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Friday, July 26, 2013

लघु कथा -रामकिशन

पारिवारिक जिम्मेदारियों से पलायन कर 
रामकिशन शान्ति की खोज में 
गंगा तट के किनारे एक महात्मा के आश्रम पर पहुंचा 
आश्रम की व्यवस्था के अनुसार
 प्रत्येक आश्रमवासी की एक नियत दिनचर्या थी 
सौपे गए कुछ कार्य थे गोशाला ,पाक शाला ,
 गुरुसेवा ,अतिथि सेवा जिसमे शामिल थी 
कुछ दिनों तक आश्रम में रहने के बाद 
राम किशन को भान हुआ की 
यह सब तो वह अपने परिवार में 
रह कर भी तो कर सकता था
 फिर वह क्यों शान्ति की खोज में गंगा तट पर आया
 और कर्म से पलायन किया 
तब उसे समझ में आया की कर्म ही धर्म है 


विचार -बिंदु

जिस प्रकार बहुमूल्य धातु और रत्न 
मिटटी में रह कर भी अपनी चमक और गुण धर्म नहीं खोते 
उसी प्रकार से गुणवान व्यक्ति दुर्गुणों से घिरे होने के बावजूद 
अपने गुणों को नहीं खोते
 
पारस वह पत्थर होता है 
जिसके संपर्क में आने पर लोहा भी स्वर्ण का रूप धारण कर लेता है
उसी प्रकार से योग्य और गुणवान व्यक्तियों के मध्य रहते 
गुण हीन व्यक्ति भी सद्गुणों की आभा ग्रहण कर
अनुभव और कुशलता प्राप्त कर लेता है 
इसलिए हमारा प्रयास यह होना चाहिए की 
हम अपने से अधिक कुशल और गुणवान और अनुभवी व्यक्तियों का 
सान्निध्य प्राप्त करे और अपने व्यक्तित्व को पारस सा बनाए 
ताकि हमारे सम्पर्क जो भी आये वे हमारे सामान मूल्यवान हो जाए

व्यक्ति में  संतुष्टि का भाव 
उसके  चिंतन के स्तर पर निर्भर होता है
व्यक्ति का चिंतन निम्न स्तर का हो तो 
वह मुल्य हीन वस्तुओ और विषयो पर आसक्त रहने के कारण
 निरंतर असंतुष्ट रहता है 
असंतुष्टि मन में अधिक समय तक रहे तो 
वह तन में रोग की उत्पत्ति का कारण बन जाती  है  


 

Sunday, July 21, 2013

रुचि

  रूचिया  जिसे शौक भी कहते है 
 व्यक्तित्व का दर्पण होती है
ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे कोई रूचि नहीं हो
यह संभव है की रुचियों के अच्छे बुरे प्रकार हो सकते है
साक्षात्कार की प्रक्रिया में साक्षात्कार कर्ता प्रत्याशी से
 रुचियों के बारे में इसलिए पूछते है
रुचियों से व्यक्ति के बारे में यह तथ्य ज्ञात किया जा सकता है की
किसी व्यक्ति की  मानसिकता किस स्तर की है
व्यक्ति का सकारात्मक है अथवा नहीं 
रुचियों के आधार पर ही यह निर्धारित किया जा सकता है की
व्यक्ति में रचनात्मक प्रवृत्ति है या नहीं 
साहित्य कला संगीत में रूचि रखने वाला व्यक्ति संवेदना
से परिपूर्ण  भावुक  और रचनात्मक होता है 
खेल और व्यायाम में रूचि रखने वाला व्यक्ति
 स्वास्थ्य के प्रति जागरूक सक्रीय रहने वाला व्यक्ति होता है 
रूचि में किये जाने वाले कार्य में 
व्यक्ति को पूरी सफलता प्राप्त होती है
 अरुचि से किये जाने वाला अभ्यास हो या कोई कार्य 
समय और श्रम अधिक लगने के बावजूद व्यक्ति को 
वांछित फल प्रदान नहीं करता 


Wednesday, July 17, 2013

काल और महाकाल

 हिन्दू धर्म  में  काल  चौघडिया मुहूर्त  का  
अत्यधिक  महत्व  होता  है 
कुछ  व्यक्ति  तो  बिना  मुहूर्त  के  कोई  भी  
कार्य  करते  ही  नहीं  है 
भले  ही   कार्य  में  कितना  ही  विलम्ब क्यों  न  हो  जाये 
दिशा शूल  का  ध्यान  रखने  के  बाद  ही 
 कुछ  लोग  कही  प्रयाण करते  है  
कौनसी  दिशा  में  कौनसे दिवस  जाना 
 यह सुनिश्चित  करने के  बाद  ही  यात्रा  का  मार्ग  निर्धारित  करते  है उपरोक्त  मान्यताये यद्यपि  ज्योतिषीय काल गणना  पर  आधारित  है  परन्तु  प्रत्येक परिस्थिति  उपरोक्त  मान्यताओं  का
  पालन  किया  जाय  यह  आवश्यक नहीं 
यदि  काल  गणना का  इतना  ही  महत्व  होता  तो 
 ज्योतिष  विद्या का  प्रकाण्ड  विद्वान रावण 
अकाल  मृत्यु  का  ग्रास  नहीं  बनता
 भगवान्  विष्णु के  अवतार  श्रीराम एवं  सीता  जी  विवाह  का  
शुभ  मुहूर्त  में  होने के  बावजूद  
उन्हें विवाह के  पश्चात  वनवास  नहीं  भोगना  नहीं  पड़ता 
बिना किसी मुहूर्त  के श्री   कृष्ण  द्वारा रुक्मणी  का हरण 
तथा  अर्जुन  द्वारा सुभद्रा का हरण  और  हरण  के  बाद  
उनका सुखी  दाम्पत्य जीवन हमारे  सामने 
बिन  मुहूर्त  के उदाहरण  है 
कभी  हम  कोई  शुभ  कार्य  बिना  मुहूर्त  देखे कर  लेते  है 
 बाद में  हमें  पता  चलता  है 
 हमने वह  कार्य  उत्तम  मुहूर्त  में कर  लिया  है
 इसका  आशय  यह  मानना  चाहिये कि  किये  कार्य  में 
भगवान्  की पूरी  शुभकामना  शुभाशीर्वाद है 
व्यक्ति  अच्छे  मुहूर्त  में  कोई कार्य  क्यों करना  चाहता  है 
इसके  पीछे  प्रमुख  कारण  यह  होता  है  कि  व्यक्ति 
तरह  तरह की  आशंकाओं  से  भयभीत  रहता  है
 एक  ओर  तो  व्यक्ति  ईश्वर  की उपासना  करता  है 
 दूसरी  ओर  मन  तरह  तरह के  भ्रम  और  भय  को स्थान देता  है 
इस  प्रकार  के  व्यक्तियों  पर  गृह नक्षत्रो शकुन  अपशकुन 
का  ज्यादा  प्रभाव  होता  है 
यह  व्यक्ति  में  ईश्वरीय  शरणागति  भावना 
नहीं  होने  के  कारण होता  है 
जो  व्यक्ति  ईश्वर  पर  पूरा  विश्वास  रख कर  
प्रबल  पुरुषार्थ से कार्य  करता  है  
 उसके सारे  कार्य  बिना  मुहूर्त  देखे  ही  श्रेष्ठ  मुहूर्त  में 
निष्पादित हो  जाते है इसलिये  ईश्वर  को  महाकाल 
के  रूप में  भी  संबोधित  किया  गया है 

Friday, July 12, 2013

धर्म

 धर्मो  रक्षति  रक्षित: अर्थात  हम  धर्म  की  रक्षा  करते  है 
 तो  धर्म  हमारी  रक्षा  करता  है
धर्म  क्या  है ? धारयेती  इति  धर्म  
अर्थात  जो  धारण  किया  जाये  वह  धर्म  है 
धर्म  को  जीवन  पध्दति  भी  कहा  जाता  है  
आशय  यह  है  कि  धर्म  केवल  पूजा  पध्दति  नहीं 
 धर्म  आचरण  की  विषय  वस्तु  है 
व्यक्ति  हो  परिवार  हो  समाज  हो  देश  हो  
आचरण  के  भ्रष्ट  हो  जाने   से  ही  पतन  होता  है 
जिस  व्यक्ति  का  आचरण  उत्कृष्ट  होता  है 
 वह  उतना  ही  सुरक्षित  होता  है 
समुन्नत होता  है 
जिस  समाज और  परिवार  में  दुराचरण  और
  व्याभिचार जिस  मात्रा  में  व्याप्त  होता  है 
वह  व्यक्ति,  परिवार ,और  समाज  उतना  ही  असुरक्षित  है  
वहा  अपराध  और  अराजकता  उसी  अनुपात  में  विद्यमान  रहता  है 
धर्म  में  नैतिक  बल  रहता  है 
 बाहुबल  की  अपेक्षा  नैतिक  बल  अधिक  शक्तिशाली  होता  है 
बाहुबल  से  व्यक्ति  मात्र  शारीरिक सामर्थ्य  परिलक्षित  होता  है 
व्यक्ति समाज  और  देश का सम्पूर्ण  सामर्थ्य 
 नैतिकता  में  निहित  होता  है 
चरित्रवान  नागरिको  के  दम  पर कई  ऐसे  देश  है  
जो अल्प  समय  में  शक्ति  सम्पन्न  हो  चुके  है 
जो  किसी विशेष  पूजा  पध्दति  नहीं  जुड़े  है  

Saturday, July 6, 2013

चरित्र और नियति -लघु कथा

 एक अत्यंत  रूपवान कन्या के माता  पिता ने बहुत प्रयास के पश्चात  कन्या के लिए  सुयोग्य  और गुणवान   वर  की तलाश  की|  विवाह  उपरान्त  कन्या अपने  पति  के घर  पहुंची  पति  व्याख्याता  के पद  पर  कार्यरत  था|  व्याख्याता  के निवास  स्थान  के पास  एक  व्यक्ति निवास करता था जो राजस्व विभाग में  पटवारी के रूप में पदस्थ  था , वह  न तो रूप में था न गुणवान था परन्तु भ्रष्ट आचरण में लिप्त होकर अवैध धनार्जन  की और  उन्मुख था | रूपवान  कन्या उस व्यक्ति  की आय को देख कर विचलित  हो  उठी  अपने  पति को  छोड़  उस व्यक्ति को  अपना  सर्वस्व लुटा कर  उसके साथ  रहने  लगी  कालान्तर  में  लोकायुक्त  के  दल ने पटवारी  को रिश्वत  के आरोप  में धर  दबोचा पटवारी  अपनी  आजीविका  खो चुका  था और रूपवान  कन्या धन  लिप्सा  में अपना  चरित्र  

दान से धन की शुध्दि

 जब हम यह कहते है दान से धन की शुध्दि होती है 
तब यह भी प्रतिध्वनित होता है की
 अशुध्द साधनों से अर्जित धन भी दान योग्य हो सकता है
 इस प्रकार के विचार से 
धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में  
ऐसे धन के  दान की प्रवृत्ति बदती है 
जो शोषण और अपराध  द्वारा अर्जित किया गया हो 
तब धर्म और समाज सेवा क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं होने लगती है जो पहले न तो कभी पढ़ी और न कभी सुनी थी
 इसलिए इस दृष्टि कोण में बदलाव आवश्यक है 
अन्यथा धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में
 कालेधन का प्रवेश होता जाएगा 
ऐसी स्थिति में धर्म व्यवसाय का रूप धारण कर लेगा
 वर्तमान में धार्मिक क्षेत्र में हो रहे पतन का कारण 
इसी प्रकार की व्यवसायिक प्रवृत्ति है 
यदि हमें धर्म को बचाना है तो 
इस मानसिकता पर अंकुश लगाना होगा 
और  दान में ऐसे धन को ही बढ़ावा देना होगा 
जो शुध्द हो पवित्र हो 
शास्त्रों में दान को यग्य  की संज्ञा दी गई है 
यग्य में जो द्रव्य के रूप में  घृत की अवस्था होती है 
वही अवस्था दान में धन की होती है 
यग्य में अशुध्द घृत का प्रयोग नहीं किया जा सकता 
तो फिर दान में अशुध्द साधनों से अर्जित धन को 
कैसे लिया जा सकता है 

Thursday, July 4, 2013

विश्वास और आत्म विश्वास

दूसरो  को धोखा देने पर व्यक्ति विश्वास  खोता है 
खुद को धोखा देने पर व्यक्ति आत्म विश्वास  खोता है
 विश्वास  खोने पर व्यक्ति की समाज और परिवेश में 
विश्वसनीयता समाप्त हो  जाती है 
विश्वास  हो या आत्मविश्वास हो दोनों के खोने पर 
व्यक्ति का कोई मुल्य नहीं रह  जाता 
 आदमी कौड़ी भर का ही रह पाता  है 
आत्मविश्वास खोने पर व्यक्ति की अपनी 
स्वाभाविक क्षमता समाप्त हो जाती है 
व्यक्ति कई प्रकार की आशंकाओं से घिर जाता है 
आशंकाओं से घिरा हुआ व्यक्ति विनाश की ओर 
 अग्रसर होता जाता है 
इसलिए स्वयं की सामर्थ्य जगाने का उपाय यही है  
कि आत्म विश्वास से भर पूर रहो 
आत्मविश्वास संस्कार चरित्र  परिश्रम  
और ईश्वरीय उपासना से जाग्रत होता है 
सत  गुणों के जीवन में प्रवेश करने से 
व्यक्ति किसी व्यक्ति को धोखा नहीं 
देता है जहा भी वह रहता जिस ओर  भी वह जाता है 
विश्वास का भाव जगाता विश्वास बोता है 
विश्वास ही कमाता  है 
ऐसे विश्वास के सोपान के सहारे 
व्यक्ति लक्ष्य की ऊँचाइयों  की और जाता है 
वह जो चाहता  है वह पाता  है 

Tuesday, July 2, 2013

बाल लीला

बाल जिन्हें संस्कृत में केश कहते है कि लीला बहुत ही निराली  है। जिन व्यक्तियों के सिर पर अक्सर  दायित्वों को बोझ नहीं होता उनके बालो में सफेदी नहीं आ सकती ।बहुत से व्यक्ति ऐसे भी होते है जो अकारण ही बालो में सफेदी के शिकार हो जाते है ।ऐसे व्यक्तियों के लिए कहा जाता है की उन्होंने बाल धुप में सफ़ेद किये है ।
                    कुछ लोग अज्ञात कारणों से  केशविहीन अवस्था में पहुँच जाते है उनके बारे में सुधी  जन यह कहते हुए दिखाई देते है की उनका भाग्योदय हो चुका है ।परन्तु किस मात्रा में ऐसे केश विहीन सज्जन का भाग्य उदय हुआ यह तो वे सज्जन ही बता सकते है 
             समस्या वहा आकर खड़ी  होती है जबकि ऐसे अल्प केशधारी सज्जन नाई की दूकान पर केश कर्तन कार्य हेतु जाते है एक तो केश की अल्प मात्रा ,दूसरी और बालो के कर्तन  की पावन परम्परा की निर्वहन की चुनौती, दोनों के बीच केश कर्तनालय का स्वामी धर्म संकट में खडा नजर आता है ,कि वह कौनसे बाल काटे और कौनसे नहीं ,फिर भी ज़रा सी असावधानी अल्प केश धारी सज्जन के क्रोध का कारण बन जाती है ।बेचारा केश कर्तन  कार बेबस  और असहाय नजर आता है। अनावश्यक क्रोध का भाजन बन जाना उसकी नियति बन जाती है ।
        कोरोना काल मे बालो के विकराल होने की कथाये अलग है ।लम्बे लॉक डाउन ने जहाँ केश कर्तन कारो को बेरोजगार बना दिया है ।वही प्रत्येक मोहल्ले में बढ़ते बालो के कारण कुछ लोग ऋषि महर्षि और चिंतक मनीषी के रूप में नजर आने लगे ।  सामान्य दिनों में कोई व्यक्ति बढ़ी हुई दाढ़ी और बड़े बाल वाला दिखाई देता है तो उसे किसी प्रतिज्ञा से जोड़कर देखा जाता है और बालधारी व्यक्ति स्वयम को भीष्मपितामह  मान लेता है 
        ऐसा नही कि बड़े बालों का सम्बन्ध मात्र किसी भीषण प्रतिज्ञा से हो । जब कोई साधारण व्यक्ति सिर एवम दाढ़ी पर बड़े बाल रखता दिखाई देता है तो सहज ही यह अंदाज लगाया जा सकता कि वह या तो अपनी प्रेमिका के विरह वेदना में है या लेखक ,कवि ,शायर बनने की प्रक्रिया गुजर रहा है और यही भ्रम किसी व्यक्ति को साहित्य से दूर दूर तक सम्बंध नही होने पर भी साहित्यकार धोषित कर देता है ।
             बालो को एक सीमा के बाद बढ़ाना सबसे मुश्किल कार्य होता है । कुछ महिलाये और पुरुष अपने बालों को बढ़ाने के लिये तरह तरह के उपाय  उपचार करते है । महिलाये तो अपने छोटे बालो को लेकर चिंतिंत ही नही चिड़चिड़ी हो जाती है । बालो के प्रति असुरक्षा का भाव उनके भीतर इस कदर समाया रहता है ।वे बालो को छोड़कर किसी की भी क़सम खा सकती है , परन्तु बालदेव की नही । 
        मूंछ के बालों की एक अलग कहानी है । सामान्य रूप से मूंछ के बालों को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है ।गर्दन कट जाये पर मूंछ नही कटे इस प्रतिज्ञा के कारण कई मूंछ्धारी पराक्रमी अपनी गर्दन ही नही सब कुछ कटा चुके है ।मूंछ के बालों पर नींबू टिकाना, मूंछ को तरह तरह से नए नए तरीके से  सज्जित करना यह एक कला है ।इस कला में भले ही कोई स्नातक उपाधि न हो, परन्तु सर्वक्षेष्ठ मूंछ्धारी अपने आप को इस कला में एम.फिल. या  पी.एच, डी होल्डर से कम नही समझते है । उन्हें लगता है उनकी आकर्षक मूंछो के कारण ही यह दुनिया टिकी हुई है 
         जब कोई आत्मीय व्यक्ति उसके व्यवहार से घर के बुजुर्गों को आहत कर देता है ।तब बड़े बुजुर्ग यह कहते हुए नज़र आते है कि वह माथे का बाल था ।जो टूटने पर कही पर भी जाये हमे क्या ? मतलब । ऐसा नही कि बालों का स्थान उनका महत्व स्थापित नही करता । बाल किस अंग पर है किस प्रकृति का यह सबसे महत्वपूर्ण होता है । सभी बालो के मूल्यांकन का  एक ही आधार नही हो  सकता । आजकल तो बालो की लंबाई और मोटाई के आधार पर उसके मूल्य तय होते है । खबरे तो यहां तक सुनने में आती  कि कुछ देवस्थानों पर बड़ी मात्रा बाल त्यागी लोगो की वृहद पैमाने पर नीलामी होती है । नीलामी से एकत्र धनराशी लाखो में नही करोड़ो में होती है ।
           कुछ लोग तो बालो की महत्ता से इतने अधिक परिचित है कि वे अक्सर यह कहते रहते है कि यह तो घर की खेती है ।कितना भी गरीब आदमी हो , उसके पास जीवन निर्वाह के कोई साधन न भी हो फिर भी घनी भूत केश संपदा का स्वामी तो होता ही है । या यूँ कहे कि जितना गरीब व्यक्ति होगा उसके पास उतनी ही घनी भूत केश सम्पदा होगी । 
           बालो के सम्मान में उस समय ज्यादा वृध्दि होती है , जब  बालो के बारे में कहा जाता है कि वे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के नाक के बाल है ।ऐसा तब होता है कोई व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण पदधारी व्यक्ति का विशेष कृपा पात्र  होता है