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Thursday, April 15, 2021

सौंदर्य लहरी -एक भाव यात्रा


            आद्य शंकराचार्य द्वारा अल्प आयु में अनेक दिव्य स्त्रोतों की रचना की गई ,उन्हीं में से देवी के सौंदर्य की स्तुति हेतु रचित "सौंदर्य लहरी "स्त्रोत है । सौंदर्य लहरी को नवीन दृष्टि से देखा और परखा है ,ललित निबंधकार श्री गोविन्द गुंजन ने सौंदर्य लहरी एक भाव यात्रा के माध्यम से । 
         लेखक ने इस कृति में भाषा और प्रतिभाषा को परिभाषित किया है । अनुभूतिया जो शब्द से परे हो प्रतिभाषा कहलाती है ।आत्मीय संबंधों में अनुभूतिया प्रतिभाषा के माध्यम से संचारित होती है ।ईश्वरीय अनुभूतियो को ग्रहण करने में प्रतिभाषा महत्वपूर्ण होती है ।  सौंदर्य लहरी में छुपी प्रतिभाषा को लेखक ने पद्यानुवाद और गद्यानुवाद के माध्यम से स्पष्ट किया है ।
       देवी के सौंदर्य को लेखक ने अपनी लेखनी से  भाषागत सौंदर्य से सजाया संवारा है । इस मायने में लेखक का ललित निबंधकार के साथ काव्य प्रतिभा भी कृति सृजन में बहुत काम आई है ।भाषा का लालित्य स्वरूप और कविता सरिता का प्रवाह जगह जगह देखने को मिला है।
                आद्य शकराचार्य के जीवन परिचय को एक अध्याय के माध्यम से इस कृति में समर्पित किया गया है  । पुस्तक को  भाव यात्रा शीर्षक दिया जाना इसलिये सार्थक हो जाता है क्योकि भौतिकता से दूर देवी के विशुध्द सौंदर्य को वही व्यक्ति जान समझ सकता है जो भावो से जुड़कर आत्मा के सरोवर में अवगाहन करने की सामर्थ्य रखता है।
      पुस्तक में सौंदर्य लहरी के साथ आनंद लहरी को भी स्थान दिया गया गया है सौंदर्य लहरी पर इस पुस्तक के माध्यम से लिखी गई टीका इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में हमारे ग्रन्धों पर आधिकारिक रूप से टीका लिखने का प्रचलन लगभग समाप्त हो चुका है । 
      सौंदर्य लहरी की टीका करते हुए लेखक ने यह प्रकट किया है कि  सूर्य और चंद्रमा देवी नैत्र है ।सूर्य जहां दिन को उज्ज्वलता प्रदान करता है वही चन्द्रमा रात्रि को शीतलता । देवी जी का तीसरा नेत्र भी जो क्षितिज में संध्या और उषा के रूप में जगत को ज्ञान प्रदान करता है ।लेखक ने पुस्तक में सौंदर्य लहरी की सौंदर्य पूर्ण व्याख्या करते हुए जीवन में छुपे दैवीय सौंदर्य को उदघाटित किया है