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Saturday, July 28, 2012

ईश्वरीय कृपा

रामायण मे प्रसंग आता है कि
रावण,कुम्भकर्ण,विभीषण तीन भ्राता थे
जो पुलस्त्य षि की सन्तान थे
तीनो ने एक साथ ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की थी
ब्रह्मा जी प्रसन्न हुये तब तीनो ने अपनी व्रत्तियो के अनुरुप
ब्रह्म देव से वर मांगे
रावण ने अमरता एवम असीम पराक्रम का
कुम्भकर्ण ने आलस्य एवम प्रमाद के वशीभूत होकर
चिर निद्रा का
विभीषण ने भगवान विष्णु मे अनन्य भक्ति का वरदान मांगा
वरदान के अनुरुप उनकी नियति बनी
रावण एवम कुम्भकर्ण अकाल मृत्यु मारे गये
विभीषण जिन्होने भगवान विष्णु की अनन्य भक्ति का वर पाया
वे अनंत काल तक भगवान विष्णु की भक्ति मे लीन रहे
लंका का राज सुख भोगा
शास्त्रो के अनुसार वे सप्त चिरंजीव मे गिने जाते है
इसलिये उन्होने अमरता का वरदान नही पाया फिर भी वे अमर है
तात्पर्य यह है कि कोई व्यक्ति कितनी भी साधना ,तपस्या ,पुरुषार्थ कर ले
उसका उद्देश्य पवित्र नही हो तो वह व्यर्थ है
पवित्र उद्देश्य को सामने रख कर की गई साधना ,तपस्या ,पुरुषार्थ से
पाई किसी भी प्रकार की उपलब्धि
अपने साथ दैविक सम्पदा ,दीर्घायु ,यश,एवम ईश्वरीय कृपा प्रदान करती है