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Monday, December 24, 2018

कर्म पलायन नही उत्तदायित्व है

धर्म वह जो कर्म को प्रखर कर दे
धर्म वह नही जो कर्म की गति को मंथर कर दे
वास्तव में धार्मिक होना और धार्मिक दिखना
अलग अलग बात है
धार्मिक होने और धार्मिक दिखने दोनों में अंतर है
जरूरी नही की जो मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारा जाए
वह धार्मिक है धार्मिक वह भी हो सकता है
जो बिना किसी धर्म स्थल जाए शुभ कर्मों को धारण करता हो ।
कर्म ही चेतना है कर्म है जीवन है
जो कर्म से विमुख हो जो धर्म के नाम पर
दायित्व से पलायन करते है वे धार्मिक नही है
धर्म पलायन नही उत्तदायित्व की अनुभूति है

अपील

Procedure Code, 1908 — Or. 41 R. 22:Issues decided in favour of appellant, not having been challenged by respondent, held, cannot be readjudicated by appellate court. [Biswajit Sukul v. Deo Chand Sarda, (2018) 10 SCC 584]

Tuesday, December 4, 2018

जीवन और मृत्यु

मरना एक न एक दिन सभी को है
परंतु जीवन और मृत्यु उद्देश्य पूर्ण हो तो
उसका जीना सार्थक है मरना भी सार्थक है निरुद्देश्य जीवन और दुर्घटना से हुई मृत्यु में
कोई अंतर नही है
कोई परोपकार समाज सेवा
देश धर्म के लिए जीवन जीता है तो
कोई मात्र स्वार्थ पूर्ति के लिए जीता है
कोई बीमार होकर रुग्ण शैय्य्या पर
दुर्घटना में घायल होकर मरता है
तो कोई देश की सीमा पर लड़ते लड़ते है
अपने कर्तव्य की पूर्ति में मरता है
उसे इतिहास याद रखता है
डरना मना है उस मृत्यु से जो आकस्मिक दुर्घटना से हो सकती है कभी कभी दुर्घटनाये होती नही आमंत्रित की जाती है आकस्मिक हुई दुर्घटना से हुई मृत्यु उद्देश्य पूर्ण जीवन का समापन है निरुद्देश्य जीने वाले को इससे कोई फर्क नही पड़ता ।कई बार जीवन भी मृत्यु से भयावह हो सकता है ऐसा तब होता है जब व्यक्ति का आत्म विश्वास बुरी तरह से टूट जाता है परस्पर रिश्तो का विश्वास चकनाचुर हो जाता है व्यक्ति की प्रतिष्ठा और धन नष्ट हो जाता है व्यक्ति का चरित्र समाप्त हो जाता है व्यक्ति विवेक और ज्ञान शून्य हो जाता है तब ऐसा व्यक्ति आत्मघाती कदम उठा लेता है और यही आत्महत्या का कारण भी होता है