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Sunday, January 1, 2012

युध्द नीती का श्रीराम एवम श्रीकृष्ण से संबध


 

पुरुषोत्तम  श्री राम एवम भगवान् कृष्ण के जीवन  की कथाओं का युध्द नीती से अत्यधिक सम्बन्ध है 

जिसके बारे में चिंतन की आवश्यकता है 
वर्तमान में जो महाशक्ति अमेरिका द्वारा जिस प्रकार से ईराक अफगानिस्तान में हुए युध्दों में जिस प्रकार की रण नीती बनायी गयी थी 
उससे बेहतर रण -नीति तत्समय भगवान कृष्ण एवम राम तथा पवन पुत्र हनुमान द्वारा बनायी गई थी 
युद्ध नीती का यह सूत्र की सदा शत्रु की धरा पर किया गया युध्द शत्रु पक्ष को अधिक क्षति कारित कर सकता है
का पालन रामायण में हुए युध्द से परिलक्षित होता है 
जहा युद्ध स्थल शत्रु अर्थात रावण राज्य लंका रही थी 
दूसरा सूत्र यह की स्वयं की भूमि को युद्ध के दुष्प्रभावो से मुक्त रखना 
रामायण में हुए युध्द से दर्शित होता है जिसमे श्रीराम चाहते तो अयोध्या से सैन्य बल मंगवा सकते थे 
किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और वनवासियों की वृहद् सेना इकठ्ठी की 
जिस प्रकार से अमेरिका ने ईराक एवम अफगानिस्तान में हुए युध्दो में स्वयं के सेना का न्यूनतम उपयोग करने की योजना के तहत नाटो सेना को युध्द में उतारा था 
यदि श्रीराम अयोध्या की से सैन्य बल मंगावाते तो संभव है 
रावण की सेना के मायावी राक्षस अयोध्या में विध्वंस करते 
जिसका लंका में हो रहे राम रावण युध्द पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता 
स्वयं की धरा को युध्द से मुक्त रख शत्रु से युध्द करने की नीती भगवान् कृष्ण ने भी अपनाई थी 
जिसके तहत उन्होंने कंस का वध किये जाने के पश्चात जरासंघ की विशाल सेना से मथुरा राज्य कोबचाने के सभी  उपाय किये चाहे उन्हें रण-छोड़ के रूप में संबोधित किया गया हो 
पर उन्होंने मथुरा राज्य को युध्द भूमि नहीं बनने दिया 
पश्चातवर्ती घटना क्रम में उन्होंने द्वारका के रूप ऐसे राज्य की स्थापना की जो भोगौलिक दृष्टि से सभी प्रकार से सुरक्षित थी 
इसी कारण श्रीकृष्ण महाभारत में महायुध्द हेतु पांडवो की सहायता में समर्थ हो सके 
युध्द नीती का यह सूत्र की युद्ध के पहले शत्रु को सभी प्रकार से निर्बल कर देना 
रामायण में भगवान् राम ने मुख्य युद्ध के पहले 
रावण बंधू खर दूषण का वध 
तथा पवन पुत्र हनुमान द्वारा सीता जी की खोज के दौरान

प्रमुख राक्षसों का वध व् लंका दहन कर रावण के आयुधागार  को क्षति कारित करते हुए शत्रु दल को भय भीत कर देना इसी नीती का अंग है 
उसी प्रकार से महाभारत युद्ध के पूर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कौरवो के शुभ चिंतक जरासंघ ,कंस ,शिशुपाल का वध भिन्न भिन्न प्रकार से भिन्न भिन्न परिस्थितियों कराया जाना तथा किया जाना इसी नीती को दर्शाता 
क्योकि यदि जरासंघ की मृत्यु नहीं होती तो वह तथा उसकी विशाल सेना कौरवो की ही सहायता करती
इस प्रकार भगवान् विष्णु के दोनों अवतारों द्वारा जो युध्द नीती अपनाई गई वह आज भी प्रासंगिक है जिस पर अन्वेषण की आवश्यकता है