व्यक्ति
के व्यक्तित्व का मूल्यांकन
समाज मे
उसकी
भूमिका के आधार पर निर्धारित
होता है
समाज
मे किसी भी व्यक्ति की भूमिका
भिन्न भिन्न स्थानो पर
भिन्न
-भिन्न
प्रकार की होती है
परिवार
मे एक व्यक्ति पुत्र के लिये
पत्नि के लिये
पति
पिता के लिये पुत्र बहन और
भ्राता के लिये भाई होता है
कोई
व्यक्ति अच्छा पुत्र हो उसके
लिये यह आवश्यक नही है
कि
वह अच्छा पिता या अच्छा पति
हो
कोई व्यक्ति अच्छा पति हो वह आवश्यक नही कि
कोई व्यक्ति अच्छा पति हो वह आवश्यक नही कि
अच्छा
पुत्र या अच्छा भ्राता हो
समाज मे समस्त भूमिकाऔ का निर्वहन एक साथ
समाज मे समस्त भूमिकाऔ का निर्वहन एक साथ
सफलता
पूर्वक कर लेना
प्रत्येक व्यक्ति के लिये संभव नही है
प्रत्येक व्यक्ति के लिये संभव नही है
बहुत से
व्यक्तियो को हम देखते है
कि
वे सफल प्रशासक कुशल उध्यमी
होते है
पर
वे पारिवारिक द्रष्टि से विफल
होते है
परन्तु सबसे महत्वपूर्ण है किसी व्यक्ति का एक अच्छा इन्सान होना
परन्तु सबसे महत्वपूर्ण है किसी व्यक्ति का एक अच्छा इन्सान होना
व्यक्ति
मे मानवीय गुणो की प्रचुरता
पाई जाना
सभी
व्यक्तियो को संतुष्ट कर पाना
संभव नही है
क्योकि
प्रत्येक रिश्ते के अपेक्षाये
और संतुष्टि के पैमाने अलग
-अलग
होते है स्वाभिमानी और आदर्शवादी
व्यक्ति सामान्यत पारिवारिक
द्रष्टि से
उतने
सफल नही होते
जितने
परिस्थितियो के अनुरुप सामंजस्य
बिठाकर
सभी
लोगो को साथ मे लेकर चलने वाले
व्यक्ति सफल होते है
ऐसे
व्यक्तियो को समाज और परिवार
मे व्यवहार कुशल कहा जाता है
मे व्यवहार कुशल कहा जाता है
छल
,कपट
,मिथ्याभाषी
होना
जो सामान्य रुप से अवगुण
समझे जाते
वे
कब ऐसे व्यक्ति को अलंक्रत
कर देते है
पता
ही नही चल पाता
वस्तुत
मौलिक तथ्य तो यह है
कि
व्यक्ति भीतर से कितना अच्छा
है
इसी तथ्य से व्यक्ति की नीयत स्पष्ट होती है
इसी तथ्य से व्यक्ति की नीयत स्पष्ट होती है
व्यक्ति
की जैसी नियत होती है उसकी
वैसी नियति बन जाती है
फिर
चाहे उसमे आस्तिकता का भाव
कितने प्रतिशत हो
ईष्ट
का आशीर्वाद व्यक्ति को
उसी अनुपात मे प्राप्त होता
जितने
मात्रा मे व्यक्ति की नियत
बाहरी
वातावरण के प्रति स्वच्छ होती
है