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Monday, June 8, 2020

नीति नियत और नियति -कहानी

अभय के परिवार में तीन सदस्य थे ।अभय उसकी माँ और उसके पिता शिवनारायण शिवनारायण शासकीय सेवक थे ।
       यदा कदा अभय और उसकी माता के बीच यह चर्चा होती रहती थी कि शिवनारायण जी का स्वास्थ्य खराब रहता है,यदि शिवनारायण के सेवा निवृत्ति के पूर्व उनकी मृत्यु हो जाती है तो अभय को अनुकम्पा नियुक्ति और उसकी मां को पेंशन मिलती रहेगी ।इस प्रकार अभय और उसकी माँ अपने भविष्य के लिए पूरी तरह से आश्वस्त थे ।शिवनारायण जी के स्वास्थ्य खराब रहने कारण उनकी समय समय पर चिकित्सा और जांच होती रहती थी।दवाईया भी समय समय पर दी जाती थी ।
     अभय अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त होने के कारण किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग नही लेता और नही पढ़ने लिखने में उसकी कोई रुचि थी।शिवनारायण जी अभय को कुछ कहते तो अभय की माँ शिवनारायण जी को टोक देती उन्हें कुछ कहने नही देती ।शनै: शनै: समय निकलता जा रहा था। अभय निरन्तर ढीठ और उद्दंड होता जा रहा था।   इधर एक दिन अभय की माँ को अचानक चक्कर आ गए और वह बाथरूम में गिर पड़ी ।डॉक्टर को बताया तो कई प्रकार की  चिकित्सकीय जांचे हुई। रिपोर्ट आने पर पता चला कि अभय की माँ को गम्भीर और असाध्य बीमारी है । अभय के पिता को शासकीय सेवा करते करते 60 वर्ष पूरे होने वाले थे ।सेवा निवृत्त होने के ठीक दूसरे दिन अभय के पिता शिवनारायण को ह्रदयाघात हो गया ।हॉस्पिटल में भर्ती होने के उनका देहांत हो गया ।अब तो अभय की अनुकंपा होने के भी सारी संभावना भी समाप्त हो गई थी। अभय एवम उसकी माता को इस बात का दुख था कि शिवनारायण को मरना ही था तो सेवा में रहते मरते ,सेवा निवृत्त होने के दूसरे दिन मरने से क्या लाभ हुआ ।एक मात्र अनुकम्पा नियुक्ति की अभय की आशा भी टूट गई। फिर भी अभय को इस बात के लिए हो गया कि अभी तो माँ की पेंशन से काम चलता रहेगा ।परन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था।अभय मां की बीमारी अब और भी अधिक बढ़ चुकी थी।गंभीर स्वरूप धारण करने से दवाईयों का खर्च भी अत्यधिक हो गया था। माँ की पेंशन के सारे पैसे इलाज में ही खर्च होने लगे ।अभय की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था ।
            अभय अब स्वयम को असहाय अनुभव कर रहा था।सोच रहा था काश उसने कोई अच्छा सोच होता है ।वह सकारात्मक सोच रखता तो आज वह अपने पैरों पर खड़ा होता ।उसे समझ आ गया था यह आदमी की नीति और नियत का ही खेल है ।आदमी की नीति और नियत जैसी होती है उसकी नियति वैसी ही बन जाती है ।