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Saturday, October 31, 2020

संस्कृति और संस्कृत

लोग कहते है 
संस्कृत और संस्कृति मर रही है 
संस्कृत और संस्कृति के स्थान पर 
पाश्चात्य भाषा और संस्करहीनता
विद्रूप रूप धर रही है 
परन्तु संस्कृत और संस्कृति कभी मरा
नही करती है 
संस्कृत जीवित है
मंत्रो के उच्चारण में ।
श्लोको में हिंदी की व्याकरण में 
संस्कृत जीवित है 
हिंदी के संधि विच्छेद में 
अलंकार में बिम्ब में प्रतिबिम्ब में 
संस्कृत से जुड़कर 
हिंदी समृध्द हो जाती है 
विज्ञान में जब हिंदी में 
तकनीकी शब्दावलिया नही मिली पाती है 
तो संस्कृत याद आती है
संस्कति वहा याद आती है 
जब संयुक्त परिवार की परम्पराए समाप्त 
हो जाती है और विचारों और संस्कारों में
 लघुता आ जाती है 
संस्कृति वहा याद आती है 
जब विदेशो में बसे भारतीय की आँख
अपनी मिट्टी की याद से भींगो जाती है
इसलिये संस्कृत और संस्कृति 
कभी मरा नही करते है 
वे सदैव अपनो परम्पराओ रूढ़ियों 
पुरातन और सनातन ज्ञान की धाराओं में 
बहा करते है

Monday, October 26, 2020

तेरे दर भगवान

सच्चे अच्छे कार्य करे, सेवा और उपकार
सेवा तुझको धन्य करे,उपकृत से दातार

सेवा तो गुमनाम रहे, दाता रहे अनाम
याचक बनकर माँग रहा, तेरे दर भगवान

मिल जुल करके काम करो, रखो कार्य मे धार
कार्य यहाँ अनिवार्य रहा, परखा फिर व्यवहार

मिलता जुलता रूप रहा, मिलते जुलते गुण
उल्टे सीधे कार्य करे ,फिर भी कार्य निपुण

मिली जुली कोई बात मिली , मिलते नये पड़ाव
मिलने का जब दौर चला, मिले हृदय में घाव



Sunday, October 25, 2020

Srijan: देहरी में हो दीप

Srijan: देहरी में हो दीप: घर मे खुशिया बसी रहे, देहरी में हो दीप दोहरे होते चाल चलन , उन सबको तू लीप मौलिकता तो मिली नही , मिले मिलावट लाल मिले जुले ही रूप मिले , मौल...