Total Pageviews

Wednesday, December 30, 2015

जिज्ञासा एवम् मूल्यांकन

सीखना एक सतत प्रक्रिया है कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि वह परिपूर्ण हो चूका है अब सीखने की कोई उसे कोई आवश्यकता नहीं है सीखता वही है जिसमे जिज्ञासा अर्थात जानने सीखने की लगतार प्रवृत्ति होती है जो व्यक्ति यह मान लेता है कि वह परिपूर्ण हो चुका है वह समग्र रूप से कुशलता प्राप्त हो चुका है उसमे उत्थान की सम्भावनाये समाप्त हो जाती है व्यक्ति कितना भी कुशल हो जाए उसके कार्य में दोष निकाला जा सकता है जो लोग दूसरे लोगो का मूल्यांकन करते है और भिन्न भिन्न प्रकार की कमिया निकालते है वही कार्य उनसे करवाये जाने पर वे भी उतनी ही त्रुटियों करते पाये जायेगे क्योकि कार्य का मूल्यांकन आदर्श परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते किया जाता है यथार्थ के धरातल वास्तविक समस्याएं कल्पना से परे पाई जाती है उनका हल तत्कालिक व्यवहारिक परिस्थितियों को देख कर तत्क्षण निर्णय लेकर ही किया जा सकता है इसलिए जब भी किसी व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन करो स्वयं को उस व्यक्ति के स्थान पर रखते हुए करो कि आप उस व्यक्ति के स्थान पर होते तो क्या करते ऐसी स्थिति जो भी मूल्यांकन करेंगे वह वास्तविक और सटीक मूल्यांकन होगा

Monday, December 28, 2015

मौसम

सर्द हवाओ ने मचा दी हल चल
गहरी संवेदनाओ को खरौचा है |
मौसम को गाली दे दे कर
किस कमबख्त ने उसको कोसा है ?
मौसम अनुभूतियों का सुखद स्पर्श है
 प्रकृति माँ का लाड है दुलार है
 मौसम की खूबसूरत उंगलियो से
विधाता लुटाते प्यार है
गहरी सर्द रातो में होती गहरी शान्ति है
नदिया सरोवर समुद्र तट पर होता
शब्दहीन संवाद मिट जाती समस्त भ्रान्ति है
इसलिए हम मौसम नहीं लड़े
हँसते खेलतें मौसम की मस्ती में
हो जाए खड़े
मौसम हमे भीतर से तर
बाहर से बेहतर बना देगा
मौसम का पावन अनुभव
आध्यात्मिक सुगंध की तरह सदा
हमारी आत्मा के संग रहेगा

Monday, December 21, 2015

संवेदना की कथा

कथा में हो रहे धार्मिक और मार्मिक उपदेशो से 
श्रोताऔ के भाव आखो में अश्रु के माध्यम से निकल रहे थे 
कथा वाचक संत की संवेदनाये 
प्रवचनों के द्वारा मुखरित हो रही थी 
कथा होने के उपरान्त एक बूढी महिला ने 
जीर्ण शीर्ण वस्त्रो से रखी अपनी पोटली में से
 महाराज को भाव स्वरूप ५०० रूपये की राशि भेट की 
जो उन्होंने चुपचाप ग्रहण कर ली 
थोड़ी ही देर पश्चात एक प्रवासी भारतीय द्वारा 
भूत काल में दिए गए दान की प्रशस्ति मंच पर
 उद घोषित हो रही थी  
अपनी कीर्ति सुन कर प्रवासी भारतीय सज्जन 
फुले नहीं समा रहे थे 
उनके अहंकार की तुष्टि और पुष्टि हो रही थी 
बूढी वृध्दा लकड़ी को टेक टेक अपने पोते को कथा से लिए घर की ओर
भाव विभोर हो चली जा रही थी 
कथा वाचक संत की संवेदना  मात्र 
प्रवासी भारतीय  व्यक्ति की महादानी प्रवृत्ति को 
नमन कर रही थी  
बस मेरे मन में एक चुभता सवाल था कि
  क्या संत की उपदेशो में दर्शित संवेदना 
 कृत्रिमता  का आवरण लिए थी ? 
वृध्दा के भाव मौन होकर भी भगवत सत्ता की 
अनुभूति से मन  को अभिभूत अभी भी करा रहा है

Thursday, December 17, 2015

धर्म का मर्म

धर्म मात्र पूजा पध्दति नहीं है
 धर्म आचरण का विषय है 
जो लोग धर्म को मात्र पूजा पध्दति ही मानते है
वे धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देते है 
जब हम महापुरुषों का अनुशरण करने में 
असमर्थ पाते है 
तब हम महापुरुषों को देवता बना देते है 
उन्हें पूजने लग जाते है पूजते हुए 
हम महापुरुषों के द्वारा रचित विचारो 
बताये मार्ग को भूल जाते है 
सच्चा धार्मिक व्यक्ति महापुरुषों के
 विचारो और चरित्र अपनाता है
धर्म को पाखण्ड बना कर 
समाज को खंड खंड करने से 
हम धर्म  के मर्म को ही चोट पहुचाते है