पड़ता है कला संगीत नृत्य के माध्यम से ठाकुरों अगली संतति की तृष्णाएं शांत करनी पड़ती है ।लड़को को ठाकुरों सेवा में रह कर लठैतों की भूमिका निभाना पड़ती है ।।                                 कथानक के अनुसार हसीनाबाद मूल भूत सुविधाओ से वंचित रहता है ।महिलाओं के बच्चे अशिक्षित ।ऐसे में एक दिन सुंदरी गांव के मंदिर में अन्य स्थान से आई भजन मंडली के सदस्य  सुगन महतो के साथ प्रेम प्रसंग के रहते अपनी पुत्री गोलमी को लेकर भाग जाती है और सूजन महतो जो पूर्व से अन्य महिला से विवाहित है रहने लगती है । सुंदरी की पुत्री गोलमी और उसकी सहेली रज्जो गांव के अन्य लड़के खेचरु और अढाई सौ के बचपन को उपन्यास में लेखिका द्वारा बहुत खूबसूरती से चित्रित किया गया है। कथा के अनुसार सुंदरी गोलमी को पढ़ाना चाहती है परंतु गोलमी नृत्य और संगीत में रुचि रखती है । उधर सुंदर पुत्र रमेश जिसे वह मालती देवी के पास छोड़कर आ गई थी। वह उपेक्षित बचपन बीताते हुए बड़ा होता जाता है अपनी माँ और बहन के प्रति मन मे घृणा का भाव रखता है । रमेश अपने मित्र उस्मान जो ईट के भट्टे पर मजदूर है तथा ठाकुरों के निर्देशों पर क्रूर कृत्यों को अंजाम देता है के साथ आत्मीयता और सामीप्य का अनुभव करता है ।गोलमी अपनी नृत्य और संगीत में रुचि के चलते नृत्य कला मंडली का गठन कर गांव गांव में लोगो का मनोरंजन करती है । नृत्य कला मंडली में गोलमी का साथ रज्जो खेचरु अढाई सौ देते है इसी दौरान एक राजनेता राम बालक सिंह की दृष्टि गोलमी पर पड़ती जो गोलमी की नृत्य और गीत की कथ्य शैली से प्रभावित होकर उन्हें अपनी पार्टी के चुनाव के प्रचार हेतु मना लेते है ।
         समय के साथ गोलमी कला के सोपान के माध्यम से राजनीति के शिखर पर पहुँच जाती है और रमेश कुशल राजनेता के रूप में स्वयम को स्थापित कर लेता है 
          उपन्यास  अंग्रेजो के समय के पुराने सामन्तवाद  को आजादी के नवीन रूप धारण करते बताया गया है । किस प्रकार राज नेता राम खिलावन के पिता संग्राम सिंह जो प्रथम कोटि के शराबी थे फर्जी तौर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित रोचक कथा के माध्यम से प्रगट किया गया है  । सामंतवादियों द्वारा यौन शोषण की गई महिलाएं जब वृध्दावस्था को प्राप्त होती उनकी मानसिक स्थितियों को सूक्ष्मता से विश्लेषित  किया गया है ।कथा में वरिष्ठ लेखक प्रभात रंजन जी की कृति "कोठागोई" में उल्लेखित चतुर्भुज और उनसे जुड़ी नृत्यांगनाओ और उनके जुड़े संदर्भो को स्पर्श किया है ।उपन्यास की भाषा मे कही कही काव्यात्मकता नज़र आती है ।

Monday, June 15, 2020

वह हार नही मानता




जीवन में एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति चारो और से ख़ुद को ठगा सा पाता है ,उसने सारी जिंदगी जिस उम्मीद को लिए खुद को दिलासा दिया एक वक्त के बाद वह उस उम्मीद को भी धुंधला सा पाता है..

फिर भी जाने किस विश्वास में वह खुद को ढांढस बंधाता है और उसी धुंधली उम्मीद को लिए अपना बोझ उठता है..

अपने अतीत से जब जब वह आंखे मिलाता है  उसकी आंखों से सदा पानी बह आता है जाने क्या देखता है वह अतीत के झरोखें में जो उसे आज भी रुलाता है..

कुछ यादें उसके दर्द को मरहम लगाती है तो वह मुस्कुराता है इसी हल्की सी ख़ुशी में वह खुद को बहलाता है और आगे बढ़ता है पग पग जीवन का बोझ उठाता है..

अब उसके चेहरे पर थकान सी दिखने लगी है निराश है शायद साँसे थकने लगी है कोई तो बात है जो वह फिर भी चल रहा है उसे मालूम है कि वक़्त भी उसे छल रहा है..

उसने भी तो कहां अभी रार मानी है समय को चुनौती देती उसकी वाणी है, जो सोचा था वैसा कब होता है यही सोचकर वह जीवन का बोझ ढोता है...

अब आगे क्या होगा यह कोई नही जानता लेकिन इतना है के वो हार नही मानता!




Thursday, June 11, 2020

चन्दावती-उपन्यास की समीक्षा

अनुज्ञा  प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास चन्दावती जो सुप्रतिष्ठित नवगीतकार श्री भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखित है ।एक ऐसी ग्रामीण महिला जिसका नाम चन्दावती है के जीवन पर आधारित है ।जो बाल विधवा हो गई है और उसे उसके ससुराल वालों ने ससुराल से बहिष्कृत कर दिया है ।चन्दावती तेली समाज की हैऔर वह रामलीला में सीता जी की भूमिका निभाती रही है ।गांव में ही रहने वाले और चन्दावती से आयु में अधिक ब्राह्मण समाज के विधुर व्यक्ति हनुमान दादा जो रामलीला में रावण की भूमिका निभाते रहे है और पहलवानी के शौकीन है का चन्दावती से प्रेम हो जाता है ।दोनों एक दूसरे से विवाह कर लेते है ।बाद में चन्दावती को पता चलता है कि हनुमान दादा कुश्ती में आई चोट के कारण संतानोत्पत्ति में असमर्थ है । मैले में लगने वाले जड़ी बूटियों के दवाखाने में उपचार हेतु सपत्नीक जाते है जहाँ बाबा चन्दावती को नियोग की सलाह देते है चन्दावती उपरोक्त परिस्थितियों में स्वयं को ठगा हुआ पाती है 
       चन्दावती को ब्राह्मण समाज से भिन्नं तेली समाज की सदस्य होने के कारण हनुमान दादा के परिवार के लोग उनके भाई और भतीजा शिवप्रसाद तरह तरह से अपमानित करते है।एक बाल विधवा को कितनी प्रकार की मानसिक यातनाएं झेलना पड़ती है यह उपन्यास में बहुत अच्छी तरह से दर्शाया है लोग ऐसी महिलाओं से अनैतिक संबंध बनाना चाहते है पर विवाह कोई नही करना चाहता है ।निचले तबके की विधवा महिला से विवाह करने वाले सवर्ण पुरुष को भी हेय दृष्टि से देखा जाता है ।चन्दावती जिसने अपने भतीजे शिवप्रसाद को पुत्रवत स्नेह दिया ।शिवप्रसाद के विवाह उत्सव के दौरान जिस उत्साह का प्रदर्शन किया ।उसी के द्वारा चन्दावती के पति की मृत्यु हो जाने पर जिस प्रकार से चन्दावती को घर से बाहर निकाल दिया जाता है ।वह अत्यंत हृदय विदारक है लेखक द्वारा विवाह उत्सव पर बारात प्रस्थान के पश्चात महिलाओं द्वारा किये जाने वाले प्रहसनों को जिस मनोरंजक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है वह अद्भुत है ।चन्दावती को उसके भतीजे शिव प्रसाद द्वारा घर से बाहर निकालने पर चन्दावती द्वारा जिस प्रकार प्रतिकार किया जाता है वह उल्लेखनीय है धरना प्रदर्शन देवी दल का गठन, ग्रामीण महिलाओं में रचनात्मक शक्ति का निर्माण , अपनी आवाज को सर्वोच्च स्तर पर पहुचाना, इन सभी उपक्रमो का उपन्यास में बहुत अच्छी प्रकार से समावेश किया गया है ।ग्रामीण आंचलिक महिलाओं की कठिनाइयों के बारे नगरों की अभिजात्य वर्ग की महिलाओं और उनसे जुड़े आंदोलनों को पता ही नही है 
        उपन्यास में आगे चन्दावती के उसके पति की सम्पति के अधिकारों के संघर्ष को लेकर गांव की कुंताबाई और उसकी लड़कियों द्वारा सहयोग दिया जाता है ।चन्दावती के संघर्ष में उसका भाई शंकर भोजाई रजना भी सहयोग करती है ।गांव की राजनीति , पुलिस प्रशासन का धन बल के सहारे  चन्दावती भतीजे शिवप्रसाद द्वारा अपने पक्ष में उपयोग कर चन्दावती को कुचलने के किस प्रकार प्रयास किया जाता है ।यह हमारे पंचायती राज और प्रशासनिक व्यवस्था पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े कर देता है इसी कड़ी में एक हद तक लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ को भी उपन्यास ने कठघरे में खड़ा किया है । अंत मे चन्दावती और कुंता शिव प्रसाद द्वारा रचे गए षडयंत्रो के तहत मारी जाती है परन्तु चन्दावती द्वारा जो आंदोलन स्वयम के अधिकारों के लिए प्रारम्भ किया गया था। वह अंचल की समस्त नारी समुदाय के लिये बन जाता है। जिस मकान से चन्दावती को बहिष्कृत किया गया था।वह देवी दल का कार्यालय और जो जमीन उसे मिलना थी उस विद्यालय निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है
         उपन्यास की अंतर्वस्तु और भाषा सरस हैं ।मूल रूप यह उपन्यास अवधी भाषा मे लिखा गया है बाद में हिंदी में अनुवाद किया गया है इसलिए अवधी भाषा के अंचल में प्रचलित लोक गीतों को पढ़ने का अवसर भी मिल जाता है।कुल मिला कर इस उपन्यास की विशेषता यह है कि जो पाठक इसके कथानक से जुड़ जाता है तो वह पढ़ते चला जाता है कथा में निरन्तर प्रवाह है । कथानक की परिस्थितियां कृत्रिम नही लगती ।पात्र जीवंत प्रतीत होते है 

Tuesday, June 9, 2020

गुस्सा करने का अधिकार

गुस्सा अर्थात क्रोध करने का अधिकार भी हर किसी को उपलब्ध नही होता । यह अधिकार एक विशेषाधिकार है या तो गैर जिम्मेदारों का हथियार होता है या अधिकारों से सम्पन्न ऐसे व्यक्तियों को प्राप्त होता है। जो दूसरों पर अनावश्यक रूप से अपना प्रभुत्व जमाना चाहते है । बेचारे गरीब शोषित , अपना उत्तर दायित्व समझने वाले व्यक्ति को गुस्सा करने का अधिकार कहा रहता है। जिसके पास कुछ खोने का भय नही होता और पाने कोई संभावना नही रहती ।वह गुस्सा कर अपने महत्व स्थापित करने का प्रयास करता है और परिवार व समाज मे कलह ईर्ष्या अशांति का वातावरण तैयार कर अपनी मांगे मनवाता है ।
           थोड़ी थोड़ी बात पर गुस्सा हो जाना ,बात बात पर भड़क जाना,अपनी बात को स्वीकारोक्ति दिलवाने के लिए अनुचित तर्कों का सहारा लेना,यह एक कमजोर  और असफल व्यक्ति के लक्षण है । समझदार व्यक्ति के लिए ऐसे व्यक्तियों से निपटने के लिए स्वयं को संयमित और नियंत्रित करने के अतिरिक्त कोई उपाय नही है ।
          कमजोर और असफल व्यक्तियों को यह पता ही नही चलता कि उनकी गुस्सेल प्रवृत्ति से अभी तक कितना नुकसान उठा चुके है । हकीकत में उनकी असफलता का सबसे बड़ा कारण उनका अकारण और असमय अनुचित्त व्यक्ति पर गुस्सा होना ही होता है।बेचारा सफल और जिम्मेदार व्यक्ति तो निरंतर जहर ही पीता रहता है ।अनगिनत कठिनाईया उठाने के बावजूद समस्या के समाधान में रत रहता है
          कभी कभी लोग यह यह कहते है अमुक व्यक्ति को गुस्सा आता ही नही है ।उन्हें यह मालूम नही होता कि बेचारे उस व्यक्ति को अतीत में गुस्से की कीमत चुकाई है । वैसे भी हर किसी व्यक्ति पर गुस्सा भी तो नही किया जा सकता ।व्यक्ति जिसे अपना समझता है अधिकार समझता है।उसी पर गुस्सा किया जा सकता है ।अविश्वसनीय पराये और अनुत्तरदायी व्यक्ति पर गुस्सा करने से क्या लाभ । समाज मे ऐसे कितने व्यक्ति है जो किसी पर गुस्सा नही करते उसका कारण यह है ।एक एक उनका सारे रिश्तों से विश्वास उठ चुका है ,आत्मीयता समाप्त हो चुकी है मात्र कर्तव्य समझ कर अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे है ।लोगो को ऐसे व्यक्तियों को कभी हल्के में नही लेना चाहिए। ऐसे व्यक्ति कभी भी बड़ा निर्णय ले सकते है ।जिसका परिणाम ऐसे लोगो को उठाना पड़ सकता है जो छोटी छोटी बात पर गुस्सा करना अपना अधिकार समझते है और ऐसे जिम्मेदार और संयमित व्यक्ति अपमानित करते रहते है

Monday, June 8, 2020

नीति नियत और नियति -कहानी

अभय के परिवार में तीन सदस्य थे ।अभय उसकी माँ और उसके पिता शिवनारायण शिवनारायण शासकीय सेवक थे ।
       यदा कदा अभय और उसकी माता के बीच यह चर्चा होती रहती थी कि शिवनारायण जी का स्वास्थ्य खराब रहता है,यदि शिवनारायण के सेवा निवृत्ति के पूर्व उनकी मृत्यु हो जाती है तो अभय को अनुकम्पा नियुक्ति और उसकी मां को पेंशन मिलती रहेगी ।इस प्रकार अभय और उसकी माँ अपने भविष्य के लिए पूरी तरह से आश्वस्त थे ।शिवनारायण जी के स्वास्थ्य खराब रहने कारण उनकी समय समय पर चिकित्सा और जांच होती रहती थी।दवाईया भी समय समय पर दी जाती थी ।
     अभय अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त होने के कारण किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग नही लेता और नही पढ़ने लिखने में उसकी कोई रुचि थी।शिवनारायण जी अभय को कुछ कहते तो अभय की माँ शिवनारायण जी को टोक देती उन्हें कुछ कहने नही देती ।शनै: शनै: समय निकलता जा रहा था। अभय निरन्तर ढीठ और उद्दंड होता जा रहा था।   इधर एक दिन अभय की माँ को अचानक चक्कर आ गए और वह बाथरूम में गिर पड़ी ।डॉक्टर को बताया तो कई प्रकार की  चिकित्सकीय जांचे हुई। रिपोर्ट आने पर पता चला कि अभय की माँ को गम्भीर और असाध्य बीमारी है । अभय के पिता को शासकीय सेवा करते करते 60 वर्ष पूरे होने वाले थे ।सेवा निवृत्त होने के ठीक दूसरे दिन अभय के पिता शिवनारायण को ह्रदयाघात हो गया ।हॉस्पिटल में भर्ती होने के उनका देहांत हो गया ।अब तो अभय की अनुकंपा होने के भी सारी संभावना भी समाप्त हो गई थी। अभय एवम उसकी माता को इस बात का दुख था कि शिवनारायण को मरना ही था तो सेवा में रहते मरते ,सेवा निवृत्त होने के दूसरे दिन मरने से क्या लाभ हुआ ।एक मात्र अनुकम्पा नियुक्ति की अभय की आशा भी टूट गई। फिर भी अभय को इस बात के लिए हो गया कि अभी तो माँ की पेंशन से काम चलता रहेगा ।परन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था।अभय मां की बीमारी अब और भी अधिक बढ़ चुकी थी।गंभीर स्वरूप धारण करने से दवाईयों का खर्च भी अत्यधिक हो गया था। माँ की पेंशन के सारे पैसे इलाज में ही खर्च होने लगे ।अभय की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था ।
            अभय अब स्वयम को असहाय अनुभव कर रहा था।सोच रहा था काश उसने कोई अच्छा सोच होता है ।वह सकारात्मक सोच रखता तो आज वह अपने पैरों पर खड़ा होता ।उसे समझ आ गया था यह आदमी की नीति और नियत का ही खेल है ।आदमी की नीति और नियत जैसी होती है उसकी नियति वैसी ही बन जाती है ।

Thursday, May 28, 2020

उपन्यास -शिगाफ

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास शिगाफ  महिला लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा लिखित है। उपन्यास का आरम्भ कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवार की एक युवती अमिता जो स्पेन के बार्सिलोना और मेड्रिड शहर में निवास करती है कि आत्मकथा के रूप में लिखी जाने वाली डायरी से होता है । लेखन और अनुवाद के व्यवसाय से जुड़ी  कश्मीरी युवती का संपर्क प्रकाशन व्यवसाय से जुड़े इयान ब्रान से होता है। अमिता और इयान के प्रेम और प्रणय की परिस्थितियों के बीच उपन्यास की कथा आगे बढ़ती है , जो बार बार स्पेन और कश्मीर के बीच की सामाजिक परिस्थितियों और राजनैतिक पृष्ठभूमियो के विश्लेषण तक पहुचती है 
        अमिता उपन्यास की कथा के अनुसार आत्मानुभव अपने  भाई अश्वथ से ब्लॉग के माध्यम  से बाँटती है ।कालांतर में अमिता भारत में आ जाती है। दिल्ली शहर में अमिता उसके पिता और उसके अंकल जो कश्मीर से विस्थापित हो कर कठिन परिस्थितियों में रह रहे है ।उनके कश्मीर की समस्या के प्रति दृष्टिकोण और अनुभूतियो को देखती है ।जम्मू के शरणार्थी शिविरों में कश्मीरी पंडितों की यंत्रणा पूर्ण जिन्दगो को यह उपन्यास परिचित कराता है 
   उपन्यास की कथा के दौरान अमिता कश्मीर के श्रीनगर और पहलगाम पहुचती है जहाँ उसके भाई अश्वत्थ का रंगकर्मी मित्र वजीर मिलता है जो उसके पैतृक निवास स्थान पर ले जाता है अमिता के सामने वे भावुक पल होते है जब उन्हें आधी रात को उसके परिवार सहित कश्मीर से खदेड़ा गया था । कश्मीर में अमिता उसके शिक्षक रहमान सर से मिलती है ।रहमान सर की लड़की यास्मीन जो अमिता की बचपन की सहेली होती है उसकी डायरी जब अमिता को रहमान सर से प्राप्त होती है ।तब उपन्यास यास्मीन की आत्मकथा के रूप में प्रारम्भ होता है ।जिसमे यास्मीन का निकाह एक विधुर से कर दिया जाता है।।कश्मीरी युवतियों को आतंकवादियों द्वारा प्रेमपाश में फांस कर किस प्रकार मानवबम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,यह उपन्यास में अच्छी तरीके से बताया गया है ।कश्मीर समस्या पर उपन्यास के माध्यम से विभिन्न दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया है । कश्मीर समस्या के फलस्वरूप उपन्यास में यह तो बताया ही गया है कि कश्मीर में किस प्रकार कश्मीरी पंडितो पर नृशंस अत्याचार कर बेदखल किया है साथ मे यह भी बताया गया है एक आम कश्मीरी किस प्रकार से आर्मी और आतंकवादियों के बीच मे बुरी तरह फंसा हुआ है ।कई गांव पुरुष विहीन हो चुके है मात्र महिला, बच्चे और वृध्द बचे हुए है ।उपनयास का अंत भूकम्प की त्रासदी से होता है
       उपन्यास की मुख्य पात्र अमिता निरन्तर प्रेम और प्रणय के निश्चय अनिश्चय में झूलती रहती है ।कभी वह इयान ब्रान के प्रति तो कभी कश्मीरी पत्रकार जमाल के तो कभी आर्मी के जवान शांतनु में अपना प्रेम तलाशती है ।उपन्यास में अलग अलग प्रक्रमो पर अलग अलग पात्र आत्मकथा के रूप उपन्यास की कहानी को आगे बढ़ाते है ।उपन्यास में पात्रो द्वारा स्वयम से संवाद भी किया गया है ।संवाद की भाषा और भाव काव्यात्मक होकर अनुभूतियो की प्रखरता को प्रकटित करते है 

Friday, May 22, 2020

उपन्यास 84

सत्य व्यास द्वारा लिखित 84 चौरासी उपन्यास 1984 के सिख विरोधी दंगो पर आधारित है । उपन्यास का प्रारम्भ लेखक द्वारा उपन्यास के महत्वपूर्ण पात्रो मनु , मनु की माँ मनु के पिता छाबड़ा साहब और ऋषि जो मनु के मकान का किरायेदार होता के परिचय कराने से प्रारम्भ होता है । छाबड़ा साहब बाहर कही से आकर ओद्योगिक नगर में रहने के लिए आते है और वे मकान खरीद कर अपने व्यवसाय  चलाते है ।मकान का किरायेदार ऋषि स्कूल के बच्चो को ट्यूशन पढ़ाता है ।मोहल्ले के अंदर जो ऋषि की साफ छवि होती है, मोहल्ले के बाहर इसके विपरीत उसका उद्दंड व्यक्तित्व होता है 
        छाबड़ा साहब की एक मात्र लड़की मनु जो मन ही मन ऋषि की और आकर्षित होती है , वह कॉलेज की छात्रा होते हुए ऋषि से ट्यूशन पढ़ने का आग्रह करती है ।ऋषि के मना करने पर उसे भावनात्मक दबाव में ले लेती है, फिर मनु को पढ़ाने के लिये मान जाता है। अंततः मनु और ऋषि में निश्चय अनिश्चय के बीच मन मोहक संवादों और भाव भंगिमाओं के बीच प्रेम की परिणीति होती है । इसी दौरान बिहार में सूर्य पूजा के त्यौहार हलछठ पर मनु और ऋषि के मध्य उपस्थित हुए प्रेम प्रसंग महत्वपूर्ण हो जाते है ।लेखक ने हलछठ के उत्सव  और उससे जुड़ी परम्पराओ का उल्लेख बहुत ही विस्तृत किया है । प्रेमी युगल के बीच उपजे प्रसंगों  और भावनाओं को काव्यात्मक रूप से रेखांकित किया है  । 
   उपन्यास  में मोड़ तब आता है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की उनके अंग रक्षको की हत्या के परिणाम स्वरूप सिख समुदाय के विरुध्द लोगो आक्रोश घृणा  पैदा होता है ।जिसके कारण ऋषि द्वारा उसकी प्रेमिका मनु और उसके परिवार को आक्रामक भीड़ से बचाने के प्रयास किये जाते है और इन प्रयासों के दौरान भीड़ का हिस्सा रहते हुए चुनोतियो का सामना करना पड़ता है ।हिंसा के दृश्यों को लेखक द्वारा शब्द चित्रों के माध्यम बहुत ही बेहतर तरीके से दर्शाया है। दंगा समाप्त होने के उपरांत ऋषि द्वारा मनु और उसके  परिवार को सफलता पूर्वक बचा लेने के बाद जो प्रेमी और प्रेमिका  का बिछोह होता है वह दुखांत है जो गंगा सागर की यात्रा तक समाप्त होता है 

Sunday, May 17, 2020

"प्रेम लहरी " एक उपन्यास

हाल ही में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित "प्रेम लहरी " एक ऐसा उपन्यास है जो मुग़ल  बादशाह शाहजहाँ के शासन काल के समय प्रचलित व्यवस्था सामाजिक परिवेश उनकी पारिवारिक स्थितियो को दर्शाता है शाहजहाँ  की बेगम मुमताज के प्रति उनके प्रेम की परतो को खोलता है शाहजहां की १४ सन्तानो की उत्पत्ति को लेकर उनकी प्रेम के नाम पर कामुक भावनाओ का परिचय देता है |   वैसे तो इस उपन्यास में मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओ के प्रति तीर्थ यात्रा को लेकर लिए जाने वाले कर का उल्लेख किया गया है तथा बिना शासकीय अनुमति के हिंदु  मंदिरो के निर्माण  किये जाने के निषेध सम्बंधित विधि की और ध्यान दिलाया गया है |  परन्तु  शाहजहाँ और उसके पुत्र दाराशिकोह को  हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास  करने सम्बंधित प्रसंग भी बताये गए है |  त्रिलोकी नाथ पांडेय द्वारा अभिलिखित इस उन्यास को पढ़ते समय लगता है कि  हम उस युग में प्रवेश कर रहे है ।उपन्यास को पढ़ते समय कथानक के समस्त पात्रो के चित्र और स्थान हमारी कल्पना के पटल पर उतरते चले  आते है |
 उपन्यास का मुख्य पात्र पंडित जगन्नाथ के व्यक्तित्व का प्रभावी रूप से उल्लेख किया गया है पंडित जगन्नाथ की काव्यात्मक प्रतिभा और शारीरिक क्षमता का एक साथ होना शाहजहाँ  की सबसे छोटी पुत्री लवंगी के ह्रदय में प्रेम अंकुरित कर देता है | जहाँ  पंडित जगन्नाथ और लवंगी के बीच निश्छल प्रेम जो आध्यत्मिक उंचाईयों को छूता  है | वही शाहजहाँ  की बड़ी पुत्री जहां आरा  के बादशाह के साथ अनैतिक सम्बन्ध और रोशन  आरा के कामुकता  पूर्ण स्वेच्छाचारिता विचलित  कर देती है |  उपन्यास में पंडित जगन्नाथ के गुरु पंडित कवींद्र  के बारे में काफी अच्छे तरीके से बताया गया है | तत्कालीन समय में जो उनकी हिन्दू समाज में उपस्थिति दर्शाई गई है वह काफी महत्वपूर्ण है |  उपन्यास में एक पात्र आता है वैद्य  सुखदेव | वैद्य सुखदेव आर्युवेदिक ओषधियो  को  बाादशाह हेतु तैयार कर करता है और किस प्रकार बादशाह तैयार की गई वाजीकारक ओषधियो का उपयोग कर अपनी वासनाओ की तुष्टि करते है यह बहुत ही चुटीले अंदाज बताया गया है | 
         उपन्यासकार द्वारा भाषा का चयन  पात्रो के अनुसार किया है |  उपन्यास में यथा  स्थान पात्रो के संवाद जिस चुटीली भाषा में अंकित किये गए है उनसे राग दरबारी की याद आ जाती है | विशेष रूप से काशी में एक निः संतान सेठ को संतान प्राप्ति पर शिव मंदिर निर्माण का घटनाक्रम में उपजे शब्द चित्र उपन्यासकार श्री  लाल शुक्ल के उपन्यास "राग  दरबारी "की याद दिला देते है |  प्रेम लहरी उपन्यास में पात्रो के माध्यम से लेखक ने कई भजनो ,श्लोको आर्युवेदिक ओषधियो के सूत्रों का उल्लेख किया है | उपन्यास पढ़ते समय लगता है लेखक ने उपन्यास  वर्णित काल को जिया है \उपन्यास के अंत में प्रेमी जोड़े पंडित जगन्नाथ एवं शहजादी लवंगी का विवाह धर्म की दीवारों के कारण असंभव होना दर्शाते हुए \बादशाह शाहजहाँ  को एक हिन्दू विधवा चंद्रशिला के शीलभंग  के प्रयास और प्रयास के दौरान चंद्रशिला द्वारा आत्महत्या की जा बताया है \ कुल मिलाकर यह उपन्यास पाठको की ऐतिहासिक  जिज्ञासाओं को शांत करता है \शाश्वत प्रेम के प्रति आस्था जाग्रत करता है \ मुग़ल बादशाह शाह जहां के तथाकथित प्रेम के प्रति भ्रांतियों का निवारण करता है 

Tuesday, April 7, 2020

हनुमान किसे कहते है

बुरे वक्त में जो काम आए
उसे इंसान कहते है
मुसीबत में जो भगवान बन जाये
उसे हनुमान कहते है
हनुमान वहां है जहाँ श्री राम रहते है
राम वहा रहते है
जहां सच्चे और भोले इंसान रहते है
इंसान का बुरा वक्त तो निकल जाता है
पर मदद करने वाला इंसान सदा याद आता है
मदद का दूसरा नाम हनुमान है
जिनकी शक्ति का नही लगा सकते अनुमान है
हनुमान वहां प्रगट होते है
जहा समस्त सम्भावनाये
समाप्त हो जाया करती है
एक सच्चे व्यक्ति के हृदय को लगती है चोट
भावनाएं जब छल जाया करती है
हनुमान वहां पर विद्यमान है
जहां सच्चाई के सामने
कोई क्रूर आतताई बलवान है
हर ली गई हो सीता
असहाय और लाचार श्रीराम है
हनुमान उस शक्ति का नाम है
जो जन जन के भीतर रहा करती है
हनुमान उस भक्ति का नाम है
जो सच्चे और पावन हृदयो में
कल कल और छल छल सी बहा करती है
हनुमान वह संजीवनी है
जिसे पाकर सच्चाई का साथी लक्ष्मण जीता है
हटा बुराई का तमस
पुनः प्रतिष्ठित हुई सीता है
हनुमान वह मर्यादा है
जो अपनी बल की सीमाएं जानती है
चुनोतियाँ मिलने पर
कभी सूरज की निगलती है तो कभी
सागर लांघती है
हनुमान वह अंतरदृष्टि है
जो अच्छाई और बुराई में
भली भांति भेद कर पाती है
वह दूर दृष्टि है जो सागर को लांघ कर
लंका भेद कर आती है
हनुमान वह सक्रियता है जो निरंतर चली है
सच्चाई के सूरज की वह रोशनी है
वह कभी नही ढली है 
हनुमान  वह आत्मबल है जो विपदा में ऊर्जा प्रदान करता है
भगवद हृदय विभीषण और सुग्रीव की पीड़ा हरता है 
बीमारी और महामारी में जब व्यक्ति जीता है न मरता है
तब हनुमद का सम्बल लोगो को मिलता है और स्वास्थ्य खिलता है

Tuesday, March 17, 2020

सत्संग का लाभ

लालूराम अपने पिता का एक मात्र पुत्र था 
उसकी पढ़ाई करने में कोई रुचि नही थी फिर भी उसने पढ़ना लिखना सिख लिया था । घर वाले उसे किसी काम के लिए कहते तो वह हा ! हूँ करके अनसुना कर देता था ।ज्यादा कुछ कहते तो वह चिढ़ कर क्रोधित हो जाता और बोलता कि तुम्हे मैं दिखता हूँ खटकता हूँ। अकड़ इतनी कि उसको सारी प्रतिभा स्वयम में ही दिखाई देती थी ।अपने खिलाफ कोई शब्द सुनने के लिए वह तैयार नही था।जब मर्जी होती तब उठता ।जब मर्जी होती तब भोजन करता। अगर इच्छा होती तो सुबह नहा लेता ।नही तो शाम को शाम को रात किसी भी समय स्नान करता ।उसने धारणाये बना ली उसे ध्वस्त करना आसान नही था।घर वाले भी उससे उकता गए थे। एक दिन वह नदी के किनारे जाकर बैठ गया ।नदी के पास पुराना मंदिर था | आश्रम और गौशाला थी वहां का माहौल देखकर लालूराम का मन वहां लग गया ।संतो के मुँह से उसे अच्छी अच्छी बातें सुनने अच्छा लगता था। लालूराम अब वही रहने लगा था। आश्रम की रसोई में जब भी कभी कोई संत महंत आते तो वह उत्साहित होकर उनके लिए भोजन बनाता। तरह तरह की आध्यात्मिक चर्चाओ रस ले लेकर सुनता। आश्रम के संत कही तीर्थ यात्रा मेलो में जाते तो वह भी उनके साथ चला जाता । उसे कार जीप चलाना आ गया था। वाहन चलाते चलाते संत उदाहरण लेकर उसे पौराणिक प्रसंगों को सुनाते  जो भीतर तक प्रभावित कर देती । शनै: शनै: लालूराम का व्यक्तित्व निखरने लगा था। उसके हृदय में दुसरो के प्रति करुणा का भाव उमड़ने लगा था। अब वह पहले जैसा लालूराम नही रहा। अब वह ललितानंद बन चुका था। गुरु के मुख से पौराणिक आख्यानों को सुन कर ।संतो के मुख से भजनों को सुनकर जो ज्ञान और अनुभूतिया प्राप्त हुई थी वे भीतर से उसे आंनदित करती रहती थी ।उसे सत्संग का अर्थ और उससे मिलने वाले लाभ समझ में आ गए थे

Monday, March 16, 2020

सफलता का सूत्र -नियमित जीवन

सफलता के सूत्र अनेक है परंतु नियमित जीवन व्यक्ति के सफलता की कुंजी है । किसी भी सफल व्यक्ति के जीवन पर दृष्टिपात करो यही पाओगे की उसका नियमित जीवन है ।सोने ,उठने ,बैठने ,खाने, पीने,नहाने ,आने ,जाने, व्यायाम, ध्यान, पूजा इत्यादि का एक निश्चित क्रम है ।नियमित जीवन से तन के साथ मन भी स्वस्थ रहता है ।समय पर उचित भोजन करने से शरीर को पोषण प्राप्त होता है ।समय पर व्यायाम से शरीर मे ऊर्जा बनी रहती है ।समय पर नींद लेने से आलस्य और प्रमाद नही रहता। निर्धारित समय पर तैयार होकर अपने कार्य स्थल पर जाने से और समय पर कार्य निबटाने से कार्य का दबाव नही रहता ।प्रत्येक कार्य मे वांछित परिणाम प्राप्त होते है । जीवन मे कोई भी लक्ष्य असम्भव नही रह जाता । कितना व्यायाम करना है ?कितना भोजन करना है ?कितनी नींद लेना है? ।यह व्यक्ति के व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर है सभी के लिए कोई सामान अनुपात नियत नही किया जा सकता है । बस इस तथ्य का ध्यान रखना होगा कि आप जिस कार्य मे संलग्न हो वह पूरी तत्परता और क्षमता से कर सको।यदि मानसिक श्रम करने वाला व्यक्ति अधिक व्यायाम करेगा तो उसे अधिक भोजन करना पड़ेगा ।अधिक भोजन करने  से उसे अधिक नींद आएगी। ऐसा व्यक्ति अपने कार्य मे पूरी तल्लीनता से कार्य नही कर पायेगा। इसी प्रकार शारीरिक परिश्रम पर आधारित व्यवसाय वाले व्यक्ति का व्यायाम भोजन का भिन्न अनुपात होगा ।नियमित जीवन इसलिए भी आवश्यक है कि इस भाग दौड़ की जिंदगी में  समय की भारी कमी रहती है ।व्यक्ति  को अपनी क्षमता को  पूर्णता प्रगट से करने के कई प्रकार के दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है। प्रत्येक दायित्व की पूर्ति के लिए सही अनुपात में समय देना महत्वपूर्ण है 

Thursday, March 12, 2020

सफलता असफलता

जीवन मे जितनी जरूरी सफलता है उतनी ही जरूरी असफलता है असफलता हमे वह घाव देती है जिसकी पीड़ा हमे सफलता पाने के बैचैन कर देती । सफलता से पाई उपलब्धि उसी के पास  अधिक समय तक टिकी रहती है जिसने उसको पाने की कीमत चुकाई है सफल होने के लिए जिसने अपना सुख चैन खोया है । बिना संघर्ष अर्जित की गई सफलता चिर स्थाई नही रहती।संघर्ष पथ पर आई छोटी मोटी कठिनाईया हमे वे अनुभव देती है जिनके बल पर हम लक्ष्य पहुंच कर वे महत्वपूर्ण निर्णय लेते है जिनकी गूंज बड़ी दूर तक सुनाई देती है । संघर्ष से पाई सफलता से सफल व्यक्ति के जीवन से लोग प्रेरणा लेते है इतिहास उसकी गाथाये लिखता है इसलिए असफलता से घबराना ठीक नही है असफल होकर सफलता के लिए प्रयास से विमुख होना किसी दृष्टि से उचित नही है एक ही पद पर विराजित दो अलग अलग व्यक्तियों के कार्य शैली को देख कर कोई व्यक्ति यह कह सकता है कि यह व्यक्ति अनुभवी है और यह व्यक्ति अनुभवहीन । अनुभव व्यक्ति को कुशलता देता है कार्य मे कुशलता वही व्यक्ति प्राप्त करता है जो कभी न कभी असफल हुआ हो जिसने संघर्षो देखा हो अवसर और अपने पराये को जाना हो पहचानो इसलिए हे मित्रो  असफलता से मत डरो पूरे मन से समग्र चिंतन पूरे परिश्रम से प्रयास करो ।यह असफलता ही तुम्हे सफल व्यक्ति के रूप में मुकाम दिलवाएगी । और ऐसी सफलता तुम्हारा जीवन ही नही कई आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाएगी